12 October 2020

WISDOM ------

   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  अर्जुन   को  कहते  हैं  कि   भोगविलास  में   डूबे   एक  सामान्यजन  की  जीवनदृष्टि    उलटी  होती  है   अर्थात  जो  मानव  को  अपनी  गरिमा  के  अनुरूप  करना  चाहिए  ,  वह  उससे  उलटा   करता  है  ,  एक  नर - पशु  जैसी  जिंदगी  जीता  है  l   लेकिन  स्थितप्रज्ञ  व्यक्ति  धीर - गंभीर  होता  है   l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   उदाहरण  देकर  स्थितप्रज्ञ  की  विवेचना  की  है ----  '  रामकृष्ण  परमहंस  के  पास  गिरीश बाबू (जीसी )  की  बहस  चल  रही  थी   कि   स्थितप्रज्ञ  कैसा  होता  है  ?  गिरीश  बाबू  को  परमहंसजी  ने   चर्चा   हेतु  रोक  लिया   और  स्वामी  विवेकानंद  से  कहा  कि  वे  पंचवटी  में  जाकर  ध्यान  करें  l   चारों  ओर   से  मच्छरों   ने   स्वामी  विवेकानंद  को  ढक   लिया,   मानों   काली   चादर    हो   लेकिन  फिर  भी  उनका  मन  एकाग्र  रहा  ,  जरा  भी  विचलित  नहीं  हुआ  l   गिरीश  बाबू  को  भी  रामकृष्ण  परमहंस  ने   नरेंद्र ( स्वामी  विवेकानंद )  के  पास  बैठकर  ध्यान  करने  को  कहा  l   लेकिन  मच्छरों  के  कारण   वे  विचलित  रहे  l   अंदर  से  एक  कंबल   भी  ले  आए  लेकिन  कहीं  न  कहीं  से  मच्छर  उसमे  घुस  गए  ,  इस  कारण  वे  अस्थिर  हो  गए  ध्यान  न  कर  सके  l  लेकिन  मच्छरों  के  सतत   आक्रमण  के  बाद  भी  स्वामी  विवेकानंद   सतत   आठ  घंटे  ध्यानस्थ  रहे  l  गिरीश  बाबू  मच्छर  उड़ाते ,  आश्चर्य  से  स्वामी  विवेकानंद  को  देखते  रहे  l    विवेकानंद जी  उठे  --- अपना  हाथ  हिलाया  ,  सारे  मच्छर  उड़  गए  l   गिरीश  बाबू  ने  पूछा  --- ' इतने  मच्छरों  के  होते  हुए  आपने  कैसे  ध्यान  कर  लिया  ,  , हम  नहीं  कर  पाए  l  स्वामीजी  बोले --- ' ध्यान   तो आत्मा  से  किया  जाता   है  l   मच्छर  तो   शरीर   को काट  रहे  थे  ,  आत्मा  को  थोड़े  ही  कष्ट  दे  रहे  थे  l '    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---  स्थितप्रज्ञ  समुद्र  की  तरह  धीर - गंभीर   व्यक्तित्व  वाला  होता  है  l   जिस  तरह  समुद्र  चारों  ओर  से  आने  वाले  जल  को   अपने  अंदर  समा  लेता  है  ,  फिर  सीमा  का  उल्लंघन  नहीं  करता  है   , इसी  तरह  स्थितप्रज्ञ   कितने  ही  कष्ट  आएं ,   कितने  ही  विषयों   का  आक्रमण  हो  ,  कभी   विचलित नहीं  होता  ,  शांत  बना  रहता  है  l