राजनीतिक रूप से हम स्वतंत्र हैं लेकिन मानसिक द्रष्टि से हम आज भी पराधीन हैं l श्री शरतचंद्र ने लिखा है ---- " पराधीन देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह होता है कि उसके स्वाधीनता संग्राम में मनुष्य को विदेशियों की अपेक्षा अपने देश के लोगों के साथ अधिक लड़ाई लड़नी पड़ती है l "
समाज में लोगों की दूषित मनोवृति एक प्रकार की पराधीनता है l इससे समाज व राष्ट्र को भयंकर हानि उठानी पड़ती है l---- जब व्यक्ति अपने किसी संगी - साथी को विशेष सफलता प्राप्त करते देखते हैं अथवा किसी का अपने से अधिक सम्मान प्राप्त करते देखते हैं तो हर संभव तरीके से उसे गिराने की चेष्टा करते हैं l यह दूषित मनोवृति सर्वत्र पाई जाती है , लेकिन भारत बहुत लम्बे समय तक विदेशियों के आधीन रहा , इस कारण यह दोष बड़ी मात्रा में पाया जाता है l
इसके अतिरिक्त संकुचित द्रष्टिकोण के कारण जनता सार्वजनिक कार्यों के प्रति जागरूक नहीं है इस कारण सामाजिक , राष्ट्रीय और आर्थिक कार्यक्रम पूर्ण रूप से और सही अर्थों में सफल नहीं हो पाते l
यूरोप , अमेरिका के प्राय : सभी छोटे - बड़े प्रगतिशील राष्ट्रों के निवासी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं इसलिए कोई संकट का समय आने पर अपनी स्थिति के अनुकूल रक्षा कार्य में हिस्सा बंटाते हैं l द्वितीय महायुद्ध में जब हिटलर ने इंग्लैण्ड पर तूफानी आक्रमण किया , जर्मनी की वायु - सेना के दल एक के बाद एक आकर ब्रिटेन के नगरों पर बम - वर्षा करते थे तो वहां के नेताओं ने ही नहीं , जनता ने भी अपने मनोबल से उनका मुकाबला किया l उस समय अंग्रेजी सेना की युद्ध सामग्री भी फ़्रांस की भूमि पर हुई पराजय के कारण नष्ट हो गई थी , पर इंग्लैण्ड की सामान्य जनता इनमे से किसी कठिनाई से न घबरा कर नियम से कारखानों में जाती रही और पहले से ड्योढ़ा काम करती रही जिसके परिणामस्वरूप एक भयंकर शत्रु से देश की रक्षा हो सकी और ब्रिटिश सेना पुनः अस्त्र - शस्त्र से सज्जित होकर हिटलर का मुकाबला करने को तैयार हो गई l
यदि हमारे देशवासियों की ऐसी मनोवृति जाग्रत हो जाये और जनता उपयोगी सार्वजनिक कार्यों के महत्व को समझकर स्वेच्छा से आवश्यक सहयोग प्रदान करे और ईमानदारी से कर्तव्यपालन करे तो देश की परिस्थितियों में बहुत कुछ सुधार हो सकता है l
समाज में लोगों की दूषित मनोवृति एक प्रकार की पराधीनता है l इससे समाज व राष्ट्र को भयंकर हानि उठानी पड़ती है l---- जब व्यक्ति अपने किसी संगी - साथी को विशेष सफलता प्राप्त करते देखते हैं अथवा किसी का अपने से अधिक सम्मान प्राप्त करते देखते हैं तो हर संभव तरीके से उसे गिराने की चेष्टा करते हैं l यह दूषित मनोवृति सर्वत्र पाई जाती है , लेकिन भारत बहुत लम्बे समय तक विदेशियों के आधीन रहा , इस कारण यह दोष बड़ी मात्रा में पाया जाता है l
इसके अतिरिक्त संकुचित द्रष्टिकोण के कारण जनता सार्वजनिक कार्यों के प्रति जागरूक नहीं है इस कारण सामाजिक , राष्ट्रीय और आर्थिक कार्यक्रम पूर्ण रूप से और सही अर्थों में सफल नहीं हो पाते l
यूरोप , अमेरिका के प्राय : सभी छोटे - बड़े प्रगतिशील राष्ट्रों के निवासी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं इसलिए कोई संकट का समय आने पर अपनी स्थिति के अनुकूल रक्षा कार्य में हिस्सा बंटाते हैं l द्वितीय महायुद्ध में जब हिटलर ने इंग्लैण्ड पर तूफानी आक्रमण किया , जर्मनी की वायु - सेना के दल एक के बाद एक आकर ब्रिटेन के नगरों पर बम - वर्षा करते थे तो वहां के नेताओं ने ही नहीं , जनता ने भी अपने मनोबल से उनका मुकाबला किया l उस समय अंग्रेजी सेना की युद्ध सामग्री भी फ़्रांस की भूमि पर हुई पराजय के कारण नष्ट हो गई थी , पर इंग्लैण्ड की सामान्य जनता इनमे से किसी कठिनाई से न घबरा कर नियम से कारखानों में जाती रही और पहले से ड्योढ़ा काम करती रही जिसके परिणामस्वरूप एक भयंकर शत्रु से देश की रक्षा हो सकी और ब्रिटिश सेना पुनः अस्त्र - शस्त्र से सज्जित होकर हिटलर का मुकाबला करने को तैयार हो गई l
यदि हमारे देशवासियों की ऐसी मनोवृति जाग्रत हो जाये और जनता उपयोगी सार्वजनिक कार्यों के महत्व को समझकर स्वेच्छा से आवश्यक सहयोग प्रदान करे और ईमानदारी से कर्तव्यपालन करे तो देश की परिस्थितियों में बहुत कुछ सुधार हो सकता है l