6 June 2022

WISDOM-------

   परस्पर  सम्मान  का  भाव  हमारे  रिश्तों  को   और  उन  रिश्तों  के  भविष्य  को  कितना  प्रभावित  करता  है  ------- इस  तथ्य  को  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने   रामायण  और  महाभारत  के  उदाहरण  से  स्पष्ट  किया  है  l --------   रामायण ------- कैकेयी  मंथरा  के  बहकावे  में  आ  गई  l  भरत  को  राज्य  और  राम  को  वनवास  मांग  बैठी  l  राम  वनवास  पर  दशरथ जी  ने  शरीर  त्याग  दिया   l  भरत जी  को  वैराग्य  हो  गया   l  माता  कौशल्या  पर  तो  दुःखों   का  पहाड़  टूट  पड़ा   l  परन्तु  ऐसी  स्थिति  में  भी  किसी   ने  किसी  के  सम्मान  पर  चोट  नहीं  की  l   कौशल्या  राम  को  छोड़ना  नहीं  चाहती  थीं  ,  परन्तु   एनी  माताओं  के  सम्मान  का  उन्हें  पूरा  ध्यान  था  ,  अत:  उन्होंने  राम  को  वन  जाने  की  अनुमति  दे  दी   l   जब  राजा  जनक  ने  सुना  कि  जानकी  भी  साथ  गईं  हैं है  तब  उन्होंने  दूतों  द्वारा  सही  स्थिति  का  पता  लगाया   और  भरत  का  समर्थन  करने  चित्रकूट  पहुँच  गए   l  भरत  के  कारण  राम -सीता  को  वनवास  हुआ  ,  इस  नाते   भरत  को  अपमानित  करने  का  उन्होंने  भूलकर  भी  प्रयास  नहीं  किया   l   ऐसे  एक -दूसरे  के  सम्मान  के  भाव  ने  विकट    परिस्थितियों  में  भी  अयोध्या  का  संतुलन  बनाए  रखा   l  जो  भूल  थी  वह  भूल  रह  गई   उससे  परस्पर  स्नेह  में  कोई  फरक  नहीं  पड़ा   l  राम  की  अनुपस्थिति  में   और  राम  के  के  आने  के  बाद  भी   पारिवारिक  सद्भाव  स्वर्गीय  सुख  देता  रहा   l        दूसरी  ओर  महाभारत   एक - दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने   की  ही  भीषण  प्रतिक्रिया   के  रूप  में  उभरा   l  दुर्योधन  ने  राजमद  में  पांडवों  को  सम्मान  नहीं  दिया   l  तो  प्रतिक्रिया  में  भीम  भी  अपने  बल  का  उपयोग  कर  के  उन्हें  तिरस्कृत  करने  लगे   l  द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई   कि  दुर्योधन   को    ' अंधे  का  बेटा    अँधा  '   संबोधन  से    अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l  दुर्योधन  भी  द्वेष वश    नारी  के  शील  का  महत्त्व  ही  भूल  गया   तथा  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने   पर  उतारू  हो  गया  l    यही  सब  कारण  जुड़ते  गए   और  छोटी -छोटी  शिष्टाचार  की  त्रुटियों  की   चिनगारियां  भीषण  ज्वाला  बन   गईं  l  यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  गया  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश   रखा   जा  सका  होता  ,तो  स्नेह  बनाए  रखने  में   कोई  कठिनाई   नहीं  होती   l  भीष्म  पितामह  और  भगवान  कृष्ण  जैसे    युग -पुरुषों  के  प्रभाव  का  लाभ   मिल   जाता   l