' जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है l ' यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है कि वह वैज्ञानिक प्रगति तो करता है लेकिन उसमे सृजन के तत्वों को भूलकर केवल विनाश के पक्ष पर अपना ध्यान केंद्रित कर लेता है l जिन साधनों से सारा संसार जगमगा सकता है , उन्हें वह अंधकार में डुबो देना चाहता है और केवल इसलिए कि वह लाशों पर राज कर सके l असुरता में अहंकार है , उसका पोषण जरुरी है , अन्यथा वह घाव बनकर रिसने लगता है l लाशें कभी विद्रोह नहीं करतीं , कोई जुलूस , कोई आंदोलन नहीं करतीं l किसी भी तकनीक से उन्हें खड़ा कर के ' सलाम ' कराया जा सकता है l इसी से अहंकारी को सुकून मिल जाता है l यह दुर्बुद्धि ही है कि असुरता स्वयं को अमर समझकर दूसरों के विनाश के लिए हर संभव कार्य करती है l केवल कुछ लोगों के अहंकार के कारण समूची मानव जाति , प्रकृति , पर्यावरण सब पर संकट आ जाता है l इन सब के लिए संसार में जो भी प्रयास किए गए , वे सब एक नाटक सा लगने लगते हैं l
28 February 2022
26 February 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " परमात्मा न तो अपने हाथ से किसी को कुछ देता है और न छीनता है l वह इन दोनों के लिए मनुष्यों की आंतरिक प्रेरणा द्वारा परिस्थितियां उत्पन्न करा देता है , और आप तटस्थ भाव से मनुष्यों के उत्थान - पतन देखा करता है l " मनुष्य के जैसे संस्कार है , जैसी उसकी प्रवृति है , उसी के अनुरूप वह कर्म करता है , अपना मार्ग चुनता है और उसके कर्म का फल कब और क्या होगा यह काल निश्चित करता है l महाभारत युद्ध निश्चित हो गया , अर्जुन और दुर्योधन दोनों के सामने विकल्प था कि वे भगवान को चुनें या उनकी सेना को l दुर्योधन में अहंकार था , वह तो भगवान को भी अशुभ शब्द बोलता था , जब कृष्ण जी शांति दूत बन कर गए थे तब वह उनको बाँधने चला था l उसे अपनी शक्ति का घमंड था और वह शक्ति उसके किसी काम न आई l आज यदि संसार में शांति चाहिए तो स्वयं को शक्तिशाली समझने वालों को रामायण और महाभारत का अध्ययन कर उसमे जो तथ्य छुपा है उसे समझना चाहिए l रावण की नाभि में अमृत था अर्थात जिस शक्ति का उसे घमंड था वह नाभि में थी , उसी केंद्र में बाण लगने से विस्फोट हुआ और नामोनिशान मिट गया l हर असुर के साथ यही होता है , असुर अपनी शक्ति का दुरूपयोग करता है इसलिए उसकी शक्ति , उसको मिला हुआ वरदान ही उसके अंत का कारण बन जाता है l भस्मासुर को वरदान था कि जिसके सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाये l उसकी बुद्धि ऐसी भ्रष्ट हुई कि उसने अपने ही सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया l
WISDOM -------
महाभारत का युद्ध चल रहा था l द्रोणाचार्य और अर्जुन आमने - सामने थे l द्रोणाचार्य ने अर्जुन को धनुर्विद्द्या सिखाई थी , उसके बावजूद वे उसके सामने असहाय दिख रहे थे l कौरवों ने प्रश्न किया ---- " आश्चर्य की बात है कि गुरु हार रहे हैं और शिष्य जीत रहा है l " द्रोणाचार्य बोले ---- " मुझे राजाश्रय की सुख - सुविधा भोगते हुए वर्षों गुजर गए , जबकि अर्जुन इतने ही समय तक कठिनाइयों से जूझता रहा है l सुविधासम्पन्न अपनी सामर्थ्य गँवा बैठते हैं और संघर्ष शील निरंतर शक्तिसम्पन्न बनते रहते हैं l " महर्षि अरविन्द ने कहा है ---- " दुःख भगवान के हाथ का हथौड़ा है , उसी के माध्यम से मनुष्य का जीवन सँवरता है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जीवन में दुःख , कठिनाइयाँ हमें कुछ सिखाने आती हैं , हम उसे चुनौती मानकर उसका सकारात्मक ढंग से सामना करें l रो कर , विलाप कर उस समय को न गुजारें , दुःख को तप बना लें l यदि जीवन में सुख का समय आता है तो उसे ईश्वर की देन मानकर निरंतर निष्काम कर्म करें , उसे आलस - प्रमाद , भोग - विलास में न गंवाएं l "
25 February 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " शक्तिसम्पन्न , समर्थ - बलशाली होने से अधिक महत्वपूर्ण है सद्गुण संपन्न होना , क्योंकि सद्गुणों के अभाव में शक्ति के दुरूपयोग की संभावना हमेशा बनी रहती है l गुणहीन व्यक्तियों के पास जो भी शक्ति आती है , वो हमेशा उसका दुरूपयोग करते हैं , फिर यह शक्ति चाहे सामाजिक हो , राजनीतिक हो या फिर वैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक l " भौतिक विज्ञान में मनुष्य ने बहुत प्रगति की है लेकिन यदि यह शक्ति किसी गुणहीन , संवेदनहीन व्यक्ति के हाथ में आ जाये तो वह पूरी दुनिया को कब्रिस्तान बना सकता है l रावण कितना विद्वान् और शक्तिसम्पन्न था लेकिन अपने अहंकार के वशीभूत होकर उन शक्तियों का दुरूपयोग करता था और स्वयं को गर्व से असुरराज कहा करता था l रावण एक विचार है , जब धन - वैभव और शक्ति के मद में लोगों की बुद्धि दुर्बुद्धि में बदल जाती है , उन्हें करने के लिए कोई सकारात्मक कार्य नजर ही नहीं आता तब वे मानवता को कष्ट पहुँचाने वाले , प्रकृति और पर्यावरण को नष्ट करने वाले कार्य कर के ही अपने जीवन को धन्य समझते हैं l ईश्वर ने प्राणीमात्र के लिए अनेक योनियां निश्चित की हैं , अब चयन करना व्यक्ति के हाथ में है , मनुष्य ही अपने कर्मों द्वारा अपने लिए चयन करता है कि उसे मनुष्य बनना है , पशु - पक्षी , कीट -पतंगे अथवा पिशाच l
WISDOM ------
