23 August 2020

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में   भगवान      श्रीकृष्ण  कहते  हैं ---- " जैसे  जल  में  चलने  वाली  नाव  को   वायु  हर  लेती  है  ,  वैसे  ही  विषयों  में   विचरती  हुई  इन्द्रियों  में  से   मन  जिस  इन्द्रिय  के  साथ  रहता  है  ,  वह  एक  ही  इन्द्रिय   इस  पुरुष  की   बुद्धि  को  हर  लेती   है  l "

जब  इंद्रिय   व  मन   मिल  जाते  हैं  तो  उनका  पक्ष  प्रबल  हो  जाता  है  ,  तब  अकेली  रह  जाने  के  कारण  बुद्धि  अपना  काम  नहीं  कर  पाती  ,  और  बुद्धि  कुबुद्धि  बनकर   अनर्थकारिणी  बन  जाती  है   l   एक  विचारक  का  कथन  है --- " जो  मनुष्य  अधिकतम  संतोष  और  सुख  पाना  चाहते  हैं  ,  उनको  अपने  मन  और  इन्द्रियों  को  वश  में  रखना  चाहिए  l   आर्थिक  दृष्टि  से  मनोनिग्रह    और  संयम  का  मूल्य  लाखों - करोड़ों  रूपये  से  भी  अधिक  है  l   जो  मनुष्य  अपना  स्वामी  है   और  इंद्रियों   को    इच्छानुसार  चलाता   है  ,  वासना  से   नहीं हारता  है  ,  आर्थिक  दृष्टि  से  सुखी  रहता  है  l   प्रलोभन  एक  तेज  आंधी  के  समान   है  ,  जो  मजबूत  चरित्र  को  भी  ,  यदि  वह  सतर्क  न  रहे  ,  गिराने  की  शक्ति  रखता  है   l   जो  जागरूक  है  ,  वही   संसार  के   नाना  प्रलोभनों -  आकर्षणों   और  मिथ्यादंभ  से  मुक्त  रह  सकता  है  l 

WISDOM -----

  अनावृष्टि  से  संकटग्रस्त  जनता  की  सहायता  के  लिए   छत्रपति  शिवाजी   एक  बाँध  बनवा  रहे   थे  l  मजदूरी  करके  सहस्त्रों  व्यक्तियों  के  भरण - पोषण  की  व्यवस्था  हो  रही  थी  l  छत्रपति  शिवाजी  ने  एक  दिन  यह  देखा   तो  गर्व  से  फूले   न  समाये   कि   वे  ही  इतने  लोगों   को  आजीविका  दे  रहे  हैं  l   यदि  वे  ये  प्रयास  न  करते   तो  उतने  लोगों  को  भूखे  मरना  पड़ता   l    समर्थ  गुरु  रामदास  उधर  से  निकले   l   शिवाजी   ने  उनका  सम्मान - सत्कार  किया   और  अपने  उदार - अनुदान  की  गाथा  कह  सुनाई  l    समर्थ  गुरु  उस  दिन  तो  चुप  हो  गए  ,  पर  जब  दूसरे  दिन  चलने  लगे   तो  शांत  भाव  से   एक  पत्थर  की  ओर   संकेत  कर  के   शिवाजी  से  कहा --- ' इस  पत्थर  को  तुड़वा  दो  l  '   पत्थर  तोडा  गया   तो  उसके  बीच  एक   गड्ढा  निकला  ,  उसमें  पानी  भरा  था  l  एक  मेढ़की  कल्लोल  कर  रही  थी  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने   शिवाजी   से  पूछा  --- " इस  मेढ़की  के  लिए   संभवत:  तुमने  ही  पत्थर  के  भीतर    यह  जीवन  रक्षा   की  व्यवस्था  की  होगी  ? "  शिवाजी  का  अहंकार  चूर - चूर  हो  गया   , वे  समर्थ  के  चरणों  में  गिर  पड़े  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें   अपनी  भूमिका  का  बोध  कराया   और  आततायियों  से  संघर्ष  हेतु   नीति   बनाने  के  लिए  बाध्य  किया  l   समर्थ  गुरु  का  मार्गदर्शन  एवं   कृपा  ही  थी   जिसने  शिवाजी  को  समय - समय  पर   सही  सूत्र  देकर   आपत्ति  से  बचाया   व  श्रेयपथ  पर  अग्रसर  किया  l