24 June 2018

WISDOM -----

 हर  व्यक्ति  के  अन्दर  अनंत  सामर्थ्य  भरी  पड़ी  है  ,  वह  चाहे  तो   उसके  माध्यम  से  ,  जो  भी  असंभव  दीख  पड़ता  है  वह  कर  के   दिखा  दे  l  
  श्रीमद्भगवद्गीता  में  कहा  गया  है  कि  मनुष्य  स्वयं  अपना  मित्र  है   और  स्वयं  ही  अपना  शत्रु  है  l 
 मनुष्य  स्वयं  का  मित्र  बनकर   सकारात्मक   व   आशावादी     सोच  से   और  अपने  आत्मबल  को  बढाकर  ,  जीवन  की  हर  प्रतिकूलताओं  से  जूझकर  सफल  हो  सकता  है  l 
  लेकिन  आज  मनुष्य  परावलम्बी  हो  गया  है   l  अपने  जीवन  की  नाव  ढोने  के  लिए  दूसरों  से  आशाएं ,  अपेक्षा  रखने  वाला   l   अपने  स्वार्थ  के  लिए   व्यक्ति  ने  अध्यात्म  की  व्याख्या  भी  इसी  प्रकार  कर  ली  कि --- पात्रता  के  विकास  पर  ध्यान  न  देकर  केवल   बाह्य    आडम्बर  और  कर्मकांड  कर  के  ही  ईश्वरीय  अनुदान  मिल  जाएँ  l
   शबरी  के  घर  भगवान  गए   और  उससे मांग - मांग कर  झूठे  बेर   खाए  l   वह  अशिक्षित  थी  और  साधना - विधान  से  अपरिचित  थी  फिर  भी  उसे  इतना  श्रेय   मिला  l   भक्तों  ने  मातंग  ऋषि  से  पूछा  --- " हम  लोग  उस  श्रेय  और  सम्मान  से  क्यों  वंचित  रहे  ? "
ऋषि  ने  कहा ---- "  हम  लोग  पूजन  मात्र  में  अपनी  सद्गति  के  लिए  किए  प्रयासों  को  भक्ति  मानते  रहे   जबकि  भगवान  की  द्रष्टि  में  सेवा - साधना  श्रेष्ठ  है  l  जिसमे  छल - कपट  नहीं  है ,  अहंकार  नहीं  है  वही  भगवन  को  प्रिय  है  l  शबरी  ही  है  ,  रात - रात  भर  जागकर  आश्रम  से  लेकर  सरोवर  तक  कंटीला  रास्ता  साफ  करती  रही  और  सज्जनों  का  पथ  प्रशस्त  करने  के  लिए    अपना  अविज्ञात ,  निरहंकारी  ,  भाव भरा  योगदान  प्रस्तुत  करती  रही   l  "