पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " दूसरों का सहारा लेकर बहुत ऊँचे पहुंचे हुए लोगों में वो साहस और द्रढ़ता नहीं होती जो अपने आप विकसित हुए व्यक्ति में स्थायी रूप से होती है l सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले पर अपने पैरों की गई यात्रा -विकास यात्रा अधिक विश्वस्त होती है l संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वासपात्र बनना आवश्यक है l आत्म शक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल और बड़ा आदमी बनता है l " एक कथा है ---- किसी चिड़िया ने चोंच में दबाकर पीपल का एक बीज नीम के खोखले तने में डाल दिया l वहां थोड़ी मिटटी , थोड़ी नमी थी l बीज उग आया और धीरे -धीरे उस वृक्ष से ही आश्रय लेकर बढ़ने लगा l सीमित साधनों में वह पीपल का पौधा थोड़ा ही बढ़कर रह गया l एक दिन उसने बड़े वृक्ष को डांटते हुए कहा ---- " दुष्ट ! तू स्वयं तो आकाश छूने जा रहा है और मुझे थोड़ा भी बढ़ने नहीं देता l अब तूने शीघ्र ही मुझे विकास के और साधन न दिए तो तेरा सत्यानाश कर दूंगा l " नीम के वृक्ष ने समझाया ----" मित्र ! औरों की दया पर पलने वाले इतना ही विकास कर सकते हैं जितना तुमने किया है l इससे अधिक करना हो तो नीचे उतरो और अपनी नींव आप बनाओ , अपने पैरों पर खड़े हो l " पौधे से वह तो नहीं बना , हाँ , वह उसे कोसने अवश्य लगा लेकिन नीम के वृक्ष को इतनी फुरसत कहाँ थी कि वह पीपल के पौधे की गाली -गलौज सुनता l एक दिन हलकी सी आंधी आई l नीम का वृक्ष थोड़ा ही हिला था , पीपल के पौधे की नींव कमजोर थी अत" वह धराशायी होकर मिटटी चाटने लगा l उधर से एक राहगीर निकला l उसने नीम के वृक्ष की ओर देखा और उसके खोखले तने से गिरे हुए पीपल के पौधे को देखा और धीरे से कहा --- " जो परावलंबी हैं , औरों के आश्रय में बढ़ने की आशा करते हैं , उनकी अंत में यही गति होती है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- "जो दूसरों के सहारे उठते हैं उन्हें बात -बात पर गिर जाने का भय बना रहता है l अपने आप बढ़ने में सच्चाई और ईमानदारी रहती है , वह घबराता नहीं , परेशान भी नहीं होता l