21 June 2020

WISDOM ----- जैसा खाए अन्न , वैसा हो मन

हमारे  आचार्य  ने , ऋषियों  ने  बताया  है  कि   हम  अपने  शरीर  के  पोषण  के  लिए  जो  कुछ  भी  ग्रहण  करते  हैं  ,  न  केवल  उसका   बल्कि  उसे  बनाते   समय  ,  बनाने  वाले  की  भावना  का  भी  हमारे  शरीर  व  मन   अर्थात  स्वास्थ्य  पर  प्रभाव  पड़ता  है  l   यदि  हमारी  अज्ञानता  में    हमारा  भोजन  बनाने  वाला  कोई  अपराधी  है ,  हत्यारा  है  तो  हमारे  मन  में  भी  वैसे  ही  बुरे  ख्याल  आएंगे  l   यदि  हम  किसी  ऐसी  महिला  से  खाना  बनवाते  हैं  , जो  हमेशा  अपने  घर  में  पति  से  कलह  करती  है    तो  उसके  बनाये  भोजन   को   खाने  का  प्रभाव  हमारे  पारिवारिक  जीवन  पर  भी  पड़ेगा  l
  यदि  हम  रासायनिक  खाद , बीज , कीटनाशक  आदि  से  उपजा  अन्न , फल , सब्जी  खाते   हैं   तो  बीमारी  हमारा  पीछा  नहीं  छोड़ेंगी  l
  जो  लोग  मांसाहार  करते  हैं    तो  इसमें    बड़ी  बात  यह  है   कि   वे  जिस  जानवर  का  मांस  खाते   हैं   तो  उस  जानवर   की  विशेषताएं  भी  धीरे - धीरे  उनमे  आ  जाती  हैं  l   यह  सब  एक  दिन  में  नहीं  होता ,   बचपन  से    मांसाहार  करते  रहने  से   बड़े  होने  पर  उस  जानवर  की  विशेषता   उनकी  बुद्धि  में  आ  जाती  है  l   यह  स्पष्ट  रूप  से  देखा  जा  सकता  है  कि   जो  लोग  विभिन्न  तरह  के  जानवर ,  कीड़े - मकोड़े  , पशु - पक्षी  आदि  न  खाने  योग्य  भी  सब  कुछ  खाते   हैं    तो  उन  सब  विभिन्न  जीव - जंतुओं  की  विशेषताओं  का  संयोग  उनकी  मानवी   बुद्धि  के  साथ    हो  जाता  है  ,  इसलिए  ऐसे  लोग  बहुत  क्रूर ,   चालाक   ,  धोखेबाज ,  खूंखार   अदि  दुर्गुणों  से  युक्त  होते  हैं  l   शास्त्रों  में  लिखा  है   ऐसे  लोगों  का  कभी  विश्वास  न  करे  ,  उनसे  दूरी   बना  कर  रहे  l 
  जब  हम  जागरूक  होंगे ,  शांत  रहकर    अपने  स्वाभाव , स्वास्थ्य ,  अपने  आचार - विचार  में  होने  वाले  परिवर्तनों  का   अध्ययन - मनन   करेंगे    तभी  हम  समझेंगे  कि   हम  क्या  थे  ? और  कैसे  हो  गए   ?
  जिस  भोजन  और  जल  से  हम  जीवित  रहते  हैं    उसकी  पवित्रता  जरुरी  है  l 

