समर्थ गुरु रामदास का ' दासबोध ' समयानुकूल शिक्षाओं का भण्डार है l ' दासबोध में वे कहते हैं --- समाज में रहने वाले व्यक्तियों को अपना आचरण ऐसा रखना चाहिए जिससे अपनी उन्नति और भलाई के साथ समाज का भी हित हो l उन्होंने कहा --- लोकमत को जानना और उसका आदर करना बहुत आवश्यक है l जो मनुष्य लोकमत की उपेक्षा करता है , वह प्राय: उद्दंड और स्वेच्छाचारी हो जाता है l ऐसा व्यक्ति कभी समाज के लिए हितकारी नहीं हो सकता वरन वह किसी न किसी तरह समाज की हानि करने वाला ही होता है l
समर्थ गुरु ने आदेश दिया है कि मनुष्य को लोकमत के विरुद्ध नहीं चलना चाहिए l समाज में मूढ़तावश प्रचलित कुरीतियों या हानिकारक परम्पराओं को मिटाने के लिए इस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए जिससे व्यर्थ का विरोध - भाव उत्पन्न न हो l लोगों को समझा - बुझाकर और अपना उदाहरण दिखाकर ही सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए l
श्री समर्थ ने आचार और विचार दोनों की ही शुद्धता पर बहुत जोर दिया l
समर्थ गुरु ने आदेश दिया है कि मनुष्य को लोकमत के विरुद्ध नहीं चलना चाहिए l समाज में मूढ़तावश प्रचलित कुरीतियों या हानिकारक परम्पराओं को मिटाने के लिए इस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए जिससे व्यर्थ का विरोध - भाव उत्पन्न न हो l लोगों को समझा - बुझाकर और अपना उदाहरण दिखाकर ही सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए l
श्री समर्थ ने आचार और विचार दोनों की ही शुद्धता पर बहुत जोर दिया l