परमात्मा ने चींटी से लेकर हाथी तक की सृष्टि रचना कर डाली l तब तक सृष्टि में न कोई उत्पात खड़ा हुआ न झंझट खड़ा हुआ l न ईश्वर से कोई कुछ मांगता न कोई शिकायत करता l किन्तु जब से वह मनुष्य की रचना कर चुका , तो उस दिन से परमात्मा बड़ा हैरान , बड़ा परेशान रहने लगा l नित नए उपद्रव , दंगे - फसाद , शिकायतों फरियादों का ताँता लग गया l सब काम रोककर शिकायतें निबटाते ही दिन बीतता l एक दिन परमात्मा ने देवताओं की बैठक बुलाई और कहा कि हमसे जीवन में पहली बार इतनी बड़ी भूल हुई है जितनी कभी नहीं हुई l अनेकों जीवों की रचना की , तब तक हम बड़े चैन से थे , किन्तु जब से मनुष्य की रचना की पूरी मुसीबत खड़ी हो गई l नित्य ही दरवाजे पर मांगने वालों और फरियाद करने वालों की भीड़ जमा रहने लगी है l अब कोई उपाय भी नहीं सूझता कि क्या किया जाये ? कोई ऐसी जगह बताओ जहाँ मैं छिपकर बैठ जाऊं l सब देवताओं ने सुझाव दिए , किसी ने कहा क्षीरसागर में , किसी ने कहा हिमालय पर तो किसी ने कहा चन्द्रमा में छुप जाओ l भगवान ने कहा , मनुष्य की अक्ल इतनी पैनी है कि वह आकाश , पाताल में कहीं भी पहुँच सकता है l तब देवर्षि नारद आए बोले --- " भगवन ! मनुष्य के दिल में छुपकर बैठ जाइये l इसकी आँखें बाहर देखती हैं l यह चारों ओर खोजता फिरेगा अपने अंदर यह कभी आपको खोजेगा ही नहीं l ' कहते हैं जबसे भगवान मनुष्य के हृदय में छिपकर बैठें हैं l जो इस रहस्य को जनता है वही उन्हें खोज पाता है l