सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था l तीन वर्ष तक वह मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में रहा l चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की महानता , कुशल शासन प्रबंध और भारतीय जनता की उच्च सामाजिक और मानवीय चेतना का वृतान्त उसने चीन में अपने मित्र को सुनाया था l उसने इस वृतान्त को लिपिबद्ध कर लिया था l जो आज उस समय की हमारी सभ्यता , संस्कृति , धर्म और सामाजिकता की उच्चता का प्रमाणिक दस्तावेज है l उसकी कुछ पंक्तियाँ हैं -------- " अनेकों बार मैं ऐसे प्रदेशों से गुजरा हूँ , जहाँ मुझे अपने लूटे जाने का भय उपजा था क्योंकि मेरे पास सम्राट और अतिथि सत्कार प्रिय नागरिकों द्वारा भेंट किए गए बहुमूल्य वस्त्र -आभूषण और मूल्यवान पुस्तकें थीं l अकेले सुनसान जंगलों और वीरान सड़कों से गुजरते हुए मेरे मन में ऐसी आशंका उत्पन्न हो जाती थी कि कोई मुझे लूट लेगा l लेकिन जो भी मिला उसने सहायता ही की l किसी ने भी मुझे परेशान नहीं किया और विनम्र शब्दों में अपना आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया l कितने अच्छे हैं यहाँ के लोग --- सभी , सुसंस्कृत , शिष्ट और उदार , तभी तो सम्रद्धि इनके चरण चूमती है l ------- संपन्न होते हुए भी ये लोग धन को नहीं , चरित्र को महत्त्व देते थे l सत्य और नैतिकता पालने वाला व्यक्ति ही समाज में सम्मानित माना जाता था l व्यक्ति की महत्ता का आधार उसका चरित्र था , धन नहीं l लोग मांस , मदिरा का सेवन नहीं करते थे l ------- " फाह्यान के वर्णन से पता चलता है कि वो काल हमारी सभ्यता और संस्कृति के चरम -उत्कर्ष का काल था l आज हमें आत्म अवलोकन करने की जरुरत है कि हम कहाँ थे और क्या हो गए ? किसी भी जाति , धर्म का अस्तित्व उसकी संख्या पर नहीं , उसके चरित्र पर निर्भर करता है l छल - कपट , धोखा , बेईमानी , षड्यंत्र , दूसरों का हक छीनना , दूसरा कोई सुखी न रहे इसलिए उसके परिवार में फूट डलवा देना , घरेलू हिंसा , शोषण , अपहरण , बलात्कार , झूठ , बेईमानी , भ्रष्टाचार छोटे -बड़े घोटाले , कला और साहित्य में अश्लीलता , विभिन्न अपराधिक कार्य -------- किस जाति और किस धर्म में ज्यादा हैं ? इसके लिए किन्ही फाइलों में आंकड़ों को नहीं तलाशना है l हम किसी भी जाति या धर्म के हों हमें अपने ही अंतर को टटोलने की , अपने ही ह्रदय में झाँकने की जरुरत है l ----- अंत में एक ही सत्य समझ में आएगा कि संसार में एक ही जाति है ----- मानवीयता और एक ही धर्म है ----- इंसानियत l l जब अति हो जाती है फिर भगवान का डंडा पड़ेगा तो , बस ! यही बचेगा ' मानव धर्म ' l हम इनसान बनें , उसी में जीवन की सार्थकता है l