मनुष्य धन से नहीं मन से अमीर होता है ---- एक फकीर को एक स्वर्ण मुद्रा मिली , उसने निश्चय किया कि जो सबसे गरीब होगा , उसे ही मैं यह स्वर्ण मुद्रा दूँगा l एक दिन उसे पता लगा कि उसके देश का राजा एक छोटे पड़ोसी देश पर आक्रमण करने जा रहा है l फ़क़ीर के मन में कोई लालच व अहंकार नहीं था इसलिए उसे उस स्वर्ण मुद्रा की जरुरत भी नहीं थी l फकीर बहुत दूर पैदल चलकर राजमहल तक गया और वह स्वर्ण मुद्रा राजा को दे दी l राजा ने इसका कारण पूछा तो फ़क़ीर बोला ---- " मैंने इस स्वर्ण मुद्रा को सबसे गरीब व्यक्ति को देने का निश्चय किया , इसलिए आपको दे दी l यह गरीबी को दूर करने में कुछ सहायक होगी l " राजा बोला ----- " मेरे पास धन , विशाल सेना , राज - वैभव सब है , अमूल्य हीरे = जवाहरात भी हैं , फिर मैं सबसे गरीब कैसे हुआ ? " फ़क़ीर बोला ---- " इतना सब होते हुए भी आप अपने से कमजोर राष्ट्र पर आक्रमण कर रहे हैं , निर्दोष लोगों को जान - माल से बेघर कर रहे हैं , फिर आप से गरीब इस संसार में और कौन होगा ? " यह सुनकर राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ l
24 February 2022
WISDOM -----
जीवन में सफल होने के लिए जरुरी है कि हम श्रेष्ठ साहित्य का स्वाध्याय करें l हमारी नीति कथाएं हमें सावधानीपूर्वक जीवन जीना सिखाती हैं ----- ' एक व्यक्ति नदी किनारे बैठा हुआ था l उसने एक बिच्छू को देखा , जो पानी में बहा जा रहा था l उस व्यक्ति को बिच्छू पर दया आ गई l उसने पानी में डुबकी लगाकर बिच्छू को पकड़ लिया , पकड़ते ही बिच्छू ने उसे डंक मार दिया l वह व्यक्ति दर्द से चीख पड़ा और बिच्छू वापस पानी में गिर गया l उस व्यक्ति ने उसे पुन: दो बार और बचाया लेकिन हर बार उसे डंक का कष्ट भोगना पड़ा l एक विद्वान् व्यक्ति वहीँ खड़ा यह दृश्य देख रहा था , उसने उसे समझाया कि --- ' बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना , वह अपना स्वभाव कभी भी नहीं बदलता l यदि जीवन में तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से हो जिनकी कुटिलता और छल कपट के कारण तुम्हे कष्ट हुआ हो l तब चाहे उनसे समझौता हो भी जाये , पर तब भी हमेशा उनसे सावधान रहो क्योंकि बिच्छू की तरह वो भी अपनी कुटिलता कभी नहीं छोड़ेंगे , अवसर पाकर डंक अवश्य मारेंगे l '
23 February 2022
WISDOM-------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ईश्वर का प्यार केवल सदाचारी व कर्तव्य परायणों के लिए सुरक्षित है l ' कहते हैं सनंदन आचार्य शंकर के प्रथम दीक्षित शिष्य थे l एक दिन की बात है सनंदन किसी काम से अलकनंदा नदी के उस पार पुल से होकर गए थे l तभी आचार्य शंकर ने सनंदन को बड़े ही करुण स्वर में पुकारना शुरू किया l गुरु की पुकार सुनकर सनंदन बेचैन हो गए , उन्होंने सोचा गुरु अवश्य किसी मुसीबत में होंगे , यदि मैंने पुल का रास्ता अपनाया तो पहुँचने में देर हो जाएगी l नदी का प्रवाह बड़ा प्रबल था l लेकिन उनके मन में गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा थी , अत: उन्होंने उफनती अलकनंदा में छलांग लगा दी l गुरु भक्ति देखकर अलकनंदा ने भी उनकी मदद की और सनंदन के प्रत्येक कदम के नीचे कमल के फूल खिला दिए l जिन पर पैर रखते हुए वे तुरंत ही आचार्य शंकर के पास पहुँच गए l अन्य सभी शिष्य इस अलौकिक घटना को देखकर आश्चर्य चकित रह गए l आचार्य शंकर ने कहा ---- " आज से सनंदन पद्मपाद के नाम से प्रसिद्ध होंगे l " गुरु कृपा ही भवसागर को पार करने का एकमात्र उपाय है l
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " ऊंचाई तक जाकर पतन होने के पीछे मनुष्य के कुकर्म ही जिम्मेवार होते हैं l जो शांति से धर्मपथ पर चलते रहते हैं , वे ही ऊंचाइयों को छू पाने में सफल होते हैं l " ------ छोटी सी गौरैया और गिद्ध में प्रतियोगिता तय हुई l निश्चय हुआ कि जो सबसे ऊँचे तक पहुँचेगा , वो जीतेगा l गौरैया फुर्र -फुर्र करती हुई ऊपर उठने लगी तो उसे दो कीड़े दिखाई पड़े , जो गिरते हुए नीचे आ रहे थे l उसने उन दोनों को भी साथ ले लिया और धीरे - धीरे ऊपर जाने लगी l इतनी देर में गिद्ध बहुत ऊपर जा चुका था , पर तभी उसे एक सड़ी लाश दिखाई पड़ी और वह प्रतियोगिता भूलकर मांस खाने जा बैठा l गौरैया प्रतियोगिता जीत गई l दूर से यह घटना देखते एक संत बोले ----- ' ऊँचे उठे फिर न गिरे , यही मनुज को कर्म l औरन ले ऊपर उठे , इससे बड़ो न धर्म l
21 February 2022
WISDOM------
समय के साथ विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन होते रहते हैं लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं कि जब तक मनुष्य के विचार परिष्कृत नहीं होंगे , उनमे सुधार की संभावना बहुत कम रहेगी जैसे महिलाओं पर अत्याचार , घरेलु हिंसा , कार्य स्थल पर महिलाओं की अनेक समस्या l इसमें सुधार के लिए वातावरण को सकारात्मक बनाने की जरुरत है l कहते हैं सुनने और देखने का मानव मस्तिष्क पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है जैसे रामायण पाठ लोग बहुत भाव विभोर होकर सुनते हैं , लेकिन अपनी - अपनी मानसिकता के अनुसार उससे सीखते हैं जैसे सीताजी की अग्नि परीक्षा , उनकी गर्भावस्था में लक्ष्मण जी उन्हें आश्रम छोड़ने गए --- ये ऐसे मार्मिक प्रसंग हैं कि सुनने वालों की आँख में आंसू आ जाते हैं l बहुसंख्यक लोग उससे यही सीखते हैं कि नारी के साथ ऐसा ही होना चाहिए l घर हो या बाहर पुरुष नारी के प्रति कठोर व्यवहार करते हैं l यदि इन्ही प्रसंगों की व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जाये तो लोगों के विचारों में , उनकी नारी के प्रति सोच में परिवर्तन होगा जैसे ----- इस बात को विज्ञानं भी प्रमाणित करता है कि किसी के दाह - संस्कार