7 September 2019

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  अखण्ड  ज्योति  में  एक  लेख  लिखा  था  , उसका  अंश  है ------ '  संपन्नता  से  सुविधा  तो  बढ़  सकती  है  ,  पर  उससे  व्यक्ति  के  अंतरंग  को ऊँचा  उठाने  में  जरा  भी  सहायता  नहीं  मिलती   l  चेतना  का  स्तर  ऊँचा  रहने   की  स्थिति  में  ही  शक्ति  और  सम्पदा  का  सदुपयोग  बन  पड़ेगा  l  इसके  बिना  बंदर  के  हाथ  तलवार  पड़ने  की  संभावना  ही  अधिक  रहेगी  l
आदर्शवादिता  बढ़े  बिना   बढ़ा  हुआ  वैभव  विपत्तियाँ  ही  बढ़ाता  है  l  बुद्धि - कौशल  छल - छद्म  करने  के  काम  आता  है  l  वैभव  से  दुर्व्यसन  बढ़ते  चले  जाते  हैं   और  अधिकारों  का  उपयोग  स्वार्थपूर्ति  तथा  दुर्बलों  को  दबाने  ,  उनका  शोषण  करने  के  काम  आता  है   l  कला  की  शक्ति  पशु - प्रवृतियों  को  भड़काने  में  लग  जाती  है  l
  आचार्य श्री  ने  आगे   लिखा  है  ---- '  व्यक्ति  के  अंतरंग  में  रहने  वाली   निकृष्टता   अभावग्रस्त  स्थिति  में   तो  फिर  भी  दबी  रहती  है  ,  लेकिन  शक्ति  और  साधन  मिलने  पर  वह  और  अधिक  खुला  खेल  खेलने  लगती  है   l  तब  कुकर्मी  का  वैभव   उसके  स्वयं  के  लिए ,  संबंधित  व्यक्तियों  और  समाज  के  लिए  अभिशाप  ही  सिद्ध  होता  है   l
जीवन  के   दोनों  पक्षों  ---- भौतिकता   के  साथ  आदर्शवादिता व  जीवन  मूल्यों  का  समन्वय  जरुरी  है  l