धन - वैभव , सम्पन्नता , सुख - सुविधाओं की प्रचुरता के आधार पर किसी समाज को सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- " अनैतिक दृष्टि अपनाये हुए व्यक्तियों का समाज असभ्य ही कहला सकता है l आज संसार में अपराधों , क्लेशों , संघर्ष , अभाव , चिंता , तनाव और समस्याओं का घटाटोप दिखाई पड़ता है उसका एकमात्र कारण व्यक्तियों के मन में समाई हुई स्वार्थपरता , चरित्रहीनता एवं संकुचित दृष्टि है l आदर्शवाद का , धर्म - नीति एवं मर्यादाओं का उल्लंघन जब कभी भी अधिक मात्रा में होने लगता है तब उसका परिणाम सारे समाज को भुगतना पड़ता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' उच्च भावनाओं के आधार पर मनुष्य देवता बन जाता है , लेकिन तुच्छ विचार के कारण वह पशु दिखाई पड़ता है और निकृष्ट पाप बुद्धि को अपनाकर वह असुर एवं पिशाच बन जाता है l कुमार्ग पर चलने वाले व्यक्ति सारे समाज को ही दुःख देते हैं l भौतिक और आत्मिक कल्याण के लिए उत्कृष्ट भावनाओं की अभिवृद्धि आवश्यक है l