में जाने पर , या किसी घर में मृत्यु हुई है उस दिन और उसके आगे भी कम से कम दो तीन दिन तक उसके घर जाने के बाद जब वापस लौटते हैं तो शुद्धता की दृष्टि से स्नान आदि अनिवार्य है l तब फिर सीताजी तो उस लंका से वापस आईं थीं जहाँ रावण और उसके एक लाख पूत और सवा लाख नाती मृत्यु को प्राप्त हुए , आसुरी प्रवृति वाले असंख्य राक्षस मारे गए तो वहां का वातावरण कितना बोझिल और विषाक्त होगा इसकी कल्पना की जा सकती है l इसलिए बड़े स्तर पर हवन किया गया ताकि उसकी अग्नि से मिलने वाली ऊर्जा से और धुएं से सारे विषाणु , वायरस नष्ट हो जाएँ l कितने युग पहले रामायण लिखी गई और उसमे आज के समय के पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने का उपाय बताया गया कि कैसे हवन कर के हम विषाक्तता को समाप्त कर पर्यावरण को शुद्ध कर सकते हैं l भगवान राम एकपत्नी व्रत थे , उनके हृदय में सीताजी के प्रति बहुत प्रेम था और समस्त नारी जाति के लिए श्रद्धा का भाव था वे कभी सीताजी का त्याग नहीं कर सकते थे l लेकिन नारी समाज का सृजन करती है l शासन प्रबंध में अच्छे - बुरे हर तरह के प्रसंग आते हैं , गर्भ में पलने वाले बच्चे को उनके दुष्प्रभाव से बचाने के लिए ही सीताजी को आश्रम में भेजा ताकि ऋषि के सत्संग में और प्राकृतिक वातावरण में स्वस्थ , श्रेष्ठ गुण संपन्न संतान हो जो कुल का नाम रोशन करे l विज्ञानं भी इस बात को प्रमाणित करता है कि गर्भ में पलने वाले शिशु पर माँ के विचारों और वातावरण का प्रभाव पड़ता है l इसलिए सीताजी का वनगमन कोई मार्मिक प्रसंग नहीं , बल्कि श्रेष्ठ संतति कैसे हो इसका संदेश है l वर्तमान में भी गर्भकाल में ही शिशु के प्रशिक्षण के लिए मन्त्र , साहित्य आदि उपलब्ध है जो जानकार हैं उसका लाभ उठाते हैं l
20 February 2022
WISDOM -----
हमारे धर्म ग्रन्थ युगों पहले लिखे गए , वे केवल इसलिए नहीं हैं कि हम घंटी बजा कर उनका पाठ कर लें , युग के अनुकूल वे हमें जीवन जीना सिखाते हैं l असुरता तो आदिकाल से ही धरती पर है , हमें उस असुरता पर विजय हासिल करनी है और रामायण का अध्ययन - मनन हमें सिखाता है कि यह जंग हम कैसे जीतें l रावण , मंथरा , सूपर्णखा आज भी इस धरती पर हैं , हमें आसुरी चाल को समझना है , और सीखना है कि उनके लगातार आक्रमण से कैसे बचें ? असुरता सबसे पहले फूट डालती है , मंथरा के मन पर नकारात्मकता का आक्रमण हुआ जो इतना तीव्र था कि राजा दशरथ के प्राण चले गए , परिवार बिखर गया l असुरता आज इसी तरह माइंड गेम खेलती है , परिवार और समाज में फूट डालती है l इसलिए जरुरी है कि हम चौकन्ने रहें , कान के कच्चे न हों l असुरता की सबसे बड़ी चाल यह है कि वह लोगों के अपनों से ही उनके प्राण लेने का , उन्हें घायल करने का प्रयास करती है ताकि वे असुर परदे के पीछे बचे रहें , उन पर कोई आंच न आये l इस बात को इस प्रसंग से समझ सकते हैं कि जब श्री हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तब भरत जी ने उन्हें बाण मारा था , तब हनुमान जी ने भगवान श्रीराम का नाम लिया l इससे यह शिक्षा मिलती है कि हम अपनी पूरी सामर्थ्य से कर्तव्य का पालन करें , उसमे कोई त्रुटि न हो , फिर ईश्वर को पुकारें , तब दैवी शक्तियाँ मदद करती हैं , संजीवनी बूटी जैसी कृपा मिलती है l
19 February 2022
WISDOM -----
लकड़हारे एक बड़े जंगल के मजबूत पेड़ों को काटने का इरादा कर के आये थे l वे चारों ओर घूमे l पेड़ों ने भी उनका इरादा समझा l जब वे चले गए तो पेड़ हँसकर बोले --- इनकी क्या बिसात है जो हम लोगों को काट सकें l इनके हाथ में लोहे की कुल्हाड़ी भर ही तो है l कुछ दिन बाद पेड़ काटने वाले फिर आये l उनके हाथ में लकड़ी के बैंट लगी हुई कुल्हाड़ियाँ थीं l इसे देखकर पेड़ घबराने लगे और कहने लगे --- जब शत्रु पक्ष में अपने ही लोगों का सहयोग जुड़ गया तो अनर्थ होने में कोई संदेह नहीं l लकड़ी के बेंत वाली कुल्हाड़ियों ने सारा जंगल धराशायी कर दिया l ------ स्वार्थ और लालच जब मन पर हावी हो जाता है तब मनुष्य पथभ्रष्ट हो जाता है l
WISDOM -------
हमारे पुराणों में देवासुर संग्राम की अनेक कथाएं हैं l वे कथाएं केवल मनोरंजन की कहानी नहीं हैं , वे कथाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैं ---- आसुरी प्रवृति का व्यक्ति किसी का भी सगा नहीं होता , उसमे अहंकार और स्वार्थ कूट - कूटकर भरा होता है और उसके अत्याचारों की शुरुआत परिवार से ही होती है l कोई बाहरी व्यक्ति या सुरक्षा कर्मी परिवार की समस्याओं में दखल नहीं देता इसलिए ऐसे असुर बड़ी आसानी से अपने ही परिवार के बच्चों और महिलाओं को उत्पीड़ित करते हैं , अपने अहंकार की पूर्ति के लिए बाहरी लोगों की भी सहायता लेते हैं l उनकी यही प्रवृति मजबूत होकर समाज में दंगे - फसाद , अपराध को अंजाम देती है l पुराण में कथा है ---- हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद पर ही सबसे ज्यादा अत्याचार किए , उसे मारने के लिए अपनी शक्ति , छल - छद्द्म , तंत्र - मन्त्र सबका सहारा लिया l इस घृणित कार्य में उसने अनेकों की मदद ली l यहाँ ये बात महत्वपूर्ण है कि ईश्वर ने नृसिंह अवतार लेकर उन अनेकों को नहीं मारा , ईश्वर ने उसी को दंड दिया जो इन सब कृत्यों की जड़ था , उस हिरण्यकश्यप का ही पेट फाड़कर उसे मृत्युदंड दिया l इसी तरह सीताजी ने अशोक वाटिका में उनको विभिन्न तरीकों से सताने वाली राक्षसियों को क्षमा कर दिया और कहा कि वे तो रावण के इशारों पर यह सब अपना पेट पालने के लिए कर रहीं थीं l ये कथाएं यही शिक्षा देती हैं कि चाहें परिवार हो , समाज , राष्ट्र या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बात हो , अत्याचार , उत्पीड़न , अन्याय का जो मूल है , जड़ है , उस हिरण्यकश्यप , उस रावण का अंत करो , शांति अपने आप आ जाएगी
