' Promise yourself ........to give so much time to the improvement of yourself that you have no time to criticize others. '
मानव जीवन पवित्रता का प्रतीक है | पवित्रता दोषों के परिमार्जन के अनुपात में निखरती है |
जीवन में गलतियाँ होती हैं , यह स्वाभाविक है , परंतु हम गलती कर रहें हैं , इसका भान हो रहा है या नहीं , यही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है | यदि त्रुटियों के प्रति हम सतर्क और सावधान हैं और हमारी त्रुटियाँ हमें दिखाई देती हैं तो समझना चाहिये कि हम जीवन के प्रति होश में हैं | यदि ऐसा नहीं है और हम गलती-पर-गलती करने के बावजूद उसके प्रति तनिक भी सोचते नहीं हैं तो माना जाना चाहिये , जीवन तमस की घनी चादर से ढँक गया है | ऐसे व्यक्ति एक गलती करते हैं , फिर उसे दोहराते हैं और गलतियों के लिये गलती करने की ' न्यूक्लियर चैन रिएक्शन ' चल पड़ती है |
दोष उर्वर भूमि में उगी फसलों के बीच खरपतवार के समान होते हैं | समय रहते यदि इन्हें उखाड़ा नहीं गया तो ये सारे फसल के स्थान पर छा जाते हैं , इनकी जड़ें गहरी होती जाती हैं | फिर भी यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो जीवन में केवल खरपतवार रूपी दोष-ही-दोष नजर आते हैं |
दोष एवं गलतियों का निराकरण-परिमार्जन सबसे बड़ी साधना है | हमें अपना दोष देखना चाहिये , दूसरों का नहीं | अपना दोष खोजना साहस का काम है क्योंकि दोष उस हिमशैल के समान होते हैं ; जिसके अधिकतम भाग अहंकार के काले सागर में डूबे होते हैं | दूसरों से अपनी कमियों , अपने दोषों को सुनना भी सहज नहीं है | इन सब में अहंकार आड़े आता है |
अत: अपनी कमजोरी के छोटे पक्ष को , एक छोटी-सी गलती को , जो व्यवहार में काँटों के समान होती है , सुधारने का प्रयास करना चाहिये | यह प्रयास अत्यंत धैर्य के साथ साहसपूर्वक करना चाहिये क्योंकि गलतियाँ मन को लुभाने वाली होती हैं , इनमे मन लोटकर मस्त रहता है | इस स्थिति से मन को लौटाना और किसी अच्छे कार्य में लगाना आसान नहीं है | यहाँ पर असीम धैर्य की आवश्यकता है |
यदि कभी गलती हो जाये तो अपने को तथा औरों को न कोसते हुए शांतिपूर्वक परिस्थिति व कारण की खोज करनी चाहिये | परमपिता परमेश्वर के समक्ष अपनी गलती को स्वीकार कर इसे पुन: न दोहराने के लिये संकल्प लेना चाहिये | हमें बछड़े से सीखना चाहिये , जो कि दौड़ने के लिये बारंबार गिरता है , परंतु थकता-रुकता नहीं और अपने मकसद में कामयाब हो जाता है |
हमें हमारे दोष बार-बार गिराते हैं और हम गिरते हैं , पर गिरकर हमें उठना नहीं आता है |
हर गलती से सीख लेकर यदि हम उठ सकें तो हमारा जीवन पवित्रता को पा सकता है , यही अध्यात्म का प्रवेश द्वार है | इसकी चाहत रखने वाले को इसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा | यही महासाधना है
मानव जीवन पवित्रता का प्रतीक है | पवित्रता दोषों के परिमार्जन के अनुपात में निखरती है |
जीवन में गलतियाँ होती हैं , यह स्वाभाविक है , परंतु हम गलती कर रहें हैं , इसका भान हो रहा है या नहीं , यही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है | यदि त्रुटियों के प्रति हम सतर्क और सावधान हैं और हमारी त्रुटियाँ हमें दिखाई देती हैं तो समझना चाहिये कि हम जीवन के प्रति होश में हैं | यदि ऐसा नहीं है और हम गलती-पर-गलती करने के बावजूद उसके प्रति तनिक भी सोचते नहीं हैं तो माना जाना चाहिये , जीवन तमस की घनी चादर से ढँक गया है | ऐसे व्यक्ति एक गलती करते हैं , फिर उसे दोहराते हैं और गलतियों के लिये गलती करने की ' न्यूक्लियर चैन रिएक्शन ' चल पड़ती है |
दोष उर्वर भूमि में उगी फसलों के बीच खरपतवार के समान होते हैं | समय रहते यदि इन्हें उखाड़ा नहीं गया तो ये सारे फसल के स्थान पर छा जाते हैं , इनकी जड़ें गहरी होती जाती हैं | फिर भी यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो जीवन में केवल खरपतवार रूपी दोष-ही-दोष नजर आते हैं |
दोष एवं गलतियों का निराकरण-परिमार्जन सबसे बड़ी साधना है | हमें अपना दोष देखना चाहिये , दूसरों का नहीं | अपना दोष खोजना साहस का काम है क्योंकि दोष उस हिमशैल के समान होते हैं ; जिसके अधिकतम भाग अहंकार के काले सागर में डूबे होते हैं | दूसरों से अपनी कमियों , अपने दोषों को सुनना भी सहज नहीं है | इन सब में अहंकार आड़े आता है |
अत: अपनी कमजोरी के छोटे पक्ष को , एक छोटी-सी गलती को , जो व्यवहार में काँटों के समान होती है , सुधारने का प्रयास करना चाहिये | यह प्रयास अत्यंत धैर्य के साथ साहसपूर्वक करना चाहिये क्योंकि गलतियाँ मन को लुभाने वाली होती हैं , इनमे मन लोटकर मस्त रहता है | इस स्थिति से मन को लौटाना और किसी अच्छे कार्य में लगाना आसान नहीं है | यहाँ पर असीम धैर्य की आवश्यकता है |
यदि कभी गलती हो जाये तो अपने को तथा औरों को न कोसते हुए शांतिपूर्वक परिस्थिति व कारण की खोज करनी चाहिये | परमपिता परमेश्वर के समक्ष अपनी गलती को स्वीकार कर इसे पुन: न दोहराने के लिये संकल्प लेना चाहिये | हमें बछड़े से सीखना चाहिये , जो कि दौड़ने के लिये बारंबार गिरता है , परंतु थकता-रुकता नहीं और अपने मकसद में कामयाब हो जाता है |
हमें हमारे दोष बार-बार गिराते हैं और हम गिरते हैं , पर गिरकर हमें उठना नहीं आता है |
हर गलती से सीख लेकर यदि हम उठ सकें तो हमारा जीवन पवित्रता को पा सकता है , यही अध्यात्म का प्रवेश द्वार है | इसकी चाहत रखने वाले को इसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा | यही महासाधना है