पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---' महत्व को पाने की ललक एक ऐसा विष है , जो जिस क्षेत्र में घुलेगा उसे विषैला बनाएगा l इसकी टोह में लगा आदमी अंदर से नीति , मर्यादाओं और अनुशासन की अवहेलना करते हुए बाहर से नैतिक , मर्यादित और अनुशासनप्रिय दिखाने का प्रयत्न करता है l सम्मान पाने के लिए नकली समाज सेवी पनपते हैं , अमीरी पाने के लिए चोरी , बटमारी , तस्करी फैलती है l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- 'नैतिकता या अच्छाई का खोल ओढ़े लोगों से अनैतिक अमर्यादित दिखने वाले लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक खतरा है l बुराई बुराई है पर अच्छाई के गर्भ में बुराई को भरण - पोषण मिलना और अधिक भयंकर है l पाप को पाप समझ लेने के बाद उससे बचा जा सकता है , लेकिन जो पाप पुण्य की आड़ में किया जाता है , उससे बच पाना बहुत कठिन है l बुराई का अपना कोई अस्तित्व नहीं है , वह अच्छाई में घुसकर पनपती है l
शत्रु से बचाव आसान है , पर मित्र बने शत्रु से बच पाना असंभव है l जितने व्यक्ति जहर से नहीं मरते उतने मिठाई में जहर छिपा कर दिए जाने से समाप्त हो जाते हैं l डाकू को पहचानना और उससे बचना सामान्य क्रम है किन्तु साधु के वेश में घूमने वाले डाकू से बच पाना आसान नहीं है l डाकू संसार की जितनी हानि नहीं करते तथाकथित सफ़ेद पोश उससे कहीं अधिक परेशानी खड़ी करते हैं l
महानता कमाई जाती है , इसे किसी तरह छीनना - झपटना संभव नहीं है l अपनी स्थिति को बढ़ा - चढ़कर दिखाने का प्रयत्न विकास की राह से भ्रष्ट कर देता है और हमेशा यही डर बना रहता है कि कहीं भेद न खुल जाये l '
आचार्य श्री लिखते हैं --- 'नैतिकता या अच्छाई का खोल ओढ़े लोगों से अनैतिक अमर्यादित दिखने वाले लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक खतरा है l बुराई बुराई है पर अच्छाई के गर्भ में बुराई को भरण - पोषण मिलना और अधिक भयंकर है l पाप को पाप समझ लेने के बाद उससे बचा जा सकता है , लेकिन जो पाप पुण्य की आड़ में किया जाता है , उससे बच पाना बहुत कठिन है l बुराई का अपना कोई अस्तित्व नहीं है , वह अच्छाई में घुसकर पनपती है l
शत्रु से बचाव आसान है , पर मित्र बने शत्रु से बच पाना असंभव है l जितने व्यक्ति जहर से नहीं मरते उतने मिठाई में जहर छिपा कर दिए जाने से समाप्त हो जाते हैं l डाकू को पहचानना और उससे बचना सामान्य क्रम है किन्तु साधु के वेश में घूमने वाले डाकू से बच पाना आसान नहीं है l डाकू संसार की जितनी हानि नहीं करते तथाकथित सफ़ेद पोश उससे कहीं अधिक परेशानी खड़ी करते हैं l
महानता कमाई जाती है , इसे किसी तरह छीनना - झपटना संभव नहीं है l अपनी स्थिति को बढ़ा - चढ़कर दिखाने का प्रयत्न विकास की राह से भ्रष्ट कर देता है और हमेशा यही डर बना रहता है कि कहीं भेद न खुल जाये l '