वास्तविक प्रसन्नता---सफल जीवन जीने की अनुभूति की एक ही कुंजी है--- समर्पण भाव से सतत कर्म करते रहना और परमार्थ के लिए सत्कर्म करना ।
जिस समाज या राष्ट्र में युवाशक्ति, सामान्य जन विषय-विलासी, स्वार्थी, अति महत्वकांक्षी, भोगप्रधान चिंतन वाले होंगे, वह राष्ट्र या समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता, फल-फूल नहीं सकता । कितना भी आधुनिकीकरण, यंत्रीकरण क्योँ न हो जाये, संसार में शांति नहीं मिल सकती ।
वह शांति जिसकी खोज में आज सारा विश्व है, वह जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा से ही मिलेगी । एकाकी स्वार्थी जीवन जीने से, परमार्थ कार्यों की उपेक्षा से व्यक्ति का आत्मिक जगत सूखा मरुस्थल बन गया है । जिसे देखिये वही देखने में स्वस्थ पर अंदर से खोखला व तनावग्रस्त है ।
यदि किसी समाज का, राष्ट्र का पुनर्निर्माण होगा तो जीवन जीने के तरीके बदलकर- जीवन को भोगमय से बदलकर त्याग की जीवन में प्रतिष्ठा करने से ।
जिस समाज या राष्ट्र में युवाशक्ति, सामान्य जन विषय-विलासी, स्वार्थी, अति महत्वकांक्षी, भोगप्रधान चिंतन वाले होंगे, वह राष्ट्र या समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता, फल-फूल नहीं सकता । कितना भी आधुनिकीकरण, यंत्रीकरण क्योँ न हो जाये, संसार में शांति नहीं मिल सकती ।
वह शांति जिसकी खोज में आज सारा विश्व है, वह जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा से ही मिलेगी । एकाकी स्वार्थी जीवन जीने से, परमार्थ कार्यों की उपेक्षा से व्यक्ति का आत्मिक जगत सूखा मरुस्थल बन गया है । जिसे देखिये वही देखने में स्वस्थ पर अंदर से खोखला व तनावग्रस्त है ।
यदि किसी समाज का, राष्ट्र का पुनर्निर्माण होगा तो जीवन जीने के तरीके बदलकर- जीवन को भोगमय से बदलकर त्याग की जीवन में प्रतिष्ठा करने से ।