5 July 2018

WISDOM ---- कर्मकांड की सार्थकता तब है जब उसके साथ सेवा - परोपकार के कार्य किये जाएँ

  नदी  के  किनारे  संत  ज्ञानेश्वर  जा  रहे  थे   l  समीप  में  ही  एक  लड़का  स्नान  कर  रहा  था  l  एकाएक  लड़के  का  पैर  फिसल  गया   और  वह  तेज  बहाव  में  चला  गया  l  लड़का  सहायता  के  लिए  चिल्लाया  ,  पर  किनारे पर  बैठे  महात्मा  अपने  जप  में  लगे  रहे  l  एक  बार  डूबते  बालक  को  देख  लिया  और   फिर    आँखें   बंद  कर  लीं   l  संत  ज्ञानेश्वर  बिना  विलम्ब  किये  नदी  में  कूद  पड़े   और  डूबते  बालक  को   बाहर   खींच  लाये   l 
 किनारे  पर  जप  कर  रहे  महात्मा  से   संत  ज्ञानेश्वर  ने  पूछा ,  आप  क्या  कर   रहे  हैं   ?    महात्मा  ने  कहा --- जप  कर  रहे  हैं  , और  पुन:  आँख  बंद  कर  ली  l   संत  ने  पूछा -- क्या  ईश्वर  के  दर्शन  हुए   ?
 महात्मा  ने  कहा --- नहीं ,   मन  स्थिर  नहीं  हो  रहा  है   l 
  संत  ज्ञानेश्वर  ने  कहा --- तो  उठो ,  पहले  दीन - दुःखियों  की  सेवा  करो  ,  उनके  कष्टों  में  हिस्सा  बंटाओ अन्यथा  उपासना  का  कोई  विशेष  लाभ  नहीं  मिलेगा   l  महात्मा  को  अपनी  भूल  मालूम  हुई   कि  सच्चा     ज़प  तो  ये  था  कि    डूबते  हुए  बच्चे  को  बचाया  जाता   l  उस  दिन   से  महात्मा    उपासना  के  साथ  दीन - दुःखियों  की   सेवा  में  लग  गए  l