20 November 2020

WISDOM ----- जो अहंकार से पीड़ित हैं , वे अपने मन में उतने ही ज्यादा असुरक्षित हैं

   पुराणों  में  एक  कथा  है  --- एक  राजा  था   महिषध्वज ,  बहुत  अहंकारी  था   l  यह  अहंकार  उसे  अपने  पिता  व  दादा  से  विरासत  में  ही  मिला  था  l   वह  कहता  था  कि   मैंने  ही  गरीबों  को  धन  दिया , भूखों  का  पेट  भरा  ,  मेरे  कारण  न  जाने  कितने  घरों  में  चूल्हा  जलता  है  l  मैं  ही  सबका  आश्रयदाता  हूँ   इसलिए  लोग  मुझे  भगवान  के  समान   पूजते  हैं  l   जबकि  सच  यह  था  कि   उसके  हृदय  में  संवेदना  नहीं  थी  l  उसके  विरुद्ध  कोई  दो  शब्द  भी  बोलता ,  झुककर  बात  नहीं  करता  तो  वह  उसे  दण्डित  करता  l   औरों  की  पीड़ा  उसे  पीड़ित  नहीं  करती  ,  उसे  तो  केवल  अपने  सुख - दुःख  की  परवाह  थी  l   इसलिए  लोग  अपनी  जान  बचाने   के  लिए  उसकी  प्रशंसा  कर  दिया  करते  थे    जिसे  महिषध्वज  सच  मान  लेता  था  l  अहंकार  में  आधिपत्य  की  चाहत  होती  है   इसलिए  वह  आसपास  के  राज्यों  पर  भी  अपना  अधिकार  कर  उन्हें  अपने  आतंक  के  नीचे   रखना  चाहता  था  l   संयोग  से  एक  संत   धृतव्रत   उस  रियासत  से  होकर  गुजर  रहे  थे  ,  उनकी  भेंट  महिषध्वज  से  हुई  l   इन  संत  के  पिता  भी  एक  रियासत  के  राजा  थे   लेकिन  संत  ने  अपनी  रियासत  अपने  भाइयों  को  सौंप  दी  और  स्वयं  संत  बन  गए  l  महिषध्वज  के  कहने  पर  वे  कुछ  दिन  उसकी  रियासत  में व्यतीत  करने  को  तैयार  हो  गए  l  संत  प्रात:  उठकर   बीमार  लोगों  की  सेवा  करते , असहायों  की  सहायता  करते ,  दीन - दुःखियों   का  दर्द  बांटते  l   उनके  इस  आत्मीय  व्यवहार  से  राजा  के  आतंक  से  पीड़ित   जनता  में  नई   ऊर्जा  का  संचार  हुआ  l  अब  तो  संत  के  द्वार  विशाल  जनसमूह   अपने  कष्टों  के  निवारण  का  मार्ग  पूछने  और  जीवन  के  लिए  सही  मार्गदर्शन  पाने  के  लिए  इकट्ठा  होने  लगा  l  संत  धृतव्रत  की  बढ़ती  लोकप्रियता  से  राजा  को  बड़ी  असुरक्षा  हुई  l   उन्होंने  संत  से  कह  दिया  कि  प्रजा  उसी  पर  आश्रित  है  और  उसे  भगवान  की  तरह  पूजती  है  l   संत  ने  कहा --- राजन  !  तुम्हारे  मन  में  भ्रम  है  कि   यहाँ  आता  विशाल  जनसमूह   तुम्हारे  साम्राज्य  को  चुनौती  दे  रहा  है  l   तुम्हे  यह   विचारने   की  आवश्यकता  है   कि   तुम्हारे  राजा  होते  हुए  ये  सारा   जनसमूह   मेरे  द्वार  पर   किस  आशा  के  साथ  खड़ा  है  ?  न  मेरे  पास  कोई  धन  है ,  न  कोई  अधिकार  ,  फिर  इन्हे   यहाँ  आने  के  लिए  कौन  सा  कारण  प्रेरित  कर  रहा  है  ?    राजा  महिषध्वज  के  पास  इसका  कोई  उत्तर   न था  l   संत  धृतव्रत  बोले ---- "  मानवीय  सम्बन्ध   प्रेम  के  आधार  पर  खड़े  होते  हैं  l  यदि   तुम यह  चाहते  हो  कि   लोग  तुम्हे  हृदय  से  चाहें   तो  उनके  कष्ट  के  निवारण  के  लिए  हृदय  से  प्रयास  करना  सीखो  l   यदि  संबंधों  का  आधार   स्नेह ,प्रेम  और  िश्वास  हो   तो  तुम्हारी  प्रजा  भी  तुम्हारे  प्रति  श्रद्धा  और  आदर  का  भाव  रखने  लगेगी   l  संत  के  विचारों  से  राजा  बहुत  प्रभावित  हुआ  ,  उसका  आचरण  बदलने  लगा  ,  अब  उसके  राज्य  में  आतंक  के  स्थान  पर  संवेदना  का  वातावरण  था  l   अब  प्रजा  के  हृदय  में  भी  उसके  लिए  आदर  भाव   था   l 

WISDOM ------ मेघनाद क्यों हारा ?

   हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं ,  उचित -अनुचित  और  अच्छे - बुरे  का  भान  कराते  हैं  l   इनके  अध्ययन - मनन   से   हमें  अपने  जीवन  में  सही  दिशा  चुनने  की  समझ  आती  है  l ---- रावण  का  पुत्र  था  --मेघनाद   l   उसकी  पत्नी  का  नाम  था  सुलोचना  l   राक्षस कुल   में रहकर  भी  उसके  जैसी  महान  पतिव्रता   का  होना  एक  आश्चर्य  था  l   सुलोचना  ने  जीवन  भर  पतिव्रत  धर्म  की  साधना  कर    मेघनाद  को  वह  बल  प्रदान  किया  था   कि   उसके  आगे  देवता  भी  नहीं  टिकते  थे  l   उसने  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  को  पराजित  किया   और  इंद्रजीत  कहलाया  ,   जैसे  मेघ  गरजते  हैं  वैसी  ही  उसकी  गर्जना  थी ,  इसलिए  वह  मेघनाद  था  l   राम - रावण  के  युद्ध  में  जब  मेघनाद  सेनापति  बना  , तब  भगवान  राम  ने  उससे  युद्ध  करने  के  लिए  लक्ष्मण जी  को  भेजा  l  लक्ष्मण जी  महारथी  थे  l   मेघनाद  ने  शक्ति  का  प्रयोग  किया  ,   इस कारण  वे  मूर्छित  हो  गए  l   लेकिन  श्री  हनुमान जी  द्वारा  लाई   गई  संजीवनी  बूटी  और  उनकी  पत्नी  उर्मिला  के  पतिव्रत  धर्म  की  ताकत  से  लक्ष्मण  जी  को  जीवन दान  मिला  l  लक्ष्मण जी   की पत्नी  उर्मिला  महान  पतिव्रता  थी  ,  उसने  चौदह  वर्ष  तक  अपने  पति  की  अनुपस्थिति  में  पलक   ऊपर  उठाकर  किसी  पुरुष  के  दर्शन  तक  नहीं  किए  और  राज्य - भोग , आभूषण , स्वादयुक्त  भोजन    आदि   का परित्याग  इसलिए  कर  दिया   था  ,   क्योंकि उनके  पति  वनवासी  थे   l    जब  लक्ष्मण जी  स्वस्थ  होकर   पुन:  मेघनाद  से  युद्ध  के  लिए  जाने  लगे   तब  भगवान  राम  ने  उन्हें  चेताया  कि   ध्यान  रखना   मेघनाद  का  सिर   जमीन  पर  न  गिरने  पाए  l ------- लक्ष्मण जी  और  मेघनाद  में  भयंकर  युद्ध  हुआ   और  अंत  में  मेघनाद  पराजित  हुआ  और  मारा  गया  l      यह  पूछने  पर  कि   लक्ष्मण  और  मेघनाद  दोनों  ही  महारथी  थे  ,  दोनों  की  पत्नी  महान  पतिव्रता  थीं ,  जिनके  सतीत्व  की  शक्ति  उनके  पति  की  रक्षा  करती  थी  l   फिर  ऐसा  क्या  हुआ  कि   मेघनाद  पराजित  हुआ  ?     भगवान  ने  कहा  --- मेघनाद  ने  एक  ऐसे  व्यक्ति  का  साथ  दिया  जिसने  परस्त्री  का  अपहरण  किया  ,   अत्याचारी   व अन्यायी  था  l   ऐसे  व्यक्ति  का  साथ  देकर   उसने  स्वयं  ही  अपनी  शक्ति  को  कम   कर  लिया   और  पराजित   हुआ  l   इस  प्रसंग   से हमें  शिक्षा  मिलती  है  कि   हम  होश  में  रहें ,  अत्याचारी  और  अन्यायी  का  साथ  देकर  मनुष्य  स्वयं  अपने  पतन  की  राह  चुनता  है  l