आसुरी शक्तियां जब बल से किसी को नहीं जीत पातीं तब वे छल का सहारा लेती हैं l आसुरी प्रवृति के लोग अपनी योग्यता , अपने ज्ञान का उपयोग विनाशकारी कार्यों में करते हैं जिससे संसार के सामने महासंकट पैदा हो जाता है और उनका अहंकार स्वयं उनके विनाश का कारण बनता है l रामचरितमानस में प्रसंग है --- बालि और सुग्रीव दोनों भाइयों में प्रगाढ़ प्रेम था l सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि को पिता की तरह मान - सम्मान देता था l बालि ने तपस्या से अनेक वरदान प्राप्त किये थे , उसे अपने बल और वरदान का बहुत अहंकार था l रावण को भी उसने अनेकों बार पराजित किया था l इस कारण उसका अहंकार और अधिक बढ़ा - चढ़ा था l उसके अहंकार के कारण ही अतिप्रेम करने वाले दोनों भाइयों में शत्रुता हो गई l प्रशंसा से उसके अहंकार को पोषण मिलता था , इसलिए जिसने भी उसकी तारीफ की वह उसे अपना सगा मान लेता था l इस कारण चाटुकार और चापलूस उसे पथभ्रमित करते थे l सुग्रीव ने भगवान राम की शरण ली और भगवान के हाथों बालि का वध हुआ l
26 September 2020
WISDOM ----- अत्याचारी और अनीति पर चलने वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए
भीष्म पितामह शरशय्या पर थे l उत्तरायण की प्रतीक्षा थी l युद्ध रुक चूका था l सभी उनके पास आते एवं उनसे धर्म का मर्म पूछते l वे सब की जिज्ञासाओं का यथोचित उत्तर देते l पाँचों पांडव व महारानी द्रोपदी भी उन्हें प्रणाम करने आये l पितामह को ऐसे शरशय्या पर लेटा देख सबका हृदय दुःखी था , पर द्रोपदी उन्हें धर्मोपदेश देते देखकर हँसने लगी l युधिष्ठिर ने उलाहना दिया --- 'ऐसे समय में यह असामाजिक आचरण क्यों ? ' तब द्रोपदी ने कहा --- मुझे सीधे पितामह से बात करने दीजिए l " पितामह ने स्नेहपूर्वक द्रोपदी से कहा कि वह अपनी बात कहे l तब द्रोपदी बोलीं --- " जब आप कौरवों के साथ राजसभा में थे व मेरी लाज लुट रही थी , तब आपका यह धर्मज्ञान कहाँ चला गया था तात ! " भीष्म बोले ---- " द्रोपदी ! तेरा असमंजस सही है l कुधान्य से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी l उचित - अनुचित का भेद भी नहीं था l उसके एहसानों ने मेरा मुँह बंद कर दिया था l अब वह कुधान्य रक्त बनकर मेरे घावों से रिस रहा है तो धर्मोपदेश का सही समय व अधिकार मेरे पास है l " द्रोपदी का समाधान हो गया l