पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- " बुद्धिजीवी - विचारशील वर्ग पर भगवान ने समाज रूपी बगिया के माली का भार सौंपा है l यदि वह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में प्रमाद करते हैं तो किसी न किसी समय , किसी न किसी तरह उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' प्रकृति की मर्यादाओं - नियत नियमों की अनुकूल दिशा में चलकर ही सुखी , शांत और संपन्न रहा जा सकता है l ग्रह , नक्षत्र , तारे , ग्रह - उपग्रह एक नियम मर्यादा के अनुसार चलते हैं l वे अपने निश्चित विधान का जरा भी उल्लंघन नहीं करते l प्रकृति ने अपने परिवार के समस्त सदस्यों को इस व्यवस्था मर्यादा में बांध रखा है कि वे अपना मार्ग न छोड़ें इसलिए सारी व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है l केवल मनुष्य ही ऐसा है जो बार - बार नियति के विरुद्ध जाने की धृष्टता करता है , मर्यादाओं का उल्लंघन करता है l " विज्ञान ने हमें बहुत सुख - सुविधाएँ दीं लेकिन संसार के सारे सुख- सुविधाओं का उपभोग तो इसी शरीर से संभव है l यदि मनुष्य मर जाए या चलती - फिरती लाश बन जाए , हर पल , हर किसी से भयभीत रहे तो सब सुख - सुविधाओं का , भोग - विलास के साधनों का कोई अर्थ नहीं रह जाता l जब विज्ञान के साथ चंद लोगों का , कुछ संस्थाओं का स्वार्थ जुड़ जाएगा तब इस संसार को शमशान बनने में देर नहीं लगेगी l ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है -- यह हमारे हाथ में है कि हम सही मार्ग चुने ---- हम विवेकपूर्ण , संवेदनशील इनसान बनकर जीना चाहते हैं या मानसिक गुलामी में चलती -फिरती लाश बनकर जीना चाहते हैं l जागरूक हो , ' जब जागो तब सवेरा l '