15 April 2013

BALANCE BETWEEN PHYSICAL AND MENTAL LABOUR

उच्चस्तरीय दायित्वों को निभाने के लिये जिस प्रतिभा की आवश्यकता है वह श्रमशीलों में होती है | यही कारण है कि पश्चिमी देशों में बड़े -बड़े उद्दोगपति अपने बच्चों को दायित्व का अनुभव कराने के लिये कारखानों में मजदूरों की तरह श्रम कराते हैं | पुरातन भारत के सभी राजा अपने पुत्रों को जीवन कला के शिक्षण हेतु साधारण बालक की तरह गुरुकल भेजा करते थे |
रूस में किसी समय समूचे राजपरिवार के सभी सदस्यों के लिये शारीरिक श्रम करना अनिवार्य था | सम्राट पीटर तब राजकुमार थे ,उन्हें युवराज घोषित किया जा चुका था परन्तु  उन्होंने शाही शान -शौकत के बाड़े से निकलकर हालैंड की जहाज निर्माता कंपनी में ,इंग्लैंड की पेपर मिल और आटा मिल में काम किया | उन्होंने लोहे के बाट बनाने वाली फैक्ट्री में भी कार्य किया और उस मजदूरी से प्राप्त राशि से अपने फटे जूते के स्थान पर नये जूते ख़रीदे | आज भी ये जूते और तोलने के बाट रूस के संग्रहालय में श्रम निष्ठा के प्रतीक के रूप में सुरक्षित हैं |
इसी तरह अमेरिका के धनी व्यक्तियों की गणना में आने वाले साइरस डब्लू फील्ड ने जीवन के आरंभिक दिनों में एक फर्म में मजदूरी की | सुबह 6 बजे से सूर्यास्त होने तक वे अपनी फैक्ट्री में काम में जुटे रहते थे |  इस कठोर श्रम के बाद वे वाणिज्य लाइब्रेरी जाते थे और वहां व्यवसाय संबंधी पुस्तकों का अध्ययन करते | इसी सामंजस्य पूर्ण परिश्रम के कारण साइरस अमेरिका के सुविख्यात उद्दोगपति बन सके |
प्रतिभावान बने ,इसके लिये चिंतन और क्रिया दोनों ही पक्षों में संतुलन अनिवार्य है |
                केवल शारीरिक श्रम करने वाले जो मानसिक श्रम नहीं करते उन्हें गंवार ,मूर्ख कहा जाता है और मानसिक श्रम करने वाले जो शारीरिक पक्ष की ओर ध्यान नहीं देते उन्हें दुर्बल ,रोगी और तनाव जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है | यदि दोनों में सामंजस्य स्थापित हो जाये -संतुलित श्रम निष्ठा हो तो जीवन में एक अलौकिक निखार आने लगता है | इसे एक बार समझ लिया जाये तो वह आदत बन जाती है और वह हमारे गले में पुष्पाहार की तरह सुशोभित हो जाती है |