पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- अहंकार विवेक का हरण कर लेता है l इसके चलते सही सोच -समझ और सम्यक जीवन द्रष्टि समाप्त हो जाती है l अहंकार के रोग की खास बात यह है कि यदि व्यक्ति सफल होता जाता है तो उसका अहंकार भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है और वह एक विशाल चट्टान की भांति जीवन के सत्पथ या आध्यात्मिक पथ को रोक लेता है इसके विपरीत यदि व्यक्ति असफल हुआ तो उसका अहंकार एक घाव की भांति रिसने व दुःखने लगता है l ' आचार्य श्री लिखते हैं ------ सामर्थ्य बढ़ने के साथ मनुष्य के दायित्व भी बढ़ते हैं l ज्ञानी पुरुष बढ़ती सामर्थ्य का उपयोग पीड़ितों का कष्ट हरने एवं भटकी मानवता को दिशा दिखाने में करते हैं जबकि अज्ञानी उसी सामर्थ्य का उपयोग अहंकार के पोषण और दूसरों का अपमान करने के लिए करते हैं l ' दुर्योधन ,शिशुपाल , रावण , हिटलर ऐसे ही उदाहरण हैं जिन्होंने अपनी सामर्थ्य को अत्याचार और लोगों को उत्पीड़ित करने में लगा दिया l
2 August 2022
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " आचरणविहीन धर्म आडंबर के सिवा और कुछ भी नहीं l पत्थरों के पुराने मंदिरों में सिर झुकाने की रीति निभाने वालों की दशा भी पत्थरों जैसी हो चली है l धर्म का प्रचार तो बहुत हो रहा है , लेकिन इसका आचरण नहीं के बराबर हो रहा है l बातें देवत्व की हो रही हैं , जबकि जीवन निरंतर पशुता की ओर झुकता जा रहा है l विचार और आचरण के बीच गहरी खाई ने धर्म को प्रभावहीन बना दिया है l " इस सन्दर्भ में वे एक बूढ़े फकीर की कहानी लिखते हैं ------ ' एक पहाड़ी गाँव में एक पालतू तोता था , जो स्वतंत्रता , स्वतंत्रता , स्वतंत्रता ' चिल्लाया करता था l एक बार फकीर उस गाँव में ठहरे l उन्होंने तोते की वेदना वेदना भरी वाणी सुनी l वह फकीर अपनी युवावस्था में देश के स्वाधीनता आन्दोलन में कई बार कैद रह चुके थे l इसलिए तोते द्वारा कहे गए शब्दों ' स्वतंत्रता , स्वतंत्रता ,---- ' को सुनकर व्याकुल हो गए l उन्होंने बड़ी मुश्किल से तोते के मालिक को उस तोते को स्वतंत्र करने के लिए राजी किया l बहुत मुश्किल के बाद वह फकीर उस तोते को खुले आकाश में उड़ाने में सफल हुए l लेकिन अगले दिन उन्होंने देखा कि वही तोता अपने पिंजरे में बैठकर ' स्वतंत्रता ' की टेर लगा रहा है l यह देखकर वे मुस्करा उठे l अब उन्हें आचरण विहीन धर्म का अनुभव हुआ l '