पुराणों में कथा है --- भक्त प्रह्लाद की --- प्रह्लाद पांच वर्ष के थे , हर पल नारायण - नारायण का जप करते थे l इससे उनका पिता हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित होता था l वह चाहता था की प्रह्लाद भगवान विष्णु को भूल जाये और अपने पिता को ही परमात्मा मान कर उनकी पूजा करे l परन्तु प्रह्लाद न मानते थे और न डरते थे l तब हिरण्यकशिपु के कहने से असुरों के गुरु शुक्राचार्य जो दैत्य गुरु होने के साथ महान तांत्रिक भी थे , प्रह्लाद पर तांत्रिक क्रिया की l इसके पहले वे उन पर मारण क्रिया भी कर चुके थे , इससे प्रह्लाद को तेज बुखार व शरीर में पीड़ा थी l तब उनकी माता कयाधू ने देवर्षि नारद को बुलाया और कहा कि इस अबोध बालक पर इतना अत्याचार क्यों ? तब नारद जी ने कहा --- शुक्राचार्य को अपने तंत्र पर बड़ा गर्व है l वे इस तंत्र के माध्यम से सब कुछ करने का दम्भ भरते हैं l वे भूल जाते हैं कि परमात्मा की सामर्थ्य सर्वोपरि है l प्रह्लाद की परमात्मा के प्रति अनन्य निष्ठा एवं भक्ति ही उनका सुरक्षा कवच है l शुक्राचार्य का बड़े से बड़ा मारक तंत्र भी उनको डिगा नहीं सकेगा l दैत्य कुल में जन्मे प्रह्लाद की भगवान ने रक्षा की वे भक्तराज कहलाए l
3 December 2020
WISDOM -----
आतंकवादी मानसिकता कैसी होती है इसे एक पौराणिक आख्यान द्वारा समझा जा सकता है ----- घटना महाभारत युद्ध के समय की है l द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भस्थ पुत्र को मार डाला l इस अमानवीय कृत्य से सभी चीत्कार उठे l द्रोपदी ने इसका बदला लेने के लिए अति बलवान भीम से निवेदन किया और अश्वत्थामा को उचित दंड देने को कहा , परन्तु परम नीतिज्ञ भगवान कृष्ण ने भीम को अश्वत्थामा के पास जाने से रोका और कहा कि इस समय अश्वत्थामा राक्षस बन गया है l वह अपनी सभी मर्यादाओं और नीतियों को भूलकर दानव की साक्षात् मूर्ति बन गया है l वह भीम को भी मार सकता है क्योंकि इस मन: स्थिति में उससे दया और क्षमा की उम्मीद नहीं की जा सकती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ठीक यही मानसिकता आतंकवादियों की होती है l उनके सामने मानवता की करुण चीत्कार कोई मायने नहीं रखती l आतंकवादी राक्षस एवं दैत्य के समान होते हैं , जिनके अंदर का दिल पथरा गया होता है l इनकी संवेदना शुष्क हो जाती है और इस शुष्कता में क्रूरता का जन्म होता है l इनसे किसी प्रकार के रहम और दया की आशा नहीं की जा सकती है l