17 December 2020

WISDOM -----

   रामायण  और  महाभारत   हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l   लेकिन  सीखता  व्यक्ति  वही  है   जैसे  उसके  संस्कार  होते  हैं  l   रामायण  से  भगवान  राम  के  आदर्श  से  व्यक्ति  यदि  कुछ  सीखना  चाहे   तो  धरती  पर  सुख - शांति  आ  जाये   लेकिन  भगवान  की  आरती - पूजा  कर  के  मनुष्य  अपना  कर्तव्य  पूरा  कर  लेता  है   l    रावण  से  भी  कोई   उसकी  अच्छाई  नहीं  सीखता  ,   उसके  जैसा  विद्वान्  नहीं  है  लेकिन  उसकी  असुरता  का  चारों  और  बोलबाला  है   l  महाभारत  से  भी  यदि  कोई  शिक्षा  लेना  चाहे    तो  किसी  का  हक  न    छीने  l  दुर्योधन  को  समझाने   स्वयं  भगवान  कृष्ण  गए  लेकिन  उसे  इतना  लालच , इतना  अहंकार   कि   पांच  गाँव  तो  क्या  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  देने  को  राजी  नहीं  हुआ  ,  परिणाम  महाभारत   होना  ही  था  l  महाभारत  की  कथा  राजवंश  की  भाई - भाई  के  बीच  राज्य  के  अधिकार  की  लड़ाई  है  l   दुर्योधन  ने  पांडवों  का  हक   छीना   l   युधिष्ठिर  की  तरह  कोई  धर्म  के  मार्ग  पर  नहीं  चलता   लेकिन  दुर्योधन  की  तरह  हर  शक्तिशाली   कमजोर  का  हक    छीनता   है  ,  केवल  व्यक्ति  अपना  सुख  चाहता  है  , दूसरों  को  चैन  से  जीने  नहीं  देता  l   आज  सबसे  ज्यादा  जरुरी  है  कि   मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  हो   l   वह  इस  सच  को  समझे  कि   गलत  कार्यों   का   परिणाम  भी  गलत  ही  होता  है  l 

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- ' जो  आदमी  अहंकार  के  साथ  जीता  है  वह  हमेशा  चिंतित  रहता  है  l   उसे  हमेशा  परेशानी  बनी   रहेगी   कि   कौन  क्या  कर  रहा  है ?  कौन  क्या  कह  रहा  है  ?  अहंकार  हमेशा  औरों  पर  निर्भर  होता  है  l  प्रशंसा  अहंकार  को  फुसलाती  है , प्रसन्न  करती  है  l   मूढ़  - से - मूढ़  आदमी  को   बुद्धिमान  कहो   तो  वह  प्रसन्न  हो  उठता  है   l   अहंकार  को  पोषण  देने  वाला  ही  उसे  प्रिय  होता  है   और  इसे  चोट  देने  वाला   उसे  अप्रिय  होता  है   l   अहंकार  का  तात्पर्य  है --- मैं   l   जहाँ  मैं   यानी   कि   अपने  होने  की  प्रबलता  और  दृढ़ता  है  ,  वहीँ  अहंकार  है   l   अहंकार  से  विवेक   का नाश  होता  है   और  इसी  का  परिणाम  होता  है  कि   अहंकारी  व्यक्ति  की  सम्यक  जीवन  दृष्टि  समाप्त  हो  जाती  है   और  कभी - कभी  तो  वो   स्वयं  को  ही  परमात्मा  मान  बैठता  है   l