पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " लोकसेवा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लोकसेवी आम जनता की जिन्दगी से कितना जुड़े हैं l गरीब जनता से दूर ऐशोआराम में रहने पर उनकी आँखों पर पट्टी चढ़ जाती है और वे जनता की दुःख -तकलीफों को देखना बंद कर देते हैं l फिर धीरे -धीरे लोकसेवा व्यवसाय बन जाती है और लोकतंत्र भ्रष्टतंत्र बन जाता है l " यदि कोई सच्चा लोकसेवी होगा तो उसका आत्मबल इतना अधिक होगा कि वह रावण की सोने की लंका को भी ढहा दे l इस सत्य को बताने वाली एक कथा है ----- अयोध्या के प्राचीन राजा और भगवान श्रीराम के पूर्वज महाराज चक्कवेण की कथा है l राजा चक्कवेण बहुत प्रतापी राजा थे , उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी - संपन्न थी किन्तु राजा स्वयं बहुत सादगी से एक झोंपड़ी में रहते थे और राजकाज से जो समय मिलता उसमें वे अपने जीविकोपार्जन के लिए खेती कर लेते l उनकी धर्मपत्नी भी बहुत सादगी से रहती थीं l जब कभी वे किसी काम से बाहर जातीं तो नगर के धनाढ्य परिवारों की महिलाएं उन्हें टोकती कि आपके शरीर पर कोई आभूषण नहीं है , यदि महाराज अपनी मर्यादा में ऐसा नहीं करते तो आप कहें तो हम आपके लिए आभूषण बनवा दें l नगर की महिलाओं के बार -बार कहने के कारण महारानी ने आभूषणों की बात महाराज चक्कवेण से कह दी l राजा यह सुनकर चिंता में पड़ गए , उन्होंने कहा --- महारानी आभूषणों के लायक तो हमारी आर्थिक स्थिति है नहीं , फिर भी तुमने जीवन में पहली बार मुझसे कुछ माँगा है , तो कुछ तो करना होगा l राजा ने अपने प्रमुख मंत्री को बुलाया और कहा --- " हम अपने सुख के लिए अपने राज्य की जनता से अधिक कर नहीं वसूल सकते l तुम ऐसा करो कि लंका के राजा रावण से कर वसूल करो l उसने स्वर्ण की बहुत जमाखोरी की है , इसलिए तुम उसी से स्वर्ण ले आओ l " मंत्री राजा की बात मानकर लंका गया और वहां जाकर उसने रावण से कहा ---- " हमारे महाराज चक्कवेण ने तुमसे कर लेने को भेजा है l " दम्भी रावण यह सुनकर बहुत हँसा और बोला --- " तुम्हारे भिखारी राजा की यह मजाल की रावण से कर वसूल करने की सोचे l " रावण की बात सुनकर मंत्री ने कहा --- " तुम हमारे महाराज के प्रभाव को जानते नहीं हो , हम तुम्हे कुछ नमूना दिखाते हैं , देखकर हिल जाओगे l फिर मंत्री बोला --- " यदि हमारे महाराज चक्कवेण सच्चे लोकसेवी और तपस्वी हैं तो लंका का उत्तरी और दक्षिणी हिस्सा ध्वस्त हो जाये l " मंत्री के ऐसा कहते ही सोने की लंका ढहने लगी l न कोई सेना , न मन्त्र शक्ति , सिर्फ सच्ची लोकसेवा के साथ तप और त्याग का ऐसा प्रभाव ! रावण यह देखकर घबरा गया , उसे आश्चर्य भी हुआ l उसने बहुत सारा स्वर्ण देकर मंत्री को विदा किया l मंत्री ने वापस आकर महाराज व महारानी को यह घटना सुना दी l यह सुनकर महाराज चक्कवेण ने महारानी से कहा --- " महारानी सच आपके सामने है , अब आप चाहें तो आभूषण पहन लें , लेकिन आपके आभूषण पहनते ही मेरी सच्ची लोकसेवा और तपस्या का यह प्रभाव समाप्त हो जायेगा l " महारानी को यथार्थ समझ में आ गया , उन्होंने आभूषण पहनने से स्पष्ट इनकार कर दिया l इस पर महाराज चक्कवेण ने कहा --- " महारानी ! तप -त्याग , सादगी , सदाचार ही लोकसेवी की सच्ची संपत्ति है l "