18 February 2022
WISDOM-----
सफलता जिस ताले में बंद रहती है वह दो चाबियों से खुलता है -- एक परिश्रम और दूसरा सत प्रयास l कोई भी ताला यदि बिना चाबी के खोला गया तो आगे उपयोगी नहीं रहेगा l इसी प्रकार परिश्रम और प्रयास के बिना थोपी गई सफलता टिक न सकेगी l जीवन में किए गए सत्कार्य ही स्वर्ग की घंटी बजाते हैं, दरवाजा अवश्य खुलेगा l
WISDOM------
भगवान महावीर एक गांव से गुजर रहे थे , तो एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया ---- " महाराज ! साधु और असाधु में क्या अंतर् है ? साधु कौन ? और असाधु कौन ? क्या हमारे जैसे गृहस्थ भी साधु की संज्ञा पा सकते हैं ? " भगवान महावीर ने जवाब दिया ---- " जिसने स्वयं को साध लिया , वास्तविक साधु वही है l असाधु तो वह है जो केश और वेश से साधु बनने का प्रपंच रचता है l यदि तुमने अपने आप को साध लिया और सुधार लिया , तो निश्चय ही तुम गृहस्थ होते हुए भी साधु हो l " आज संसार में अशांति है , सुविधाएँ बहुत हैं लेकिन सुख नहीं है , लोग तनाव में हैं l इसका कारण यही है कि आज संसार में शराफत का नकाब पहन कर चलने वालों की संख्या बहुत अधिक है , इसकी आड़ में लोग अनैतिक और अमर्यादित काम करते हैं , दूसरों को भी तनाव देते हैं और स्वयं भी तनाव और अशांति का जीवन जीते हैं l बाहरी चमक - धमक सुख का पैमाना नहीं है , दो नावों पर पांव रखकर चलना ---- संतुलन संभव नहीं है l संसार में अच्छे और सन्मार्ग पर चलने वाले भी बहुत हैं लेकिन नकारात्मकता इतनी प्रबल है कि वो अच्छाई को आगे नहीं आने देती l जन्म से कोई बुरा नहीं होता , अपनी मानसिक कमजोरियों के वशीभूत होकर व्यक्ति गलत राह पकड़ लेता है और फिर उसमें उलझता जाता है l इस समस्या का समाधान पं. श्रीराम शर्मा जी ने बताया है ----- ' अपनी गलती को मान लेना , दोषों को न छिपाना , अज्ञानवश हुई गलती का सुधार कर लेना , अपने जीवन की खुली तस्वीर रखना , ताकि सब उसको देख व परख सकें , यही जीवन का विकास करने और आनंद प्राप्त करने की उत्तम कसौटी है l "
17 February 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' बगुला उस आकार की मछली पकड़ता है जो उसकी चोंच में समा सके और गले के नीचे उतर सके , जो इससे बड़ी होती है उसे वह नहीं छेड़ता l समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे ही होते हैं जो हर समय शिकार ढूंढते हैं और घात लगाते हैं l अपने से कमजोर पड़ने वाले पर हमला बोलते हैं l सीधे आक्रमण महंगा पड़ता दीखे तो छल - छद्म की कुटिलता बरतते हैं l विरोधियों को आपस में लड़ा कर कमजोर करते हैं फिर दोनों को ही एक - एक कर के निगल जाते हैं l चोर - चोर आपस में लड़ते नहीं ,, वरन मतलब की दोस्ती गांठते हैं और मौसेरे भाई बन जाते हैं , अनाचारों में एक दूसरे का सहयोग देते और लाभ में हिस्सा बंटाते हैं l शिकार ढूंढते समय वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि दुर्बल या सज्जन पर ही हमला बोला जाये l " आचार्य श्री कहते हैं ये दोनों ही प्रतिरोध नहीं करते इसलिए उनके आक्रमण का शिकार होते हैं l अनेक मित्र संबंधी उनकी मंडली में होते हैं , इन्हे नर पिशाच कहते हैं l
16 February 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " बुद्धि एक महान ईश्वरीय विभूति है , इस विभूति का सदुपयोग जरुरी है l वे कहते हैं ----' हम उत्कृष्ट बुद्धिवादी बने l परम्परागत बुद्धिवाद छोटे - मोटे भेद , रूढ़िग्रस्त धार्मिकता के कारण ही भयानक नर - संहार करता है , लोगों को तलवार के घाट उतार देता है लेकिन उत्कृष्ट बुद्धिवादी विकास पथ का यात्री है , वह घोषणा करता है कि विश्व में शांति का मार्ग भेद फ़ैलाने में नहीं ,-- मेल कराने में है l लाखों वर्षों से हम सब एक दूसरे के दोष देखते रहे , भेदों को बढ़ाते रहे , द्वेष को फैलाते रहे l हमने कभी भी यह नहीं सोचा कि हम में समता अधिक बातों में है और भेद कम विषयों में है l किन्तु हम भेदों पर ही जोर देते रहे l विभिन्न धर्मों में आपस में समानताएं बहुत हैं , भेद जरा सा है l किन्तु इन नगण्य से भेदों के कारण ही भयंकर खून - खराबा हुआ l उत्कृष्ट बुद्धिवादी कहता है भेद को दूर भगाइये और परस्पर मेल के प्रसंग तलाश करिए और उन पर मिलकर काम कीजिए l नवीन युग की नवीन समस्याएं हैं , उनका हल भी नए ढंग से सोचना चाहिए l उत्कृष्ट बुद्धिवादी संत सुकरात और महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन की तरह अपना हृदय प्रकाश के लिए सदा खुला रखता है l उनमे अहंकार नहीं था l एक व्यक्ति ने महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन से कहा ----- " लगता है आपने तो पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है l " तब उन्होंने उत्तर दिया ---- " मेरे सामने ज्ञान का अथाह समुद्र फैला हुआ है , जिसके किनारे बैठकर कुछ ही घोंघे और सीपियाँ उठा पाया हूँ l " ऐसे विनयशील स्वभाव के उत्कृष्ट बुद्धिवादी अपने पीछे आने वाले हर यात्री के प्रति सहानुभूति रखता है l न उस पर रौब दिखाता है और न अपना अहंकार प्रकट करता है l " आज इस बात पर चिंतन - मनन करना जरुरी है कि हमने इतनी वैज्ञानिक प्रगति विकास के लिए की है या मानवता के विनाश के लिए ?
