स्वार्थ के वशीभूत मनुष्य इतना लालची हो जाता है कि उसे घ्रणित दुष्कर्म करने पर भी लज्जा नहीं आती । तृष्णा के वशीभूत होकर लोग अनीति का आचरण करते हैं और वह अनीति ही अंततः उनके पतन एवं सर्वनाश का कारण बनती है ।
' कोई कितना ही शक्तिशाली , बलवान क्यों न हो , स्वार्थपरता एवं दुष्टता का जीवन बिताने पर उसे नष्ट होना ही पड़ता है । '
रावण के बराबर महापंडित , वेद और शास्त्र का ज्ञाता , वैज्ञानिक , कुशल प्रशासक , कूटनीतिज्ञ कोई भी नहीं था , लेकिन पर - स्त्री का अपहरण , राक्षसी आचार - विचार एवं दुष्टता के कारण कुल सहित नष्ट हो गया ।
कंस ने अपने राज्य में अत्याचार किये , अपनी बहन और बहनोई को जेल में बंद कर दिया , उसके नवजात शिशुओं को शिला पर पटक - पटक कर मार डाला । अपने राज्य में छोटे - छोटे बालकों को कत्ल करा दिया, , लोगों में भय और आतंक का वातावरण पैदा किया । वही कंस भगवान कृष्ण द्वारा बड़ी दुर्गति से मार दिया गया ।
दुर्योधन ने पांडवों का राज - पाट छीनकर उन्हें बहुत दुःख दिये, अंत में वह महाभारत के युद्ध में अपने शक्तिशाली भाइयों के साथ पांडवों द्वारा मारा गया ।
' दुष्टता , असुरता कितनी ही शक्तिसंपन्न हो , उसे अपने ही दुर्गुणों के कारण निर्बल होकर मरना पड़ता है । '
' कोई कितना ही शक्तिशाली , बलवान क्यों न हो , स्वार्थपरता एवं दुष्टता का जीवन बिताने पर उसे नष्ट होना ही पड़ता है । '
रावण के बराबर महापंडित , वेद और शास्त्र का ज्ञाता , वैज्ञानिक , कुशल प्रशासक , कूटनीतिज्ञ कोई भी नहीं था , लेकिन पर - स्त्री का अपहरण , राक्षसी आचार - विचार एवं दुष्टता के कारण कुल सहित नष्ट हो गया ।
कंस ने अपने राज्य में अत्याचार किये , अपनी बहन और बहनोई को जेल में बंद कर दिया , उसके नवजात शिशुओं को शिला पर पटक - पटक कर मार डाला । अपने राज्य में छोटे - छोटे बालकों को कत्ल करा दिया, , लोगों में भय और आतंक का वातावरण पैदा किया । वही कंस भगवान कृष्ण द्वारा बड़ी दुर्गति से मार दिया गया ।
दुर्योधन ने पांडवों का राज - पाट छीनकर उन्हें बहुत दुःख दिये, अंत में वह महाभारत के युद्ध में अपने शक्तिशाली भाइयों के साथ पांडवों द्वारा मारा गया ।
' दुष्टता , असुरता कितनी ही शक्तिसंपन्न हो , उसे अपने ही दुर्गुणों के कारण निर्बल होकर मरना पड़ता है । '