12 December 2022

WISDOM -----

   आचार्य  गुरुकुल  में शिष्यों  को  पढ़ा  रहे  थे  l  एक  शिष्य  ने   प्रश्न   किया --- " गुरूजी  ! धन , कुटुंब  और  धर्म  में  कौन  सच्चा  सहायक  होता  है  ? "  आचार्य  बोले --- " वत्स  ! धन  वह  है  , जिसे  मनुष्य  जीवन  भर  प्रिय  समझता  है  ,  लेकिन  उसकी  मृत्यु  के  बाद   धन  उसके  साथ  एक  कदम  की  भी  यात्रा  नहीं  करता  l  कुटुंब  यथा संभव   सहायता  तो  करता  है  , परंतु  उसका  सहयोग  भी   शरीर  रहते  तक  ही  है  l  मात्र  धर्म  ही  ऐसा  है  ,  जो  लोक  और  परलोक   दोनों  में  मनुष्य  का  साथ  देता  है   और  उसे  दुर्गति  से  बचाता  है  l  यद्यपि  मनुष्य  जीते  जी  इसकी  उपेक्षा  करता  है  ,  तब  भी  यही  धर्म  मनुष्य  को   चिरस्थायी  सुख -शांति  प्रदान  करता  है  l  "  यहाँ  धर्म   का  अर्थ  वह  धर्म  नहीं  जिसके  नाम  पर  लोग  लड़ते  हैं   l   स्वार्थी  तत्वों  ने  धर्म  को  अपनी  स्वार्थ पूर्ति  का  जरिया  बना  लिया   इसलिए  धर्म  ही  विकृत  हो  गया  l   यदि  हमें  धर्म  को  समझना  है  तो  भगवान  राम  और  रावण  के  युद्ध  को  देखें   एक  ओर   आसुरी  तत्वों  का  प्रतीक  रावण  था  और  दूसरी  ओर   मर्यादापुरुषोत्तम  राम  थे  l  महाभारत  में  कोई  साम्प्रदायिकता  नहीं  थी    , वह  अधर्म  के  नाश  और   धर्म  व  न्याय  की  स्थापना  के  लिए  युद्ध  था  l   जिसमे  सत्य  ,न्याय  और  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले  और  सच्चे  धर्म  के  प्रतीक  पांडव  थे  तो  दूसरी  ओर   छल , कपट , षड्यंत्र , अपनों  का  ही  हक   छीनना , अहंकार  से  ग्रस्त  अधर्मी  कौरव  थे  l  यदि  संसार  में  शांति  चाहिए  तो  रामायण  और  महाभारत  की  शिक्षाओं  को  लोगों  को  जानना  होगा   और  गीता  के  व्यवहारिक  ज्ञान  से  जीवन  जीने  की  कला  सीखनी  होगी  l