15 February 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "कायरता मनुष्य का बहुत बड़ा कलंक है l कायर व्यक्ति ही संसार में अन्याय , अत्याचार तथा अनीति को आमंत्रित किया करते हैं l संसार के समस्त उत्पीड़न का उत्तरदायित्व कायरों पर है l " जब महाभारत में सात महारथियों ने मिलकर अभिमन्यु का वध किया था , यह कायरता का बीज कलियुग में आते - आते एक विशाल घना वृक्ष बन गया l चाहें छोटे स्तर पर देखें या राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें , हर तरफ एक ही नजारा है , हर ताकतवर अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है , उसको मिटा देना चाहता है l अपने से शक्तिशाली से तो लड़ने की हिम्मत नहीं होती , इसलिए कमजोर को ही उत्पीड़ित कर ऐसे लोग अपने अहंकार को पोषित करते हैं l इसे मानव जाति का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इतने विकास के बाद भी मनुष्य अंदर से टूटा और भयभीत है इसलिए वह लाशों पर राज करना चाहता है l ये लाशें चाहें घातक हथियारों से मिटटी में मिल गई हों या चलती - फिरती हों , जिनकी हर तरह के प्रदूषण के कारण चेतना ही मृत हो गई है l अहंकारी यदि एक पल को भी यह विचार कर ले कि वह अमर नहीं है , अपनी मृत्यु को याद करे तो संभव है कि उसकी चेतना जाग जाये l सूफी फकीर शेख सादी के वचन हैं ------- " बहुत समय पहले दज़ला के किनारे एक मुरदे की खोपड़ी ने कुछ बातें एक राहगीर से कही थीं l वह बोली थी ----- ' ऐ मुसाफिर , जरा होश में चल l मैं भी कभी भारी दबदबा रखती थी l मेरे सिर पर हीरों जड़ा ताज था l फतह मेरे पीछे - पीछे चली और मेरे पांव कभी जमीन पर न पड़ते थे l होश ही न था l एक दिन सब कुछ खत्म हो गया l कीड़े मुझे खा गए और आज हर पाँव मुझे बेरहम ठोकर मारकर आगे निकल जाता है l तू भी अपने कानों से गफलत की रुई निकाल ले , ताकि तुझे मुरदों की आवाज से उठने वाली नसीहत हासिल हो सके l "
14 February 2022
WISDOM -----
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि आसुरी स्वभाव वाले व्यक्ति ऐसे कर्म करते हैं जिनको करने से उन्हें सुख मिलता है , उनका कोई स्वार्थ सिद्ध होता है l वे ऐसा सोचते हैं क़ि कुकर्म करने से यदि उन्हें सुख मिलता है तो उन्हें कुकर्म कर लेना चाहिए l आसुरी प्रवृति के लोग ईश्वर में और कर्म- विधान में विश्वास नहीं करते हैं l इसलिए किसी भी तरह , कितना सुख भोग लें , यही उनके जीवन का उद्देश्य होता है l ' असुर चाहे कर्मफल में विश्वास करें या न करें , उनके कर्मों का परिणाम तो आखिर सामने आता ही है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' संसार के समस्त भोगों को पागल की तरह भोग लेने का भाव रखने वाले व्यक्ति का जीवन भी पागलपन में , अराजकता में बदल जाता है l उनका जीवन लगभग विक्षिप्त के सामान हो जाता है , जिसमे न कोई दिशा है , न गंतव्य l सुख के पीछे भागने की दौड़ कभी समाप्त ही नहीं होती l
13 February 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' वाणी को विराम देना मौन कहलाता है , परन्तु सार्थक मौन उसे कहते हैं , जब मन में सद्चिन्तन होता रहे l जिह्वा को बंद रखकर मन में ईर्ष्या -द्वेष का बीज बोते रहने को मौन नहीं कहा जा सकता l यह तो और भी खतरनाक एवं हानिकारक सिद्ध हो सकता है l मौन के साथ श्रेष्ठ चिंतन और ईश्वर स्मरण आवश्यक है तभी मौन की सार्थकता है l महर्षि रमण सदैव मौन रहते थे l वे बिना बोले ही हर एक की जिज्ञासा को शांत करते और हर कोई उनसे अपनी गंभीर समस्या का समाधान अनायास पा जाता था l महात्मा गाँधी के मौन का प्रभाव सर्वव्यापक था l महान दार्शनिक बंट्रेंड रसेल ने भी मौन की महत्ता को स्वीकार किया है l
12 February 2022
WISDOM ----
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि संसार में समस्त जीव मेरे ही अंश है लेकिन अपनी इन्द्रियों के आकर्षण में वे इस सत्य को भूल गए हैं l ' यह सत्य है कि यदि हम विश्वास करें की हम ईश्वर के अंश हैं , उनसे हमारा निकट का रिश्ता है तो हमारे क्रिया - कलाप श्रेष्ठ होंगे , हम सन्मार्ग का ही चयन करेंगे l लेकिन यदि लोग यह समझेंगे कि हम पहले जंगली थे , हमारे पूर्वज बन्दर थे तो लोगों के क्रिया - कलाप ऐसे ही होंगे कि सब तरफ कोहराम मचा रहे l इस सत्य को समझाने वाली एक कथा है ------- एक सिंहनी गर्भवती थी , वह शिकार को निकली तभी एक शिकारी ने उस पर तीर चला दिया l सिंहनी की तो मृत्यु हो गई लेकिन उसने मरने से पहले एक शावक को जन्म दे दिया l बिन माँ के उस शावक को वन में भटकते देख हिरनों के एक झुण्ड को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे अपने झुण्ड में सम्मिलित कर लिया l हिरनों के साथ पलते - खेलते वह शावक भूल ही गया कि वह सिंह है l जैसा हिरन करते , वैसा ही वह करता l एक दिन एक व्यस्क सिंह उस कोने में पहुंचा , जहाँ यह हिरनों का झुण्ड रहता था l उसको देख सारे हिरन भाग गए , वह सिंह शावक भी उनके संग भागा l उस व्यस्क सिंह के यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ l उसने हिरनों को छोड़कर उस सिंह शावक को पकड़ा और पूछा कि वह क्यों भाग रहा है ? वह डरते - घबराते बोला कि वह तो हिरन है l व्यस्क सिंह को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सिंह शावक स्वयं को हिरन कह रहा है l उसके भ्रम को दूर करने के लिए वह उसे नदी के किनारे ले गया और कहा ---' पानी में झांक कर देख तुझमें और मुझमें क्या अंतर् है ? ' पानी में अपनी परछाई देखते ही उसे समझ आ गई कि वह एक सिंह है , उसकी दहाड़ वापस आ गई l सम्पूर्ण मानव जाति यह स्मरण रखे कि वह परमात्मा का अंश है
