अहंकार के वशीभूत होकर जिसने भी स्वयं को भगवान मानने का प्रयास किया उसका अंत होता है l अहंकारी अपनी महत्वाकांक्षा हेतु अनीति और अधर्म का सहारा लेता है l प्राचीन से लेकर आधुनिक समय तक चाहे रावण हों , हिरण्यकश्यप हों ,, अथवा सिकंदर , हिटलर , मुसोलिनी कोई भी हों , इन सब को अपनी शक्ति का बहुत अहंकार था जिसका उन्होंने दुरूपयोग किया , उनका अंत हुआ l
अहंकार का सबसे बड़ा कारण है --- धन और शक्ति का प्राप्त होना l जिसके पास ये दोनों है वह सबसे बड़ा अहंकारी हो जाता है , फिर अपनी शक्ति को निरंतर बढ़ाते हुए वह पूरे संसार को अपनी मर्जी से चलाना चाहता है l जो उसके इस अहंकार के आगे सिर न झुकाए , उसे वह बर्दाश्त नहीं करता है l
रामचरितमानस में विभीषण का चरित्र आज के युग में हमें स्वाभिमान से जीने की प्रेरणा देता है l विभीषण ने रावण के अहंकार के आगे अपना सिर नहीं झुकाया l विभीषण जानता था कि रावण ने अनीति और अधर्म से सोने की लंका खड़ी की है और अपनी शक्ति के बल पर वह राक्षसों को , अपने एजेंटों को भेजकर ऋषियों पर और निर्दोष जनता पर अत्याचार करता है l अत्याचार की अति तो तब हो गई जब उसने नारी पर अत्याचार किया , माँ सीता का अपहरण किया l विभीषण ने यही कहा कि ---'- इस अधर्म के मार्ग को छोड़ो , यदि अनीति , अत्याचार की नीति को नहीं छोड़ना है तो तुम्हारी लंका तुम्हे मुबारक l हम वनवासी राम के साथ कष्ट सहकर रह लेंगे l '
विभीषण ने रावण का सारा वैभव छोड़ दिया , सारे सुखों को तिलांजलि देकर वह वनवासी राम के पास आ गया l सत्य और धर्म के साथ चलकर थोड़ा - बहुत कष्ट भी हो तो वह स्वीकार है l
आज संसार में चारों ओर धन का बोलबाला है l अहंकार उनका दुर्गुण है , लेकिन हम अपनी जरूरतों के लिए उनके आगे सिर झुककर उनके अहंकार को पोषित करते हैं , इसलिए उनका अहंकार बढ़ता जाता है l
व्यक्ति हो या कोई देश यदि अपने साधनों में संतुष्ट रहे , जो कुछ अपने पास है उसी का सर्वोत्तम उपयोग कर के अपनी तरक्की का प्रयास करे तो सुख - शांति से जीवन जी सकता है और अहंकारियों द्वारा किए जाने वाले उत्पात से भी बच सकता है l
अहंकार का सबसे बड़ा कारण है --- धन और शक्ति का प्राप्त होना l जिसके पास ये दोनों है वह सबसे बड़ा अहंकारी हो जाता है , फिर अपनी शक्ति को निरंतर बढ़ाते हुए वह पूरे संसार को अपनी मर्जी से चलाना चाहता है l जो उसके इस अहंकार के आगे सिर न झुकाए , उसे वह बर्दाश्त नहीं करता है l
रामचरितमानस में विभीषण का चरित्र आज के युग में हमें स्वाभिमान से जीने की प्रेरणा देता है l विभीषण ने रावण के अहंकार के आगे अपना सिर नहीं झुकाया l विभीषण जानता था कि रावण ने अनीति और अधर्म से सोने की लंका खड़ी की है और अपनी शक्ति के बल पर वह राक्षसों को , अपने एजेंटों को भेजकर ऋषियों पर और निर्दोष जनता पर अत्याचार करता है l अत्याचार की अति तो तब हो गई जब उसने नारी पर अत्याचार किया , माँ सीता का अपहरण किया l विभीषण ने यही कहा कि ---'- इस अधर्म के मार्ग को छोड़ो , यदि अनीति , अत्याचार की नीति को नहीं छोड़ना है तो तुम्हारी लंका तुम्हे मुबारक l हम वनवासी राम के साथ कष्ट सहकर रह लेंगे l '
विभीषण ने रावण का सारा वैभव छोड़ दिया , सारे सुखों को तिलांजलि देकर वह वनवासी राम के पास आ गया l सत्य और धर्म के साथ चलकर थोड़ा - बहुत कष्ट भी हो तो वह स्वीकार है l
आज संसार में चारों ओर धन का बोलबाला है l अहंकार उनका दुर्गुण है , लेकिन हम अपनी जरूरतों के लिए उनके आगे सिर झुककर उनके अहंकार को पोषित करते हैं , इसलिए उनका अहंकार बढ़ता जाता है l
व्यक्ति हो या कोई देश यदि अपने साधनों में संतुष्ट रहे , जो कुछ अपने पास है उसी का सर्वोत्तम उपयोग कर के अपनी तरक्की का प्रयास करे तो सुख - शांति से जीवन जी सकता है और अहंकारियों द्वारा किए जाने वाले उत्पात से भी बच सकता है l