एक बार रानी रासमणि के गोविन्द जी की मूर्ति पुजारी के हाथ से गिरने के कारण खंडित हो गई l रानी रासमणि ने ब्राह्मणों से इलाज पूछा l ब्राह्मणों ने खंडित मूर्ति को गंगा में विसर्जित कर नई मूर्ति बनवाने का सुझाव दिया l उनके इस सुझाव से रानी बहुत दुःखी हुईं कि जिन गोविन्द जी को इतनी श्रद्धा , भक्ति के साथ पूजा जाता रहा , उन्हें अब गंगा में विसर्जित करना पड़ेगा l उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से इस संबंध में पूछा तो वे बोले ----- "यदि आपके किसी सम्बन्धी का पैर टूट जाता तो आप उसकी चिकित्सा करवातीं या उसे नदी नदी में प्रवाहित करतीं ? रानी रासमणि उनका आशय समझ गईं l उन्होंने खंडित मूर्ति को ठीक कराया और पहले की भांति पूजा आरंभ कर दी l एक दिन किसी ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा --- " मैंने सुना है इस मूर्ति का पैर टूटा है l l" इस पर वे हंसकर बोले ---- "जो सबके टूटे को जोड़ने वल्र हैं , वे स्वयं टूटे कैसे हो सकते हैं l "
11 September 2022
WISDOM --
कर्म फल ---- जब गौतम बुद्ध श्रावस्ती विहार कर रहे थे तो महापाल नामक व्यापारी उनके प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित हुआ l उसने अपना घर छोड़ दिया और बुद्ध से दीक्षा लेकर एक गाँव में कठोर साधना करने लगा l उसके साथ ऐसा कुछ हुआ कि कि उनके नेत्रों की द्रष्टि चली गई उसके बाह्य चक्षु प्रकाश विहीन हो गए l अब लोग उसे चक्षुपाल कहने लगे l तथागत चक्षुपाल के जीवन को पवित्र बताया करते थे l एक बार किसी शिष्य ने बुद्ध से पूछा ---" यदि चक्षुपाल का जीवन पवित्र है तो वह अँधा कैसे हो गया ? " बुद्ध बोले --- " पूर्व जन्म में चक्षुपाल वैद्य था l एक बार एक अंधी महिला उसके पास दवा माँगने आई और यह कहा कि यदि उसे अंधेपन से मुक्ति मिल गई तो वह उसकी दासी बनना स्वीकार कर लेगी l वैद्य की दवा से उसके नेत्र ठीक हो गए , लेकिन वचन याद आने पर उसने वैद्य से झूठ कह दिया कि नेत्र ठीक नहीं हुए हैं l वैद्य को अपनी दवा पर भरोसा था , इसलिए उसने उस झूठी स्त्री को दण्डित करने के लिए उसे अंधे हो जाने की दवा दे दी l उस दवा के प्रयोग से वह स्त्री अंधी हो गई l इसी पाप के परिणाम स्वरुप चक्षुपाल इस जन्म में अँधा हुआ है l " वैद्य का कर्तव्य और उसका धर्म है रोगी को अपनी सामर्थ्य अनुसार स्वस्थ करने का पूर्ण प्रयत्न करना l लेकिन वह अपने अहंकार और बदले की भावना से अपने धर्म से च्युत हो गया और जानबूझकर उसे गलत दवा दे दी जिसके कारण वह अंधी हो गई l इससे शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का अहित नहीं करना चाहिए l