5 August 2020

WISDOM -----

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहा  करते  थे  -- मनुष्य  वही  है  जो  संवेदनशील  हो  ,  दूसरोँ   की  पीड़ा  जिसे  व्यथित  करती  है   l   वे  कहते  थे  हर  साधन - संपन्न   व्यक्ति  को  अपने  आप  से  पूछना  चाहिए  , जब  देश  में , दुनिया  में   करोड़ों  बच्चे  भूखे  हैं  ,   लेकिन    हमारे  बच्चों  को  अच्छा  भोजन , अच्छे  कपड़े   और  अच्छा  घर  प्राप्त  है    तो  अन्य  बच्चों  को  क्यों  नहीं   ?
 आचार्य श्री  ने  लिखा  है  ---जन्म  लेने  के  बाद  भी  मनुष्य  जीवन  को  प्राप्त  नहीं  करता  l  वह  जन्मते  ही  स्वार्थ  सीखता  है   और  फिर  बड़ा  होने  के  साथ - साथ   इसी  में  पारंगत  और  प्रवीण  हो  जाता  है  l   अपने  स्वार्थ  व  अहं   को  पूरा  करने  के  लिए   चतुराई  व  चालाकी  का  सहारा  लेता  है  l   जन्म  लेने  के  बाद  मनुष्यत्व  को  कैसे  प्राप्त  करें  ,  यही  समझाने   के  लिए   आचार्य श्री  ने  विशाल  साहित्य  रचा   और  इसे  जन - जन  तक  पहुँचाने  के  लिए  अखण्ड  ज्योति   का  आविर्भाव  हुआ  l 
  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---'  हमें  स्वाधीनता  मिले  कितने  ही  दशक  हो  गए  ,  पर  द्वेष , दुर्भाव  से  हम  आज  तक  स्वाधीन  नहीं  हो  सके  l    हम  मनुष्य  के  प्रति  विश्वास  और  सद्भाव  को  खो  चुके  हैं  l  हम  अपने   ही  समान  पड़ोसी   को   मनुष्य  रूप  में  देखने  से  पहले    उसे  कुल , बिरादरी , धर्म  व  सम्प्रदाय   के  हिस्सों  के  रूप  में  देखते  हैं  l   यह  मनुष्य  की  संकीर्णता  ही  है   कि   कुल ,  जाति  , धर्म , सम्प्रदाय  के  कारण  ही    एक  इनसान   दूसरे  इनसान   से  घृणा  करने  लगता  है  , इसी  प्रवृति  का  परिणाम  हैं  दंगे ,  जो  यदा - कदा   पूरे   देश  और  देशवासियों  को  दागदार  बनाते  हैं  l  '
 आचार्य श्री  ने  बार - बार  यही  समझाया  है   कि   हमें  जन्म  भले  ही  मनुष्य  शरीर  के  रूप  में  मिला  है ,  परन्तु  जीवन  का  आधार  आत्मचेतना  है   l    चेतना  जाग्रत  हो  ,  हम  सब  एक  माला  के  मोती  हैं  ,  सच्चे  इनसान   बने  l