24 November 2020

WISDOM ------

     अत्याचारी  और  अन्यायी  को  यदि  सत्ता  का  संरक्षण  प्राप्त  हो   तो   उसके  परिणाम  घातक  होते  हैं   और    उसका   सामना  करने   के    लिए   धैर्य   और  विवेक  की  जरुरत  है  l   महाभारत  में  एक  प्रसंग  है  -----  राजा  विराट  का  सेनापति  था  कीचक  l   बहुत  शक्तिशाली  था  और     उसकी  गलतियों  पर  उसे  मना  करने  और  समझाने   की  राजा  विराट  में  हिम्मत  नहीं  थी  l   पांचों  पांडव  और  द्रोपदी    अज्ञातवास  के  दौरान  राजा  विराट  के  यहाँ   वेश  बदलकर  रह  रहे  थे   l   महारानी  द्रोपदी  ' सैरन्ध्री ' नाम  से  रनिवास  में   रानी  की  सेवा  करती  थीं  l   कीचक  ,  राजा  विराट  की  पत्नी  का  भाई  था   इसलिए  रनिवास  में   बेरोक -टोक  आता जाता  था  l   जब  से  उसकी  नजर  सैरंध्री  पर  पड़ी  ,  उसके  मन  में  पाप  आ  गया   और  वह  सैरंध्री  से  अनुचित   व्यवहार करने  लगा  l  एक  दिन  एकांत  पाकर  द्रोपदी  ने  अपना  दुःख  भीम  से  व्यक्त  किया   कि   किस  प्रकार  कीचक  उसे  अपमानित  करता  है  l   भीम  को  बहुत  क्रोध  आया  लेकिन  उन्होंने  द्रोपदी  को  समझाया  कि  कीचक  बहुत  बलशाली  है  ,  राजा  विराट  स्वयं  उससे  डरते  हैं ,  उसे  सत्ता  का  संरक्षण  प्राप्त  है    इसलिए  तुम  उसका  मुकाबला  नहीं  कर  सकतीं ,  उसका  अंत  करने  के  लिए  धैर्य  और  विवेक  से   कोई  तरकीब  सोचनी  पड़ेगी  l     फिर    भीम  की  सलाह  के  अनुसार    दूसरे  दिन  जब  कीचक  सैरंध्री  के  सामने  आया   तो  सैरंध्री  ने  उसके  साथ  ऐसा  व्यवहार  किया  जैसे  वे  उसके  प्रस्ताव  से  सहमत  हों  साथ  ही  यह  शर्त  रखी   कि   वह  अर्धरात्रि  में  नृत्यशाला  में  आये  ,  चारों  और  घना   अंधकार  हो    जिससे  कोई  देख  न  सके , लोक लाज  का  डर   है  l  वहीँ  सैरंध्री  उसका  इंतजार  करेगी  l   जब    रात्रि  में  कीचक  नृत्यशाला  पहुंचा  तो  वहां   द्रोपदी  के  स्थान  पर  भीम  बैठे  थे  ,  उन्होंने  कीचक  को  ललकारा  ,  फिर  दोनों  में  मल्ल्युद्ध  हुआ  l   बृहन्नला  के  वेश  में  अर्जुन  मृदंग  बजाते  रहे  ,  जिससे  युद्ध  का  शोर  बाहर  न  जाये  ,  सुबह  होने  से  पूर्व  ही  भीम  ने  कीचक  का  वध  कर  दिया  ll 

WISDOM -----

   एक  संत  प्रवचन  दे  रहे  थे  ,  सुनने  आये  श्रद्धालुओं   ने  उनके  सम्मुख  एक  समस्या  रखी  l   वे  बोले --- " महाराज  ! हमारे  मन  में  कइयों  के  प्रति  द्वेष  है  ,  उसे  कैसे  निकालें  ? "  संत  बोले --- ' आप  लोग  ऐसा  करना  कि  कल  अपने  साथ  थैला  भरकर  आलू  लाना  और  हर  आलू  पर  उस  व्यक्ति  का  नाम  लिखना  ,  जिससे  आपको  द्वेष  हो  l "  अगले  दिन  सभी  श्रद्धालु  अपने  साथ  आलू  भरा  थैला  लेकर  आए ,  सबने  अनेक  आलुओं  पर   उन  व्यक्तियों  के  नाम  लिखे  थे  ,  जिनसे  उनको  द्वेष  था  l   संत  बोले --- " अब  ऐसा  करना  कि   इस  थैले  को  दिन - रात  अपने  पास  रखना  , छोड़ना  नहीं  l  "   सत्संग  में  आए   सभी  श्रद्धालुओं  ने  इस  निर्देश  का  पालन   करना शुरू  कर  दिया  l   दो - तीन  दिन  तो  विशेष  समस्या  नहीं  हुई  ,  परन्तु  सप्ताह  अंत  होते   तक    आलुओं  में  से  भयंकर  दुर्गन्ध  आने  लगी  l   अब  सब  लोग  बड़े  चिंतित  हुए  और  संत  के  पास  जाकर  बोले  ---- " महाराज  !  आपने  भी  यह  कैसा  विचित्र  कार्य  हमें  करने  को  दिया  है  l   इन  बदबूदार  आलुओं  को   हमें  कब  तक  अपने  साथ  रखना  है  ? "    संत  बोले ----- "आप  लोग  ये  सोचो   कि   जब  इन   नाम  लिखे  आलुओं  को   हफ्ते  भर  साथ  रखने  में  इतनी  दुर्गन्ध  उठती  है   तो  जब   इन   व्यक्तियों के   नामों  को   ईर्ष्या  और   द्वेष के  साथ   अपने  अंतर्मन  में  रखते  होंगे   तो  आपके  चित्त  से   कितनी  दुर्गन्ध  उठती  होगी   !  जब  भावनाएं  कलुषित  होंगी   तो  मन  को  भारी  ही  बनाएंगी  , हलका   नहीं  l  "  संत  द्वारा  दिए  गए  कार्य  का  उद्देश्य    समझ  में  आ  जाने  पर   सबको  जीवन  के  लिए  एक  महत्वपूर्ण  सीख  मिल   गई   l