7 February 2022

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' यदि  समाज  में  संवेदनशीलता  का   गुण    नहीं  है   तो  उसमें  केवल  शोषण  संभव  है  ,  उसमें  मानवीय  मूल्यों  का  कोई  स्थान  नहीं  होता  l   शोषण  की  मानसिकता  है  कि   दूसरे  की  कमियों  का  लाभ  लेकर   उसे  सदा  नियंत्रण  में   रखो   और  अपना  हित   साधने  के  लिए   उसका  उपयोग  करो  l  जब  तक  वह  उपयोगी  है  ,  तब  तक  उसका  उपयोग   किया  जाये   और  अनुपयोगी  होने  पर   उसे  उठाकर  फेंक  दिया  जाये  l   शोषण  के  साथ  एक  प्रकार  का  क्रूरता  का  भाव  है  ,  जिसमें  मानवीय  संवेदनशीलता    का  कोई  स्थान  नहीं  है   l   इसके  लिए  इनसान   केवल  उपभोग  की  वस्तु  है   और  जब  कोई  उपभोग  के  लायक  नहीं  रहे  तो  उसे  निर्ममता  और  क्रूरता  के  साथ  उठाकर   फेंक  दिया  जाये  l  यह  सिद्धांत  आज  के  अधिकांश  संबंधों  में   कार्य  करता  नजर  आता  है   l   इसका  परिणाम  अत्यंत  विनाशकारी  होता  है   क्योंकि  इसमें  विकृति  है ,  विकार  है   l   अत:  यह  विनाश  का  प्रतीक   है   l "     शोषण  हमेशा  शक्तिशाली   कमजोर   का    करता    है  l   विशेष  रूप  से  जो  कायर  होते  हैं  ,  मानसिक  रूप  से  विकृत   होते  हैं    वे   जोंक  की  तरह   होते  हैं   l    जब  भी  किसी  समाज  में   वीरता  और  शौर्य  जैसे  सद्गुणों   का  अभाव  हो  जाता  है   तो  वह  समाज   पतन  के  गर्त  में   गिरने  लगता  है  l   यदि   हमें मानवता  को  जीवित  रखना  है  तो  मानवीय  मूल्यों   की  शिक्षा  देने   वाली  संस्थाएं  हों   l   क्योंकि  शोषण    में   केवल शोषित  व्यक्ति  ही  दुःखी   नहीं  रहता  ,  शोषण   करने वाला  भी   मानसिक  तनाव ,   अपराध - बोध    और  आत्म -प्रताड़ना   से  गुजरता  है   l    अपनी  आत्मा  को  कुचलकर  किसी  तरह   इससे  बच  भी  जाये  ,  तो  ईश्वर  के  दंड - विधान  से  नहीं  बच  सकता  l