WISDOM ----- आपसी फूट से बुद्धि मूर्छित हो जाती है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय जीवन  प्रसंग  '  में  लिखा  है ----- '  सिकन्दर   ने  भारत  पर  आक्रमण  से  पहले   यहाँ  की  आंतरिक  दशा  का  पता  लगाने  भेदिये   भेजे  ,  जिन्होंने  आकर  समाचार  दिया  कि   इसमें  कोई  संदेह  नहीं  कि   वीरता  भारतीयों   की  बपौती  है  ,  किन्तु  उनकी  सारी   विशेषताओं  को  एक  नागिन   घेरे  हुए  है  जिसे  ' फूट '  कहते  हैं  l   इसी   फूट   रूपी  नागिन  के  विष  से   भारतीयों   की  बुद्धि  मूर्छित  हो  चुकी  है  l
 सिकन्दर   ने  भारतीयों   में  फैली  इस  फूट   की  विष बेल  का  फायदा  उठाया   और  उसने  शीघ्र  ही    उस  तक्षक  का  पता  लगा  लिया  ,  जो  प्रोत्साहन  पाकर   भारत  की  स्वतंत्रता  पर  फन  मार  सकता   है  l   और  वह  था  ---- तक्षशिला  का   दम्भी    राजा  आम्भीक  l    यह  महाराज  पुरु  से  द्वेष  रखता  था  और  ईर्ष्या - द्वेष  में  अँधा  था  l
सिकन्दर   ने  अवसर  का   लाभ  उठाया  और  लगभग  पचास  लाख  रूपये  की  भेंट  के  साथ   सन्देश  भेजा  ,  यदि  महाराज  आम्भीक   सिकन्दर   की  मित्रता  स्वीकार  करे  तो  वह  उन्हें   पुरु  को  जीतने  में  मदद  करेगा  और  सारे  भारत  में  उनकी  दुन्दुभी   बजवा   देगा  l   सिकन्दर   द्वारा  भेजी  भेंट  और  सन्देश  पाकर  द्वेषान्ध ,  अहंकारी   आम्भीक    होश  खो  बैठा    और  वह  देश  के  साथ  विश्वासघात  कर  के   सिकन्दर   का  स्वागत  करने  के  लिए  तैयार  हो  गया  l   भारत  के  गौरवपूर्ण  चन्द्र - बिम्ब  में  एक  कलंक  बिन्दु   लग  गया  l
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' जब  कोई  पापी  किसी  मर्यादा   की  रेखा   का  उल्लंघन   कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में   अधिक  संकोच  नहीं  रहता  l   आम्भीक   की 
 देखा  देखी    अनेक  राजा    सिकन्दर   से  जा  मिले  l   किन्तु  अभागे  आम्भीक   जैसे  अनेक    देश - द्रोहियों  के  लाख  कुत्सित  प्रयत्नों  के  बावजूद   भी  एक  अकेले  देशभक्त  पुरु   ने   भारतीय  गौरव  की  लाज  रखकर   संसार  को  सिकन्दर   से  पद - दलित   होने  से  बचा  लिया  l   भारतीय  इतिहास  में  महाराज  पुरु  का  बहुत  सम्मान  है  ,  केवल  वही  एक  ऐसे  वीर  पुरुष  हैं  ,  जिसने  पराजित  होने  पर  भी   विजयी  को  पीछे  हटने  पर  विवश  कर  दिया  l   

WISDOM ----- जीवन का विनाश करना एक अपराध है

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो '  में  लिखा  है ---- "  आत्मघात  तो  एक  पाप  है  ही  ,  साथ  ही  अन्य  प्रकार  से   भी  जीवन  का  विनाश  करना   एक  अपराध  है  ---- जो  मनुष्य  अज्ञानवश   विषय - वासनाओं  और  भोग - विलास  में  पढ़कर  इस  मानव  जीवन  का  दुरूपयोग  करते  हैं   और  लोभ , मोह , क्रोध  व  अहंकार   में  पढ़कर  ऐसे  काम  किया  करते  हैं  , जिससे  अन्य  मनुष्यों  व  प्राणियों   को  कष्ट  होता  है  , तो  ऐसा  कर  के   वे  अपने  मानव  जीवन  का  विनाश  करते  हैं  l
    लोभ  के  वशीभूत  होकर   प्राय:  लोग  अपनी  शारीरिक , बौद्धिक  तथा  व्यावहारिक  शक्तियों  का  दुरूपयोग  कर   धन - सम्पति  का  संचय  करते  हैं  l   इसके  लिए  वे  शोषण , छल - कपट  का   सहारा  लेते  हैं  और  चोरी , डकैती , भ्रष्टाचार   आदि  न  जाने  कितने  घृणित  कर्म  करते  हैं   l   उनके  इन  लोभ  प्रेरित  कार्यों  से   कितने  लोगों  को  कष्ट ,  हानि  और  भयंकर  शोक  सहन  करना  पड़ता  है  l   ऐसे  दुष्परिणाम  देने  वाले   कार्यों  को  करना  जीवन  का  दुरूपयोग  और  उसको  नष्ट  करना  है  l
  इसी  प्रकार  लोग  मोह  में  पड़कर   और  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  अधर्म  के  पथ  पर  चलने  लगते  हैं  l   अपने  स्वार्थ  में  लिप्त  रहते  हैं , समाज , राष्ट्र  अथवा  संसार  के   प्रति  भी  उनका  कुछ  कर्तव्य  है ,  इसे   भूल  जाते  हैं    और  अपने  स्वार्थों  में  व्यवधान पड़ने  पर   अपराधों  में  प्रवृत  हो  जाते  हैं  l   इस  प्रकार  का  जीवन  चलना  उसे  नष्ट  करना  ही  है  l '