मरते समय मनुष्य को जिस पीड़ा का अनुभव होता है , वह पीड़ा मरने की नहीं , बल्कि चले गए जीवन की होती है l कबीर दास जी ने कहा है ---- कहत कबीर अंत की बारी l हाथ झारि जस चलै जुआरी l l कबीर दास जी कहते हैं ---- अंत में मृत्यु के समय ऐसे जाना पड़ता है , जैसे जुआरी को अपने खेल के अंत में अपना सब कुछ गँवा कर लौटना पड़ता है l जुए में जो जीतता है वह भी हारता है और जो हारता है वह तो हारता ही है l यह छल है क्योंकि हारने वाला यह सोचता है कि अभी हार गए तो कोई बात नहीं , अगली बार जीत निश्चित है , एक बार और भाग्य आजमा लूँ l ठीक यही बात जीतने वाला सोचता है , अभी एक बार और , अपनी जीत तो पक्की है l इस एक बार का सिलसिला तब तक चलता है , जब तक कि सब कुछ गँवा नहीं दिया जाता l जीवन भी ऐसा ही है l हम सारा जीवन कुछ पाने के लिए भागते रहते हैं , जो कुछ पाया भी वह भी अंत में छूट जाता है , खाली हाथ चले जाते हैं l
6 September 2021
WISDOM ------
एक बार विक्रमपुर के राजा के सैनिक पड़ाव पर एक डाकू ने धावा बोलने का साहस किया , सैनिकों ने उसे पकड़कर राजा के सामने प्रस्तुत किया l राजा ने गुस्से में पूछा ----- ' तुम यह घृणित कार्य क्यों करते हो ? ' यह सुनकर डाकू बोला ---- " आपको यह पूछना शोभा नहीं देता , क्योंकि आपको देखकर ही हम यह कार्य करते हैं l आपसे ही हम ने ऐसा करना सीखा है l " राजा क्रोधित होकर बोला ---- " क्या मैं डाकू हूँ ? क्या मैं कहीं डाका डालता हूँ ? " डाकू बोला ---- " हमारी शक्ति कम है , हम छोटे डाकू हैं l आपके पास अधिक शक्ति है इसलिए आप पड़ोसी राज्य पर अकारण आक्रमण कर उसकी सम्पत्ति पर कब्ज़ा करते हैं l " राजा यह सुनकर लज्जित हुआ l उसने डाकू को खेती करने के लिए जमीन दे दी और स्वयं भी दूसरे राज्यों पर आक्रमण करना छोड़ दिया l