1 March 2021

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   लिखते  हैं   -----  विपरीत  परिस्थितियां ,  कठिनाइयाँ   हमें  सिखाने   आती   हैं  l   सीखने   वाली  मानसिकता  इससे  बहुत  कुछ  सीख  जाती  है  ,  इसके  संकेतों  को  पहचान  लेती  है  l  कठिनाइयों  से  जूझने  के  लिए  कभी - कभी  ईश्वरीय  संकेत   आता  है   l   जो  इस  संकेत  को  समझ  लेता  है   और  पुरुषार्थ  करता  है  ,  वही  संघर्ष  के  दरिया  को  पार  कर  लेता  है   l   कठिनाइयों  में  कुछ  ऐसा  रसायन  है  ,  जो  आदमी  को  फौलाद  के  समान  बना  देता  है   l  '        विपरीत  परिस्थितियों  में    हम  अत्यंत  संवेदनशील  हो  जाते  हैं    और  ईश्वर  का  ध्यान , स्मरण  करते  है  , परमात्मा      की  ऒर   उन्मुख  होते  हैं   l -----   महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हो  चुका  था  l   महाराज  युधिष्ठिर   एवं  महारानी  द्रोपदी  राजसिंहासन  पर  विराजमान  थे   l    उस  समय   योगेश्वर  कृष्ण  ने  राजमाता  कुंती  से  पूछा  ---- ' बुआ  !  अब  तुम्हारे  पुत्र    विजेता   हैं   l  आप  राजमाता  हैं   l   ऐसे  में  आपको  और  क्या  चाहिए   ? "  तब  कुंती   ने कहा ---- "  हे  कृष्ण  !  यदि  तुम  मुझे  कुछ  देना  ही  चाहते  हो   तो  मुझे   दुःखों   का  वरदान  दो   l  "  कृष्ण जी  ने  कहा --- ' वह  क्यों  बुआ   ?  आपने  तो  सारा  जीवन  दुःख   उठाया  है   l   दीर्घकाल  के  बाद  ये  सुख  के  क्षण   आए   हैं  ,  तब  ऐसा  क्यों  कह  रही    हैं  ? '   राजमाता  कुंती  बोलीं  ---- ' वह  इसलिए  ,  क्योंकि  दुःखों   में  तुम्हारे   भजन   का  क्रम   अखंड  बना  रहता   है  l  परिस्थितियों  में   भले  ही  दुःखों   की  काली  छाया  बनी   रहे  ,  परन्तु   मन:स्थिति  में  भक्ति  का  उजाला  निरंतर  बना  रहता  है   l  '