एक नदी किनारे शिव मंदिर था l वहीँ पास के घाट पर धोबियों का पत्थर भी पड़ा था , जिस पर धोबी अपने कपड़े पटककर धोते थे l मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग और धोबी का पत्थर , हजार वर्ष पहले एक ही थे l नदी के जल के बहाव ने दोनों को अलग -अलग कर दिया और काल क्रम ने एक को शिवलिंग और दूसरे को धोबी का पत्थर बना दिया l धोबी का पत्थर आत्महीनता का अनुभव कर दुःखी रहता था l शिवलिंग को उसकी आत्मव्यथा का बोध था l वह उससे बोला ---- " मित्र ! तुम्हारा दुःख निरर्थक है l यह ठीक है कि मैं अपने समीप आने वालों को शांति प्रदान करता हूँ , किन्तु तुम तो निर्विकार भाव से हर किसी का मैल धोते हो l तुम्हारी साधना मुझसे कहीं बढ़कर है l सत्य तो यह है कि मेरे पास आने की प्रथम कसौटी तुम्ही हो l " शिवलिंग के ये मधुर वचन सुनकर धोबी घाट का पत्थर गदगद हो उठा , उसे अपना महत्त्व समझ में आया और आत्महीनता दूर हुई l
5 October 2022
WISDOM -----
प्रकृति हमें हर पल संकेत देती है , लेकिन मनुष्य उसे समझता नहीं है या अपने विकारों में इस तरह बंधा हुआ है कि समझते हुए भी नासमझी करता है l हमारे देश में विजयदशमी पर रावण जलाया जाता है , प्रतिवर्ष यह रावण और बड़ा होता जाता है l धार्मिक आस्था भी है , रोजगार की द्रष्टि से भी पटाखे , मेला आदि से लोगों को कुछ न कुछ आमदनी हो जाती है , त्योहार के बहाने लोग खुशियाँ भी मना लेते हैं l इन सब बातों से अलग हटकर प्रकृति के खेल निराले हैं l यदि विजयदशमी के दिन बहुत तेज पानी बरस जाए तो असुरता को छिपाने के बहुत तरीके हैं l रावण , कुम्भकरण , मेघनाद सभी पुतले रूपी असुरों को छिपा लिया जाता है , इसी में प्रकृति का सन्देश छिपा है कि अपने ऊपर अच्छाई का आवरण डालकर अपने भीतर बैठी कामना , वासना , तृष्णा , छल , कपट , षड्यंत्र , लोभ , लालच , अति महत्वाकांक्षा जैसी दुष्प्रवृतियों को मत छिपाओ , ये दुष्प्रवृत्तियाँ व्यक्ति को जीता -जगता रावण बना देती हैं , इनसे सारा संसार त्रस्त है l जैसे सद्गुण वंशानुगत हैं , अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह सीख लिया वैसे ही ये बुराइयां, दुष्प्रवृत्तियाँ भी वंशानुगत है , पीढ़ी -दर -पीढ़ी चलती रहती हैं और सन्मार्ग दिखाने वाला कोई न हो तो बढती जाती हैं रावण ने असुरों का ही साम्राज्य खड़ा किया , एक लाख पूत , सवा लाख नाती सब असुर थे l इसलिए प्रकृति हमें सिखाती है कि अपने भीतर की असुरता को मिटाओ l प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है , उसके क्रोध से कोई बच नहीं सकता l