11 February 2022
WISDOM -----
जब तक लोगों के विचार परिष्कृत नहीं होंगे , ' जियो और जीने दो ' की भावना नहीं होगी , तब तक अत्याचार और उत्पीड़न समाप्त नहीं हो सकता l केवल स्वतंत्रता मिल जाने से अत्याचार समाप्त नहीं होता l केवल बाहरी ताम -झाम के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि समाज बहुत संवेदनशील है l अत्याचार और उत्पीड़न ऐसा घृणित कार्य है जिसमे पीड़ित व्यक्ति का दिल छलनी हो जाता है , उसकी आत्मा रोती है l अहंकार एक मानसिक विकृति है और इसी विकृति से ग्रस्त लोग संवेदनहीन होते हैं , अपने अहंकार के पोषण के लिए अत्याचार करते हैं l अत्याचार , उत्पीड़न केवल नारी का ही नहीं है , जहाँ जो कमजोर है , वही उनका शिकार है , l यह उत्पीड़न तब और असहनीय होता है जब अपराध करने वाला समाज में खुला घूमता है l अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर कई लोग ऐसे अपराध करते हैं कि वे कभी कानून की पकड़ में आ ही नहीं सकते l कहते हैं प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है , यदि लोग कर्मफल से , ईश्वरीय न्याय से डरने लगें तो स्थिति में कुछ सुधार संभव है l
9 February 2022
WISDOM -----
पुरुष - प्रधान समाज में महिलाओं पर अत्याचार की गाथा कोई नई नहीं है l हर जाति और हर धर्म ने अपने तरीके से नारी को उत्पीड़ित किया है l इतिहास ऐसे उदाहरण से भरा पड़ा है l यह भी पुरुषों की मानसिकता ही है कि नारी को कमजोर , दुर्बल सिद्ध कर के उनके अहं को संतुष्टि मिलती है यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों का पाठ करने में भी नारी को दुर्बल बताया जाता है , उसके पीछे जो गूढ़ अर्थ है उसे छिपा देते हैं l जैसे रामायण का पाठ करने में असंख्य बार यही कहा कि रावण ने सीताजी का हरण किया , वहां वे राक्षसियों के बीच रहीं , फिर रावण के अंत के बाद अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए उन्होंने अग्नि परीक्षा दी , फिर धोबी ने उन पर इल्जाम लगाया , गर्भावस्था में वन में ऋषि के आश्रम में रहीं , जीवन भर कष्ट सहा l इतना कष्ट कि उन्होंने धरती माँ से निवेदन किया कि वे उन्हें अपनी गोद में ले लें , और फिर सीताजी धरती में समां गईं l ऐसी व्याख्या से सामान्य जनता यही समझती है कि औरत का जन्म तो कष्ट सहने के लिए हुआ है , उसे अपनी भावना को व्यक्त करने का अधिकार नहीं है , कष्ट सहो और मिटटी में मिल जाओ l ऐसे विचार रखने वाले महिलाओं को उत्पीड़ित करते हैं l सच तो यह है कि माता सीता साक्षात् जगदम्बा की अवतार थीं , उनके पास अपने पतिव्रत - धर्म की शक्ति थी l वो ऐसे एक क्या हजार रावण को फूँक से उड़ा देतीं लेकिन उन्हें नारी जाति को शिक्षा देनी थी कि तुम सहमी , सिमटी न रहो अन्यथा ऐसे ही रावण तुम्हारे व्यक्तित्व को मिटा देंगे ( अपहरण ) , तुम्हे राक्षसियों के बीच रखकर छल , कपट से अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे , ओछे लोग जिनका अपना कोई चरित्र नहीं होगा ' वे तुम पर इल्जाम लगाएंगे l इसलिए तुम अपनी शक्ति को पहचानों , देवी दुर्गा की तरह शक्तिशाली बनों , अपनी महत्वाकांक्षा पर अंकुश रखो , सोने के मृग के पीछे न भागो l कोई भी धर्म किसी को भी उत्पीड़ित करने का समर्थन नहीं करता l अपने आचरण से शिक्षा दो l जिओ और जीने दो l
8 February 2022
WISDOM -----
रावण प्रतिवर्ष जलाया जाता है , लेकिन फिर भी वह मरा नहीं , रावण एक विचार है जो लोगों के हृदय में आज भी जिन्दा है l यह कलियुग का असर है कि रावण की अच्छाई को कि वह वेद और शास्त्रों का ज्ञाता , महाबलशाली , परम शिवभक्त था --- इन गुणों को समझने व अपनाने वाले बहुत कम हैं लेकिन उसकी बुराई को ग्रहण करने वाले बहुत हैं l रावण का सबसे बड़ा दोष था कि वह कपटी था , उसने छल से , वेश बदलकर माता सीता का अपहरण किया l राम और सीता जंगल में भी खुश थे लेकिन रावण से उनकी खुशी नहीं देखी गई , उसने उनकी ख़ुशी को छीन लिया l रावण जैसा छल - कपट का आचरण करने वाले लोगों की इस युग में भरमार है इसलिए लोगों में तनाव है , परिवार टूट रहे हैं l छल , कपट करने के तरीके बदल गए l ------ हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l छल -कपट , षड्यंत्र कभी एक व्यक्ति अकेले नहीं करता l जैसे रावण की एक विशाल सेना थी , मारीच , सुबाहु अनेक राक्षस उसने अपने अनैतिक कार्यों और निर्दोष ऋषियों को उत्पीड़ित करने के लिए लगा रखे थे , इसी तरह रावण जैसी मानसिकता के लोग भी बहुत बड़े समूह में रह कर ही अपने नापाक इरादों को अंजाम देते हैं l विभीषण का चरित्र भी एक शिक्षा देता है ---- यदि कभी कोई रावण जैसे शक्तिशाली और छल , कपट , षड्यंत्र करने वालों के बीच घिरा हुआ हो तो उनसे किसी प्रकार की लड़ाई कर के या उन्हें समझाकर नहीं जीता जा सकता , उससे अपनी रक्षा का एक ही उपाय है --- अपना कर्तव्य पालन करते हुए ईश्वर की शरण में जाना , ईश्वर के प्रति समर्पण l तब भगवान स्वयं न्याय करते हैं , रावण मारा गया और विभीषण का राज्याभिषेक l ईश्वर अपने भक्तों का मान बढ़ाते हैं , श्रीराम तो भगवान थे , उन्हें तो मालूम था कि रावण की नाभि में अमृत है लेकिन उन्होंने यह रहस्य विभीषण से पूछकर उसका मान बढ़ाया विभीषण भी सिर उठाकर कह सके कि अधर्म के नाश जैसे युग निर्माण के कार्य में वह भी भगवान का सहयोगी था l
