श्रीमद्भगवद्गीता के महान व्याख्याकार लोकमान्य तिलक ने गीता के एक श्लोक की अनुभूति की , श्लोक में भगवान कहते हैं ---- जिस प्रकार एक ही सूर्य , सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करता है , उसी प्रकार एक ही आत्मा , सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करती है l तिलक इस श्लोक पर विचार कर रहे थे , उन्होंने अपनी मन: स्थिति बताते हुए एक स्थान पर लिखा है ------- वर्षा के दिन थे , एक सुबह रास्ते से निकलते समय उन्होंने देखा रास्ते के किनारे जगह - जगह गड्ढे बन गए हैं , इन गड्ढों में पानी भर गया था , कुछ गड्ढे बड़े थे , कुछ छोटे थे , सब में पानी भरा था , कुछ में जानवर नहा रहे थे कुछ खाली थे l सुबह का समय था , उस समय जो दृश्य था उसने मुझे नई अनुभूति प्रदान की l तिलक लिखते हैं --- मैंने देखा सूरज एक है , गंदे गड्ढे में भी उसी का प्रतिबिम्ब है और स्वच्छ जल में भी , दोनों में कोई अंतर नहीं है l गंदगी जल में है लेकिन प्रतिबिम्ब वैसा ही निर्दोष और पवित्र है , फिर यह एक सूर्य समूची धरती पर कितने ही सरोवरों आदि में प्रकाशित होगा l एक ही सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है l " सूर्य एक है , एक ही गगन है , प्रकाश एक है , मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार के कारण ही ऊंच - नीच , बड़े - छोटे तथा जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव किए हैं l
5 August 2021
WISDOM ------
सोमनाथ लूटकर महमूद गजनवी लौट रहा था तो मार्ग में राजपूतों की एक टुकड़ी से मुकाबला करना पड़ा l उसकी विशाल सेना के सामने मात्र सौ -सवा सौ रणबाँकुरे खड़े थे l गजनवी हँस पड़ा , बोला ---- " इन बेवकूफों को समझाओ l क्यों जान देते हो l " घुड़सवारों का नेतृत्व एक अस्सी साल के वृद्ध कर रहे थे l वे बोले --- " बादशाह ! हम राजपूत मृत्यु से कभी नहीं डरते l हमारी निगाह में तुम एक लुटेरे हो l भारत विजेता कहकर हमारा अपमान न करो l जब तक इस धरती पर एक भी राजपूत जीवित है , तब तक भारत विजय का स्वप्न भी मत देखना l " युद्ध छिड़ गया l उस छोटे से समूह ने वह कौशल दिखाया कि एक - एक ने दस - दस को मार गिराया l गजनवी की सेना को पसीना आ गया l पर वे कब तक टिकते l सभी वीरगति को प्राप्त हुए l महमूद गजनवी अपने सेनापति से बोलै ---- " तुम ठीक कहते हो l इस देश में बल से कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता l इसे मात्र छल से ही हराया जा सकता है l गजब के हैं ये लोग l " हमारी आपसी फूट और जागरूकता की कमी ने ही देश को युगों की गुलामी दी ------