पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' यदि समाज में संवेदनशीलता का गुण नहीं है तो उसमें केवल शोषण संभव है , उसमें मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं होता l शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ लेकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग किया जाये और अनुपयोगी होने पर उसे उठाकर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार का क्रूरता का भाव है , जिसमें मानवीय संवेदनशीलता का कोई स्थान नहीं है l इसके लिए इनसान केवल उपभोग की वस्तु है और जब कोई उपभोग के लायक नहीं रहे तो उसे निर्ममता और क्रूरता के साथ उठाकर फेंक दिया जाये l यह सिद्धांत आज के अधिकांश संबंधों में कार्य करता नजर आता है l इसका परिणाम अत्यंत विनाशकारी होता है क्योंकि इसमें विकृति है , विकार है l अत: यह विनाश का प्रतीक है l " शोषण हमेशा शक्तिशाली कमजोर का करता है l विशेष रूप से जो कायर होते हैं , मानसिक रूप से विकृत होते हैं वे जोंक की तरह होते हैं l जब भी किसी समाज में वीरता और शौर्य जैसे सद्गुणों का अभाव हो जाता है तो वह समाज पतन के गर्त में गिरने लगता है l यदि हमें मानवता को जीवित रखना है तो मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने वाली संस्थाएं हों l क्योंकि शोषण में केवल शोषित व्यक्ति ही दुःखी नहीं रहता , शोषण करने वाला भी मानसिक तनाव , अपराध - बोध और आत्म -प्रताड़ना से गुजरता है l अपनी आत्मा को कुचलकर किसी तरह इससे बच भी जाये , तो ईश्वर के दंड - विधान से नहीं बच सकता l