16 March 2021

WISDOM ----- कोई भी काम अधूरा न छोड़ें

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   का कहना  है  ----- '' स्वर्णिम  नियम  यही  है   कि   शुरू  करने  से  पहले   किसी  भी  काम  या  योजना  के   बारे  में   अच्छी  तरह  सोच  विचार  कर  लिया  जाए  l   कोई  भी  पक्ष  ,  संभावना   या  कठिनाई   अनदेखी  न  रह  जाये  l   भलीभाँति   विचार  के  बाद  जो  भी  शुरू  करें  , उसे  पूरा  कर  के  ही  विराम  लें  l   किसी  भी  स्थिति  में   उसे  आधा - अधूरा  न  छोड़ें  l   ज्ञात  इतिहास  में   भारत  को   पहली    बार   एक  राष्ट्र  के  रूप  में   संगठित  करने  वाले   सम्राट  चन्द्रगुप्त  मौर्य  को   बचपन  में  कौटिल्य  ने   पहली  शिक्षा  यही  दी  थी   l   नन्द  वंश  के  सड़े -गले  दुराचारी  शासन  का  अंत  करने  के  लिए   कौटिल्य  ने   मुरा  नाम  की  दासी  के  होनहार  पुत्र   चन्द्रगुप्त  को  चुना  ,  तो  दीक्षा  देते  हुए   पहला  वाक्य  कहा --- " आरभ्यते   इति  "  आरम्भ  किया  जाये  ,  तो  इति   तक  पहुँचने  के  लिए  ही  l  प्रतिभाशाली  छात्र  ने  उपदेश  सुनकर  ही   ' हाँ '  नहीं  कह  दिया  l   उसके  मन  में  प्रश्न  उठा   कि   परिस्थितियां  हो  सकती  हैं   ,  जिनमें  कार्य  पूरा  न  हो  सके  l   शिष्य  ने  शंका  रखी   तो  गुरु  ने  कहा --- ''  राजा  दैव   विवर्जित  "  अर्थात  सिर्फ   शासन  और  भाग्य   ही  बाधक   हो  सकता  है   l   राजसत्ता  कोई  विध्न  उत्पन्न  कर  दे    अथवा  कोई  रोग , विपत्ति  घेर  ले    तो  अलग  बात  है  ,  अन्यथा  काम  पूरा  होने  से  पहले  विश्राम  नहीं    l   लोक  कथा  कहती  है   कि   यह  पाठ  पढ़ने  के  बाद   चन्द्रगुप्त  मौर्य  ने  पीछे  मुड़कर  नहीं  देखा   और  अब  से ढाई  हजार  वर्ष  पहले   सुदृढ़   राष्ट्र की  नींव  रखी  l "

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " वर्तमान  समय  में  मनुष्य  जैसे - तैसे  शिष्टाचार  तो  निभा  लेता  है  ,  परन्तु  जब  बारी   सदाचार  को  निभाने  की  आती  है  ,  तब  वह  औंधे  मुँह   गिर  पड़ता  है   l   स्वार्थलिप्सा , वासना  और  अहंता   उसे  दबोच  लेते  हैं  l   यही  वजह  है  कि  अच्छा  करने  के  इरादे   से  निकलने  वाले  लोग  भी  कुछ  दूर  चलकर   बुरा  करने  लगते  हैं   l   उनकी  आंतरिक  दुर्गन्ध   पूरे   समाज  में   सड़ाँध   फैलाने   लगती  है   l   इसे  दूर  करने  के  लिए   आध्यात्मिक  दृष्टिकोण ,  आध्यात्मिक  चिंतन  और  आध्यात्मिक  साधना  की  जरुरत  पड़ती  है   l  "