रामायण और महाभारत हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l लेकिन सीखता व्यक्ति वही है जैसे उसके संस्कार होते हैं l रामायण से भगवान राम के आदर्श से व्यक्ति यदि कुछ सीखना चाहे तो धरती पर सुख - शांति आ जाये लेकिन भगवान की आरती - पूजा कर के मनुष्य अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है l रावण से भी कोई उसकी अच्छाई नहीं सीखता , उसके जैसा विद्वान् नहीं है लेकिन उसकी असुरता का चारों और बोलबाला है l महाभारत से भी यदि कोई शिक्षा लेना चाहे तो किसी का हक न छीने l दुर्योधन को समझाने स्वयं भगवान कृष्ण गए लेकिन उसे इतना लालच , इतना अहंकार कि पांच गाँव तो क्या सुई की नोक बराबर भूमि भी देने को राजी नहीं हुआ , परिणाम महाभारत होना ही था l महाभारत की कथा राजवंश की भाई - भाई के बीच राज्य के अधिकार की लड़ाई है l दुर्योधन ने पांडवों का हक छीना l युधिष्ठिर की तरह कोई धर्म के मार्ग पर नहीं चलता लेकिन दुर्योधन की तरह हर शक्तिशाली कमजोर का हक छीनता है , केवल व्यक्ति अपना सुख चाहता है , दूसरों को चैन से जीने नहीं देता l आज सबसे ज्यादा जरुरी है कि मनुष्य की चेतना जाग्रत हो l वह इस सच को समझे कि गलत कार्यों का परिणाम भी गलत ही होता है l
17 December 2020
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' जो आदमी अहंकार के साथ जीता है वह हमेशा चिंतित रहता है l उसे हमेशा परेशानी बनी रहेगी कि कौन क्या कर रहा है ? कौन क्या कह रहा है ? अहंकार हमेशा औरों पर निर्भर होता है l प्रशंसा अहंकार को फुसलाती है , प्रसन्न करती है l मूढ़ - से - मूढ़ आदमी को बुद्धिमान कहो तो वह प्रसन्न हो उठता है l अहंकार को पोषण देने वाला ही उसे प्रिय होता है और इसे चोट देने वाला उसे अप्रिय होता है l अहंकार का तात्पर्य है --- मैं l जहाँ मैं यानी कि अपने होने की प्रबलता और दृढ़ता है , वहीँ अहंकार है l अहंकार से विवेक का नाश होता है और इसी का परिणाम होता है कि अहंकारी व्यक्ति की सम्यक जीवन दृष्टि समाप्त हो जाती है और कभी - कभी तो वो स्वयं को ही परमात्मा मान बैठता है l