30 December 2018

WISDOM -- ----- जो अपना अहंकार छोड़कर ईश्वर की शरण में जाते हैं उनकी जिम्मेदारी भगवान स्वयं सँभालते हैं

   हमारे महाकाव्य  'महाभारत '  के  प्रसंग  हमें  प्रेरित करते  हैं  कि  अनीति  से  निपटना  है  तो  ईश्वर के शरणागत  हो   l   ऐसे  भक्त का  सम्पूर्ण  भार  भगवन  स्वयं   वहन  करते  हैं  l
   महाभारत  की  एक कथा  है  ----  इस  युद्ध  में   कौरव  पक्ष  के  अनेक  महारथी  मृत्यु  को प्राप्त हुए   ,  अंत  में  दुर्योधन  बचा  l  भीम  ने  दुर्योधन  को  गदा युद्ध  के  लिए  ललकारा   l   यह  द्वंद  युद्ध  था --- ऐसा  युद्ध  जिसमे  एक  ही  जीवित  रहेगा  l   दुर्योधन  जानता  था  कि  उसकी  माँ  पतिव्रता  हैं ,   अपने  पति  के  अंधे  होने  के  कारण  उसने  भी  संकल्प  ले  लिया  था  की  वह  भी  इन  आँखों  से  दुनिया  नहीं  देखेगी   और  आँखों  पर  पट्टी  बाँध  ली  थी   l    पतिव्रता  नारी  का  जो  बल  था ,  दुर्योधन  उसका  एक  अंश  चाहता  था   l  इस  हेतु  प्रार्थना  करने  वह  माता  गांधारी  के  पास  गया  l   पुत्र  के  प्रेम वश  गांधारी  ने  कहा ----  "  तू  निर्वस्त्र  होकर  आना  ,  मैं  आँख  की  पट्टी  खोलूंगी  ,  तू  खड़े  रहना  l '
   भगवान  श्रीकृष्ण  अन्तर्यामी  थे  ,  वे  जानते  थे  कि  यदि  ऐसा हुआ  तो  दुर्योधन  का  समूचा  शरीर  वज्र  का  हो  जायेगा  l  फिर  इसे कोई  हरा  नहीं  सकता  l   जब  दुर्योधन  वस्त्रहीन  होकर  जा रहा  था ,  उसी समय  वहां  रास्ते  में   कृष्ण जी   पहुँच  गए  l   उन्होंने  दुर्योधन   से  इसका  कारण  पूछा  दुर्योधन  को  शर्मिंदगी  महसूस  हुई   l  भगवान  ने   कहा ---- ' दुर्योधन   !  कुछ  तो   शरम   करो  l  तुम  इतने  बड़े ,  माँ के  सामने वस्त्रहीन  खड़े  होगे ,  अच्छा  लगेगा  क्या   ?   बचपन  की  बात  और  होती  है   l  कम  से कम  पत्ते लपेट  लो ,  मेरा  पीताम्बर  लपेट  लो  l  "
  दुर्योधन  को कृष्ण  की बात   समझ  में  आ  गई   l  वह  भगवान  की  लीला  समझ  न  सका  l  गांधारी  के पास  पहुंचकर  प्रणाम  किया  l   माँ  ने  पूछा --- ' जैसे मैंने  कहा , वैसे  ही  आये   हो   तो  पट्टी  खोलूं  l '
 दुर्योधन  ने  हामी  भरी  l 
गांधारी ने  वर्षों  से  आँखों  पर बंधी  पट्टी  खोली  l    दुर्योधन  को  देख  उसकी  आँखों  से  आंसू  झरने लगे   ,  वह  भगवान  की  लीला  को  समझ   गईं  l   कृष्ण  के  कहे  से  दुर्योधन  ने  जितना  शरीर  ढक लिया  था  ,  वह  वज्र का नहीं  हो  पाया   l    अनीति  का अंत  तो  होना  ही  था   l  बलराम  का  शिष्य  दुर्योधन   बहुत   वीर  था   लेकिन  बहुत   अहंकारी  था   l    समूचे  कौरव  कुल  का  नाश  हो  गया  l 
      पांडव  धर्म  और  नीति  के  मार्ग  पर  थे   l  अर्जुन  भगवान  की  शरण  में  था  ,  भगवन  कृष्ण   ने    स्वयं  उसके   रथ  की  डोर  संभाली   और  हर  कदम  पर  पांडवों  की  रक्षा  की   l