3 September 2022

WISDOM -----

   संत  तुकाराम  जन्मजात  शूद्र  थे  l  उनका  ईश्वर  भक्ति  करना  तथा  भक्ति  गीत  लिखना  तात्कालिक  सवर्ण  पंडितों  की  द्रष्टि  में  अनुचित  था  और  एक  अपराध  था  l  एक  निकटवर्ती  पंडित  श्री  रामेश्वर  भट्ट  ने  उन्हें  बुलाया  और  कहा  कि  तुम्हे  शूद्र  होने  के  नाते  यह  सब  कुछ  नहीं  करना  चाहिए  l  न  ईश्वर  भक्ति ,  न  भजन -कीर्तन  और  न  अभंगों  की  रचना  l "  तुकाराम  अत्यंत  ही  सरल  स्वाभाव के  ,  बहुत  ही  सीधे - सरल  स्वभाव  के  व्यक्ति  थे  l  उन्होंने  रामेश्वर  भट्ट  की  बात  स्वीकार  कर  ली   और  पूछा  --- " किन्तु  जो  अभंग  रचे  जा  चुके  हैं  ,  उनका  क्या  होगा  ? "  तब  उस  ह्रदयहीन  पंडित  ने  कहा --- " उन्हें  नदी  में  बहा  दो  l "  संत  तुकाराम  तो  अनासक्त  योगी  थे  ,  उनके  दबाव  में  उन्होंने   अपने  अभंगों  की  पोथी  नदी  में  प्रवाहित  कर  दी    लेकिन  इससे  उनका  मन  इतना  दुःखी  हो  गया  कि  वे  बिटठल   मंदिर  के  सामने  तेरह  दिन  तक  बिना  अन्न -जल  ग्रहण  किए  पड़े  रहे   और  सोचते  रहे  कि " मेरी  भक्ति  में  कोई  त्रुटि ' है  ,  जो  भगवान  मुझसे  प्रतिकूल  हो  गए  हैं  l  दुःखी  मन  की  पुकार  निष्फल  नहीं  जाती  l  तेरहवें  दिन  तुकाराम  को  स्वप्न  हुआ   कि  " पोथियाँ  नदी  किनारे  पड़ी  हैं , जाकर  उठा  ले  l "  तब  उनके  भक्तगण   स्वप्न  का  हाल  सुनकर  जयघोष  करते  हुए  गए  और  पोथियाँ  किनारे  पर  से  उठा  लाये   l  

WISDOM----

   बलख  के  बादशाह  के  पास  अपार  धन -सम्पदा  थी   लेकिन  उन्हें  आत्मिक म संतोष  नहीं  था  l धीरे -धीरे  उन्हें  संसार  से  विरक्ति  होने  लगी  l  उन्होंने  अपने  वजीर  से  कहा --- " मुझे  किसी  पहुंचे  हुए  संत  के  दर्शन  कराने  ले  चलो  l "  बादशाह  को  साथ  लेकर  वजीर  लाहौर  की  ओर  रवाना  हो  गए  l  लाहौर  के  समीप  जंगल  में  मियां  मीर  झोंपड़ी  में  रहा  करते  थे  l  उन्हें  जब  पता  चला  कि  बादशाह  उनके  दर्शनों  के  लिए  आ  रहे  हैं  तो  उन्होंने  अपने  शिष्यों  को  हिदायत  दी  कि  बादशाही  ठाठ -बाट  वाले  किसी  व्यक्ति  को  उनके  पास  न  आने  दें  l   बादशाह  को  जब  यह  ज्ञात  हुआ  तो  उन्होंने  अपना  सारा  समान  गरीबों  में  बंटवा  दिया  और  साधारण  वस्त्र  पहनकर  संत  की  कुटिया  के  बाहर  पहुंचे  l  मियाँ  मीर  ने  कहलवाया  कि  जंगल  में  एक  और  फ़क़ीर  रहते  हैं  ,  कुछ  दिन  उनकी  सेवा  करो न ,  उनके  जैसा  जीवन  जियो  ,  तब  तुम्हे  दर्शन  का  मौका  दिया  जायेगा  l  बादशाह  ने  जंगल  में  रहकर  फ़क़ीर  की  सेवा  की  और  फकीर  की  इबादत  में  अपने  जीवन  को  लगाने  का  निश्चय  किया  l  मियाँ  मीर  ने  खुश  होकर  बादशाह  को  अपना  शिष्य  बनाया   और  उन्हें  आत्मज्ञान  का  मार्ग  दिखाया  l  मियाँ  मीर  के  आशीर्वाद  से  बादशाह  आगे  चलकर  संत  बुल्लेशाह  के  नाम  से  प्रसिद्ध  हुए  l