19 April 2024

WISDOM-----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " लोकसेवा  की  सफलता  इस  बात  पर  निर्भर  करती  है  कि   उसके  लोकसेवी  आम  जनता  की  जिन्दगी  से  कितना  जुड़े  हैं  l  गरीब  जनता  से  दूर   ऐशोआराम  में  रहने  पर   उनकी  आँखों  पर  पट्टी  चढ़   जाती    है   और  वे  जनता  की  दुःख -तकलीफों  को  देखना  बंद  कर  देते  हैं  l  फिर  धीरे -धीरे  लोकसेवा   व्यवसाय  बन  जाती  है   और   लोकतंत्र  भ्रष्टतंत्र  बन  जाता  है  l  "                               यदि  कोई  सच्चा  लोकसेवी  होगा   तो  उसका  आत्मबल  इतना  अधिक  होगा  कि  वह  रावण  की  सोने  की  लंका  को  भी  ढहा  दे  l  इस  सत्य  को  बताने  वाली   एक    कथा  है -----  अयोध्या  के  प्राचीन  राजा  और  भगवान  श्रीराम  के  पूर्वज  महाराज  चक्कवेण   की  कथा  है  l   राजा  चक्कवेण  बहुत  प्रतापी  राजा  थे  , उनके  राज्य  में  प्रजा  बहुत  सुखी  - संपन्न  थी  किन्तु  राजा  स्वयं   बहुत  सादगी  से  एक  झोंपड़ी  में  रहते  थे   और  राजकाज  से  जो  समय  मिलता  उसमें   वे  अपने  जीविकोपार्जन   के  लिए  खेती  कर  लेते  l  उनकी  धर्मपत्नी  भी  बहुत  सादगी  से  रहती  थीं  l   जब  कभी  वे  किसी  काम  से  बाहर  जातीं  तो  नगर  के  धनाढ्य  परिवारों  की  महिलाएं  उन्हें  टोकती  कि  आपके  शरीर  पर  कोई  आभूषण  नहीं  है  ,  यदि  महाराज  अपनी  मर्यादा  में   ऐसा  नहीं  करते  तो  आप  कहें  तो   हम  आपके  लिए  आभूषण  बनवा  दें  l  नगर  की  महिलाओं  के  बार -बार  कहने  के  कारण  महारानी  ने   आभूषणों  की  बात  महाराज  चक्कवेण  से  कह  दी  l   राजा  यह  सुनकर  चिंता  में  पड़  गए  , उन्होंने  कहा --- महारानी  आभूषणों  के  लायक  तो  हमारी  आर्थिक  स्थिति  है  नहीं  ,  फिर  भी  तुमने  जीवन  में  पहली  बार  मुझसे  कुछ  माँगा  है  , तो  कुछ  तो  करना  होगा  l  राजा  ने  अपने  प्रमुख  मंत्री  को  बुलाया  और  कहा --- " हम  अपने  सुख  के  लिए   अपने  राज्य  की  जनता  से  अधिक  कर   नहीं  वसूल  सकते  l  तुम  ऐसा  करो  कि  लंका  के  राजा  रावण  से   कर  वसूल  करो  l  उसने  स्वर्ण  की  बहुत  जमाखोरी  की  है  , इसलिए  तुम  उसी  से  स्वर्ण  ले  आओ  l "   मंत्री  राजा  की  बात  मानकर  लंका  गया   और  वहां  जाकर  उसने  रावण  से  कहा ---- " हमारे  महाराज  चक्कवेण  ने   तुमसे  कर  लेने  को  भेजा  है  l "  दम्भी  रावण  यह  सुनकर  बहुत  हँसा  और  बोला --- " तुम्हारे  भिखारी  राजा  की  यह  मजाल  की  रावण  से  कर  वसूल  करने  की  सोचे  l "  रावण  की  बात  सुनकर  मंत्री  ने  कहा --- "  तुम  हमारे  महाराज  के  प्रभाव  को  जानते  नहीं  हो  ,  हम  तुम्हे  कुछ  नमूना  दिखाते  हैं  ,  देखकर  हिल  जाओगे  l  फिर  मंत्री  बोला --- " यदि  हमारे  महाराज  चक्कवेण  सच्चे  लोकसेवी  और  तपस्वी  हैं   तो  लंका  का   उत्तरी  और  दक्षिणी  हिस्सा  ध्वस्त  हो  जाये  l "  मंत्री  के  ऐसा  कहते  ही  सोने  की  लंका  ढहने  लगी  l  न  कोई  सेना , न  मन्त्र  शक्ति  , सिर्फ  सच्ची  लोकसेवा  के  साथ  तप  और  त्याग  का  ऐसा  प्रभाव   !  रावण  यह  देखकर  घबरा  गया  , उसे  आश्चर्य  भी  हुआ  l  उसने  बहुत  सारा  स्वर्ण  देकर  मंत्री  को  विदा  किया  l  मंत्री  ने  वापस  आकर  महाराज  व  महारानी  को    यह  घटना  सुना  दी  l  यह  सुनकर  महाराज   चक्कवेण  ने  महारानी  से  कहा --- "  महारानी  सच  आपके  सामने  है  , अब  आप  चाहें  तो  आभूषण  पहन  लें  ,  लेकिन  आपके  आभूषण  पहनते  ही   मेरी  सच्ची  लोकसेवा  और  तपस्या  का   यह  प्रभाव  समाप्त  हो  जायेगा  l  "  महारानी  को  यथार्थ  समझ  में  आ  गया  ,  उन्होंने  आभूषण  पहनने  से  स्पष्ट  इनकार  कर  दिया  l  इस  पर  महाराज  चक्कवेण   ने  कहा --- "  महारानी  !  तप -त्याग , सादगी  , सदाचार  ही  लोकसेवी  की  सच्ची  संपत्ति  है  l "