11 January 2023

WISDOM ------

   जीवन -प्रसंग ---- महर्षि  कणाद  केवल  कण  बीनकर  अपनी  गुजर  कर  लेते  थे  इसलिए   उनका    नाम  कणाद  पड़  गया  l  किसान  जब  खेत  काट  लेते  थे  , तो  उसके  बाद  जो  अन्न  के  कण  पड़े  रह  जाते  थे  ,  उन्हें  ही  बीनकर  वे  अपना  जीवन  चलाते  थे  l  वहां  के  राजा  को  जब  उनके  इस  अभाव  का  पता  चला  तो   उन्होंने  अपने  मंत्री  को   प्रचुर  धन  सामग्री  लेकर   उनके  पास  भेजा  l  मंत्री  के  पहुँचने  पर  महर्षि  ने  कहा --- " मैं न सकुशल  हूँ  l  इस धन  को  तुम   उन्हें  बाँट  दो   जिन्हें  इसकी  आवश्यकता  है  l "   ऐसा  तीन  बार  हुआ  l  अंत  में  राजा  स्वयं   बहुत  सारा  धन  लेकर  उनसे   मिलने  गए   और  महर्षि  से  सम्पदा  को  स्वीकार  करने  की  प्रार्थना  की  l   महर्षि  ने  कहा --- "  यह  धन  उन्हें  दे  दो  , जिनके  पास  कुछ  भी  नहीं  है  l  देखो  मेरे  पास  तो  सब  कुछ  है  l "  राजा  ने  चकित  होकर   उनकी  ओर  देखा  l  जिसके  शरीर  पर  केवल   एक  लंगोटी  है  ,  वह  कह  रहा  है  उसके  पास  सब  कुछ  है  l  राजा  ने  महर्षि  से  कुछ  नहीं  कहा  और  वापस  लौटने  पर   रानी  को  सब  कथा  कह  सुनाई  l   रानी    विवेकवान  थी   l  उसने  कहा --- " आपने  भूल  की  l  ऋषि  के  पास  कुछ  देने  नहीं  , बल्कि  उनसे  कुछ  लेने  जाना  चाहिए  l  जिनके  पास  भीतर  की  संपदा  है  , वे  ही  बाहर  की  संपदा  छोड़ने  में  समर्थ  होते  हैं  l  l "  रानी  की  बात  सुनकर  राजा   उसी  समय  महर्षि  के  पास  गए   और  उनसे  ज्ञान  की  याचना  की  l   इस  पर  महर्षि  ने  कहा --- "  राजन  ! संपदा  बाहर  भी  है  और  भीतर  भी  l  बाहर  की  संपदा  मिलने  पर   उसका  खोना  सुनिश्चित  है   लेकिन  भीतर  की  सम्पदा  मिल  जाने  पर   वह  सदा  बनी  रहती  है  l  उसे  पा  लेने  के  बाद  कुछ  और  पा  लेना  शेष  नहीं  रह  जाता  l  "