5 March 2021

WISDOM ----

   बात   उस  दिन  की  है  जब  रानी  रासमणि  द्वारा  बनवाए   गए  दक्षिणेश्वर  मंदिर  में  प्राण  प्रतिष्ठा  समारोह   उत्साहपूर्वक  मनाया  जा  रहा  था   l   रूढ़  संस्कारग्रस्त  ब्राह्मणों  ने  केवट  जाति   की  महिला  द्वारा  बनवाए   गए  मंदिर  में  प्रतिष्ठा  करने  से  इनकार   कर  दिया  था   इसलिए  रानी  ने  मंदिर  की  सम्पति  कुलगुरु   को  दान  कर  दी  ,  इससे  ब्राह्मण  वर्ग  संतुष्ट  हो  गया  l   उस  पर्व  पर  रानी  रासमणि  ने  ब्रह्मभोज  दिया  l   सब  ब्राह्मण  भोजन  करते  और  दक्षिणा  स्वरुप  एक  सोने  का  सिक्का  लेकर  चलते  बनते  l   एक  बारह  वर्षीय  बालक  इस  समारोह  में  बड़ी  दौड़ - धूप   कर  रहा  था  l   दोपहर  ढल  गई  ,  उस  बालक  ने  देखा  कि   एक  ब्राह्मण  बड़ी  शांति  से  बैठा  है  l   बालक  ने  उससे  कहा  कि   तुमने  अभी  तक  भोजन  क्यों  नहीं  किया  ,  जाओ  भोजन  कर  लो  ,  रानी  एक  मुहर  दक्षिणा  में  दे  रही  हैं   l   उस  ब्राह्मण  ने  कहा  --- ' मैं  भिखारी  नहीं  हूँ  ,  भोजन  करने  और  दक्षिणा  लेने  नहीं  आया  हूँ  l  "  बालक  ने  पूछा  --- ' तो  फिर  किसलिए  आए   हो  l  '  ब्राह्मण  ने  कहा  जिसके  पुण्य  प्रताप  का  यह  परिणाम  दिख  रहा  है  ,  उन्ही  पुण्यात्मा  रानी  के  दर्शन  करने  आया  हूँ  l  "    सूर्यास्त  के  समय  सब  ब्राह्मणों  के  भोजन  कर  चुकने  के  बाद  रानी   रासमणि  मंदिर  से  बाहर  निकलीं  , साथ  में  वह  बालक  भी  था  l   वे  ब्राह्मण  को  प्रणाम  करतीं , उससे  पूर्व  ब्राह्मण  ने  उन्हें  दंडवत  प्रणाम  किया   रानी  चौंककर  पीछे   हटीं    और  कहा  --- ' मैं  अस्पृश्य   शूद्र  l   आपने  मुझे  प्रणाम  कर  पाप  चढ़ाया  l '  तब  उस  ब्राह्मण  ने  कहा  --- ' तुम  दिव्य  रूपा  हो  माँ , सर्वश्रेष्ठ  मानवी  l  यह  हाड़ -मांस   का  कलेवर  कहाँ   उपजा  ?  कहाँ  पला  ,  इससे  क्या  ?  बात  अंत:करण   के  परिष्कार  की  है   l   इसकी  परिष्कृति   आप  सी    और  कहाँ  है   ?  "  उन  ब्राह्मण  ने  कहा  --- 'आप  अपने  हाथ  से  पकाकर  खिलाएंगी  तभी  भोजन  करूँगा  l  '  यह  बात    पूरे    गाँव  में   फैल   गई   तो  सब  ब्राह्मण  एकत्रित  हुए  बहुत  विवाद  हुआ   l   उन  ब्राह्मण  देवता  ने  कहा  --- जाति -पाँति   और  ऊंच - नीच  की  मान्यता  गलत  है  l   यदि  आप  ऐसे  ही  सच्चे  ब्राह्मण  थे  तो  अंग्रेजों  को  अपने  शाप  से  भस्म  क्यों  नहीं  कर  दिया  ?  और  जब  नैष्ठिक  ब्राह्मण  नंदकुमार  को  फाँसी   चढ़ाई  थी  ,  उस  समय  ये  ब्राह्मण  कहाँ  थे   ?    उन्होंने  कहा  ---ब्राह्मण  का  कर्तव्य  है  कि   शूद्र - चाण्डाल   को  भी  ब्राह्मणत्व  के  स्तर  तक  पहुंचाए  l   जो  दलितों  - अनगढ़ों  का  उन्नायक  न  बन  सके  वह  ब्राह्मण  कैसा   ?  "  उनकी  तेजस्विता  ने  अन्य  सभी  को  मौन  कर  दिया  l    यह  सारा  वार्तालाप  वह  बालक  सुन  रहा  था   l   उसने  सच्चे  ब्राह्मण  का  अर्थ  जाना ,  ब्राह्मणत्व  की  मीमांसा  उसके  दिल  में  उतर  गई   l   समूचे  विश्व  ने  इस  बालक  को  रामकृष्ण  परमहंस  के  रूप  में  जाना   l