7 February 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' यदि समाज में संवेदनशीलता का गुण नहीं है तो उसमें केवल शोषण संभव है , उसमें मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं होता l शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ लेकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग किया जाये और अनुपयोगी होने पर उसे उठाकर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार का क्रूरता का भाव है , जिसमें मानवीय संवेदनशीलता का कोई स्थान नहीं है l इसके लिए इनसान केवल उपभोग की वस्तु है और जब कोई उपभोग के लायक नहीं रहे तो उसे निर्ममता और क्रूरता के साथ उठाकर फेंक दिया जाये l यह सिद्धांत आज के अधिकांश संबंधों में कार्य करता नजर आता है l इसका परिणाम अत्यंत विनाशकारी होता है क्योंकि इसमें विकृति है , विकार है l अत: यह विनाश का प्रतीक है l " शोषण हमेशा शक्तिशाली कमजोर का करता है l विशेष रूप से जो कायर होते हैं , मानसिक रूप से विकृत होते हैं वे जोंक की तरह होते हैं l जब भी किसी समाज में वीरता और शौर्य जैसे सद्गुणों का अभाव हो जाता है तो वह समाज पतन के गर्त में गिरने लगता है l यदि हमें मानवता को जीवित रखना है तो मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने वाली संस्थाएं हों l क्योंकि शोषण में केवल शोषित व्यक्ति ही दुःखी नहीं रहता , शोषण करने वाला भी मानसिक तनाव , अपराध - बोध और आत्म -प्रताड़ना से गुजरता है l अपनी आत्मा को कुचलकर किसी तरह इससे बच भी जाये , तो ईश्वर के दंड - विधान से नहीं बच सकता l
6 February 2022
WISDOM ----
काम , क्रोध , लोभ , मोह , मनुष्य की वो कमजोरियाँ हैं जिनमे फँसकर मनुष्य भटकता रहता है , उसे न मुक्ति मिलती है , न शांति l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी इसे स्पष्ट करने के लिए एक कथा कहते हैं ----- भँवरे को यों तो सभी फूलों से प्यार होता है , लेकिन उसे कमल के फूल से सबसे अधिक प्यार होता है l वह फूलों के पराग - रस का मतवाला होता है l कमल के फूल में जैसे उसके प्राण बास्ते हैं और इस अतिमोह में वह अपने प्राण गँवा देता है l सुबह से शाम तक कमल के सौंदर्य और स्वाद में खोया हुआ भंवरा सांझ होने पर भी उसके मोह से नहीं निकल पाता l सांझ होने पर सूर्य अस्त की वेला में कमल की पंखुड़ियाँ बंद होने लगती हैं , पर कमल की माया में बंधा भंवरा वहीँ जस का तस बैठा रहता है l कमल के पूरी तरह बंद होने पर भंवरा उसी में कैद हो जाता है l जो भ्रमर अपने पराक्रम से कठोर काष्ठ को भी काटकर चूर -चूर कर देता है , वही मोहवश कमल की कोमल पंखुड़ियों को नहीं काट पाता , बस , उन्ही के बीच सहमा , सिकुड़ा बैठा रहता है l उसे प्रतीक्षा रहती है सुबह होने की , पर यह सुबह उसके जीवन में कभी नहीं आती l कमल के अंदर प्राणवायु के अभाव में उसके प्राण ही निकल जाते हैं अथवा सरोवर में स्नान करने आये हाथी उस समूची कमलनाल को उखाड़ कर ही खा जाते हैं l उस भ्रमर के भाग्य में मृत्यु के अलावा और कुछ नहीं होता l
5 February 2022
WISDOM ------
आज संसार में लोगों के सामने इतनी समस्याएं हैं , तनाव है , सुख -शांति नहीं है , इसके मूल में प्रमुख कारण यही है कि जीवन जीने की कला का ज्ञान नहीं है l यह ज्ञान किसी स्कूल , कॉलेज या किसी संस्था में अध्ययन करने से नहीं आता l इसके लिए श्रेष्ठ और प्रामाणिक ग्रंथों के स्वाध्याय की जरुरत है l श्रीमद्भगवद्गीता , रामायण , महाभारत और पुराणों की कथाएं हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं l उनके अध्ययन - मनन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संसार में अच्छा और बुरा दोनों है , ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है , हमारी वृत्ति हंस जैसी होनी चाहिए कि हम श्रेष्ठता को चुने और अपने समय व शक्ति का सदुपयोग करें l महाभारत का पात्र - दुर्योधन , सुयोधन था लेकिन गलत मार्ग का चयन करने , ईर्ष्या , द्वेष और षड्यंत्र में लिप्त रहने के कारण वह दुर्योधन कहलाया l ईर्ष्या , द्वेष तो उसमें इतना कूट - कूटकर भरा था कि जब पांडव उसके छल - कपट से जुए में हारकर वन में थे , तब भी उसने उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने , उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी l जैसी उसकी करनी थी , वैसा ही उसका परिणाम उसे मिला l दूसरी और पांडव थे , जिन्होंने अपने वनवास के वर्षों को विलाप कर नहीं बिताया और न ही परेशान हुए , यह समय उन्होंने स्वयं को हर दृष्टि से अधिक योग्य बनाने में बिताया , अर्जुन ने तपस्या से भगवान शिव से और देवराज इंद्र से अमोघ अस्त्र प्राप्त किये , अपने व्यक्तित्व को निखारा , स्वर्ग की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी उर्वशी ने जब उनसे प्रणय निवेदन किया तो अर्जुन ने कहा -- जब आप नृत्य कर रही थीं तब मेरी दृष्टि आपके चरणों पर थी , आप मेरी माँ समान पूजनीय हो l उर्वशी ने चाहे क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया , लेकिन अर्जुन का मन , उनकी भावना श्रेष्ठ थी इसलिए वह श्राप भी उनके लिए वरदान बन गया l हमारे धर्म ग्रन्थ हमें संसार से भागना नहीं सिखाते , बल्कि यह शिक्षा देते हैं कि विपरीत परिस्थितियों का कैसे सकारात्मक तरीके से , धैर्य और विश्वास के साथ सामना किया जाये l
