पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- विपरीत परिस्थितियां , कठिनाइयाँ हमें सिखाने आती हैं l सीखने वाली मानसिकता इससे बहुत कुछ सीख जाती है , इसके संकेतों को पहचान लेती है l कठिनाइयों से जूझने के लिए कभी - कभी ईश्वरीय संकेत आता है l जो इस संकेत को समझ लेता है और पुरुषार्थ करता है , वही संघर्ष के दरिया को पार कर लेता है l कठिनाइयों में कुछ ऐसा रसायन है , जो आदमी को फौलाद के समान बना देता है l ' विपरीत परिस्थितियों में हम अत्यंत संवेदनशील हो जाते हैं और ईश्वर का ध्यान , स्मरण करते है , परमात्मा की ऒर उन्मुख होते हैं l ----- महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था l महाराज युधिष्ठिर एवं महारानी द्रोपदी राजसिंहासन पर विराजमान थे l उस समय योगेश्वर कृष्ण ने राजमाता कुंती से पूछा ---- ' बुआ ! अब तुम्हारे पुत्र विजेता हैं l आप राजमाता हैं l ऐसे में आपको और क्या चाहिए ? " तब कुंती ने कहा ---- " हे कृष्ण ! यदि तुम मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे दुःखों का वरदान दो l " कृष्ण जी ने कहा --- ' वह क्यों बुआ ? आपने तो सारा जीवन दुःख उठाया है l दीर्घकाल के बाद ये सुख के क्षण आए हैं , तब ऐसा क्यों कह रही हैं ? ' राजमाता कुंती बोलीं ---- ' वह इसलिए , क्योंकि दुःखों में तुम्हारे भजन का क्रम अखंड बना रहता है l परिस्थितियों में भले ही दुःखों की काली छाया बनी रहे , परन्तु मन:स्थिति में भक्ति का उजाला निरंतर बना रहता है l '