11 August 2020

WISDOM -----

   " दुःख  में  सुमिरन  सब  करें ,  सुख  में  करे  न  कोय   l  जो  सुख  में  सुमिरन  करे , दुःख  काहे   को  होय  l  "   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान   कहते  हैं  --- शुभ  और  अशुभ  दोनों  ही  प्रकार  के  कर्मों  का  फल  मनुष्य  के  लिए   बाधक  है  l '  --------- इस  तथ्य  को  समझाते   हुए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं   -----  शुभ  कर्मों  का  फल  भोगते - भोगते   कर्तापन  का  अभिमान  हो  जाता  है  l  भाग्य  अच्छा  होता  है  तो  मिटटी  भी  सोना  बन  जाती  है   और  फिर  अहं   और  ऐश्वर्य   सिर   पर  चढ़कर  बोलने  लगता  है  ,  जहाँ  खड़ा   हो जाता  है  वहां  जय - जयकार  होने  लगती  है  l  राजनीति , समाजतन्त्र , धर्मतंत्र   में  कई  ऐसे  व्यक्ति  देखे  जाते  हैं  , जिनके  शुभ  फलों  का  उदय  होते  ही   वे  छलांग  लगाने  लगते  हैं  , रातोंरात  चर्चित  हो  जाते  हैं  ,  पर  यह  सब  स्थायी  नहीं  है  l    अशुभ  फल  जब  पैदा  होते  हैं   तो  हर  जगह  विपदा  ही  विपदा  नजर  आती  है  , अपमान  , षड्यंत्रों  की  श्रंखला  आ  जाती  है    l   हमें  अशुभ  के  क्षणों  में  शुभ  की    तैयारी    करते  रहना  चाहिए   और  शुभ  के  क्षणों  में ,  सुख  के  समय   अशुभ  के  लिए  भी  तैयार  रहना  चाहिए  l  हम  सुख  के  क्षणों  को   योगमय  बना  लें  l   सबको  साझीदार  बनाकर  पुण्य  बांटे   l   सुख  में  कभी  भगवान   को  न  भूलें   l   सुख  आये  तो  उसे  सहज  रूप   स्वीकार  कर  लें  , बौराएँ  नहीं    और  दुःख  आए   तो  उसे  तितिक्षा  मानकर  झेल  लें  l   परमात्मा  सबकी  परीक्षा   दुःखों   के  माध्यम  से  लेता  है   l