4 February 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " धैर्य , धर्म और साहस दिव्य गुण हैं जो मनुष्य को ईश्वर विश्वास से ओत -प्रोत करते हैं l जीवन के कठिनतम समय में , सारी विपरीतताओं में भी इन गुणों का अपने जीवन में अवश्य पालन करना चाहिए l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' धैर्य का तात्पर्य है --- अनगिनत कष्टों , पीड़ा व मान - अपमान को शांत भाव से सहना l इनसे विचलित नहीं होना और इनके प्रति प्रतिक्रिया न देना l धैर्य से आत्मबल बढ़ता है l धैर्य सहना कायरता नहीं है l धैर्यवान वही हो सकता है , जो साहसी एवं वीर होता है l सच्चा साहस धैर्य से ही जन्म लेता है l मन को किसी भी स्थिति में हीन एवं क्षीण मत होने दो l वायु और अंतरिक्ष कभी किसी से नहीं डरते l " कष्ट , अपमान , पीड़ा सहना सामान्य बात नहीं है लेकिन जो धैर्य से सब सहन करता है , प्रतिक्रिया नहीं करता वही सच्चा साहसी है l एक सत्य घटना है ------ अमेरिका का एक प्रसिद्द मुक्केबाज था , जो विश्व चैंपियन भी बना l एक बार वह एक रेस्टोरेंट में भोजन करने गया l वहां कुछ युवक भी बैठे थे , जो शराब के नशे में उस मुक्केबाज को उलटा - सीधा बोलने लगे , परन्तु वह मुक्केबाज उनकी बातों को चुपचाप सहन कर शांत भाव से वहां से वापस लौटने लगा l मुक्केबाज के साथ आये उसके मित्र बोले --- " अरे , इनसे डरकर वापस लौटने की क्या आवश्यकता है ? इनमें से कोई ऐसा नहीं है , जो तुम्हारा एक घूंसा भी ढंग से सहन कर सके l " मुक्केबाज शांत भाव से बोला ---- " यही तो बात है l निर्बल पर बल दिखाना साहसी का कार्य नहीं है , सच्चा साहस तो शक्ति होते हुए भी विपरीतताओं को सहन कर जाने में है l "
3 February 2022
WISDOM -----
मन , वचन और कर्म में एकरूपता को सत्य कहते हैं l यह सत्य भी समय और परिस्थिति को देखते हुए ही बोलने का निर्देश है l देश के रक्षक यदि गोपनीय सूचनाओं को शत्रुओं के समक्ष सही प्रकट कर दें तो राष्ट्र की रक्षा के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो जायेगा l एक कथा है ----- एक बार एक कसाई अपनी बूढ़ी गाय को ढूंढते हुए एक निर्जन स्थान से गुजरा l वहां एक ब्राह्मण वेद पाठ कर रहा था l कसाई ने उससे गाय के बारे में पूछा , तो उसने वस्तुस्थिति को भांपते हुए गोलमोल उत्तर दिया , कहा --- जिसने देखा , वह बोलती नहीं और जो बोलती है उसने देखा नहीं l इससे एक साथ दो प्रयोजन सधे l गाय की प्राण रक्षा भी हो गई और मिथ्या न बोलने का संकल्प भी पूरा हो गया l ऐसे ही कठोर सत्य को न बोलने के निर्देश हैं l
2 February 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- अहंकार एक ऐसा दोष है जिसके उत्पन्न होते ही काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या द्वेष आदि विकार उठ खड़े होते हैं l ' अहंकार का सबसे बड़ा दोष यह है कि अहंकारी चाहता है कि सब उसके आगे सिर झुकाएं , वही सर्वश्रेष्ठ है l अहंकार को जब पोषण नहीं मिलता तब यही अहंकार उसे काँटे की तरह चुभता है , घाव की तरह रिसता है l अहंकार घाव है , फिर हर चीज उसी में लगती है l अहंकारी स्वयं अपने लिए नरक की सृष्टि करता है , उससे किसी की हँसी , किसी की ख़ुशी देखी नहीं जाती l वह अपनी पूरी ऊर्जा दूसरों की ख़ुशी छीनने में ही गँवा देता है रावण , कंस , दुर्योधन , हिटलर आदि को उनका अहंकार ही खा गया l हिरण्यकश्यप तो स्वयं को भगवान समझने लगा था , उसके अहंकार को तो अपने ही पुत्र प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से ही चोट लगी l उसने अपने पुत्र को मृत्यु के मुँह में धकलने के असंख्य प्रयास किए l कहते हैं जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास हो , वह मृत्यु को दिन - रात अपने सामने देखकर भी विचलित नहीं होता क्योंकि उसे पता है कि उसके जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में है l भगवान भी अपने भक्त को कष्ट देने वाले को कभी क्षमा नहीं करते l जब हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने दौड़ा तो नृसिंह भगवान खम्भे से प्रकट हो गए और हिरण्यकश्यप को अपनी गोदी में लिटाकर अपने नाखूनों से उसका पेट चीर डाला l जिस वरदान के बल पर वह इतना अहंकारी था , उसी से उसका अंत हो गया l
1 February 2022
WISDOM -----
आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं , यंत्रों के साथ रहने से मन भी यंत्रवत हो गया है l धर्म के नाम पर जितने झगड़े , दंगा - फसाद इस युग में हुआ , उतना पहले कभी नहीं हुआ l कहा तो यही जाता है कि महाभारत -- धर्म और अधर्म के बीच युद्ध था , जो धर्म पर था वह विजयी हुआ l लेकिन जो युद्ध कर रहे थे , वे सब भाई - भाई थे , एक ही जाति के थे l इसी तरह राम - रावण के बीच युद्ध भी धर्म और अधर्म के बीच था l रावण तो परम शिवभक्त था , महापंडित , वेद - शास्त्रों का ज्ञाता था , फिर भी वह अधर्मी था , उसी की तरह आसुरी प्रवृति के उसके साथी थे l भगवान राम धर्म के रथ पर सवार थे , उनकी सेना में नर , वानर , भालू , रीछ सब थे l जाति के आधार पर कोई विवाद नहीं था , अनीति , अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए युद्ध था l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' धर्म का मर्म है ----- अन्याय का प्रतिकार , अनीति का विरोध एवं आतंक का उन्मूलन l धर्म की सार्थकता प्रकृति का पोषण करने में है और कमजोर व दीन - दुःखियों के पीड़ा और पतन निवारण में है l " मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है , स्वार्थ , लोभ , लालच ऐसा हावी है कि वह धर्म के मर्म को नहीं समझता और अपनी सारी ऊर्जा व्यर्थ के झगड़ों में व्यय कर देता है जिनका कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं निकलता l सत्य तो यही है कि महाभारत की तरह अत्याचार , अन्याय , उत्पीड़न परिवार से ही शुरू होता है जैसे भीम को जहर देकर तालाब में फेंक दिया , लाक्षागृह में पांडवों को जलाने का प्रयास , फिर द्रोपदी का अपमान ---- यही अत्याचार , अपमान , अन्याय ने युद्ध का रूप ले लिया l जिनकी धर्म में रूचि है वे जहाँ हैं वहीँ अत्याचार , उत्पीड़न को रोकें तभी वे सच्चे धार्मिक होंगे l