पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' हमारी भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि यहां भिन्न - भिन्न रूपों में उपासना ' बहुदेववाद ' के माध्यम से प्रचलित है l हम चाहे किसी को भी मानें, भाव परमपिता परमेश्वर के प्रति समर्पण का हो , उनके कार्य को आगे बढ़ाने का ही हो l ------ सुप्रसिद्ध तंत्रसाधक स्वामी सर्वानंद काली के उपासक थे l राजा कृष्ण उपासक थे l राजधर्म के अंतर्गत सभी को श्रीकृष्ण को ही आराध्य देव मानने का राज्यादेश था l उनसे किसी ने शिकायत की कि यह साधु अपनी ही चलाता है , राजधर्म का पालन नहीं करता l राजा ने पूछा तो सर्वानंद ने कहा कि जो आप करते हैं , वही हम करते हैं l राजा ने कहा ---- हम उपासना स्थली देखेंगे l काली का फोटो आपके यहाँ है कि नहीं यह भी देखेंगे l सर्वानंद स्वामी ने सब कुछ महामाया पर छोड़ दिया l राजा के साथ आये सभी लोगों ने काली की मूर्ति देखी , पर राजा को वहां श्री कृष्ण की मूर्ति दिखाई दी l बाहर आकर बोले ---- हमने देख लिया , वह कृष्ण का ही उपासक है l तुम जबरदस्ती उसकी शिकायत करते हो l राजा को वहां श्रीकृष्ण दीखे और लोगों को काली l भिन्न - भिन्न रूपों में भगवान की शक्तियां हैं , पर एक सच्चा योगी सभी में परमपिता परमेश्वर के दर्शन करता है l यदि यह एकात्मता का भाव बना रहे तो धर्म के नाम पर होने वाले झगड़े पैदा ही न हों l