पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- केवल विचारों पर संयम करना पर्याप्त नहीं है l विचारों के साथ वाणी पर संयम करना अनिवार्य है l वाणी की वाचालता शक्ति के क्षरण के अतिरिक्त संबंधों में कटुता भी पैदा करती है l वाणी के माध्यम से हमारी मानसिक शक्तियों का सर्वाधिक क्षरण होता है l अहंकार , कामुकता , क्रोध , द्वेष से लेकर तृष्णा , वासना की अभिव्यक्ति का माध्यम भी वाणी बन जाती है l अंदर के कुत्सित उद्वेग वाणी के माध्यम से शब्दों का आकार पाते हैं l इसलिए वाणी की शक्ति का संरक्षण , संयम व सदुपयोग भी शक्ति संरक्षण का एक महत्वपूर्ण आधार कहा जा सकता है l
10 September 2020
WISDOM -------
मृत्यु होने पर अपनी धन - दौलत छोड़कर जाना हमारी मज़बूरी है क्योंकि यही प्रकृति का नियम है कि व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है l इसलिए ऋषियों ने , आचार्य ने सिखाया है कि जीवन को उदारतापूर्वक जिएं l यही शिक्षण देने वाली एक कथा है ----- एक गाँव में एक सेठ था , वह बहुत धनवान था लेकिन बहुत दुःखी रहता था क्योंकि उसके गाँव वाले उससे बहुत नफरत करते थे l एक दिन उसने गाँव वालों से कहा --- ' तुम सब मुझसे इतनी नफरत क्यों करते हो l मैं अपनी सारी सम्पति दान में दे दूंगा जिससे सारा गांव खुशहाल हो जायेगा , लेकिन मरने के बाद दूंगा l तुम लोग कुछ साल इंतजार भी नहीं कर सकते l " गाँव के लोग उसका उपहास करते , भला - बुरा कहते l एक दिन सेठ को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था , वह एक जंगल से होकर गुजर रहा था l रास्ते में थककर पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा l उस पेड़ से थोड़ी दूरी पर एक गाय और सुअर आपस में बात कर रहे थे l सेठ जानवरों की भाषा समझता था सो ध्यान से सुनने लगा l --- सुअर गाय से कह रहा था --- " मुझे समझ में नहीं आता कि सभी तुमसे ``इतना क्यों प्यार करते हैं और मुझे कोई पूछता तक नहीं , जबकि मेरे तो मरने के बाद मेरा गोश्त , चर्बी , चमड़ा सभी कुछ इनके काम आता है , फिर भी जीते जी मुझे नफरत की नजर से देखा जाता है l और तुमको सदा सम्मान मिलता है , लोग इतने प्यार से पालते हैं l " गाय सुअर से बोली --- ' भाई देखो , मैं जीते जी उन्हें दूध देती हूँ , और वह सब मैं उन्हें उदारता पूर्वक देती हूँ l तुम तो जीते जी उन्हें कुछ नहीं देते l तुम्हारे मरने के बाद ही उन्हें कुछ मिलता है l दुनिया का एक दस्तूर जान लो ' लोग भविष्य में विश्वास नहीं करते ```` वे वर्तमान में विश्वास करते हैं l अत: यदि तुम उन्हें जीते जी कुछ दो तो वे तुम्हे बेहतर ढंग से अपनाएंगे l " यह सुनकर सेठ को अपनी गलती का एहसास हुआ , वह वापस गाँव आया और अपनी आय का एक अंश गरीब और जरूरतमंदों के लिए खर्च करने लगा l गाँव वालों को भी उससे अपनापन हो गया और सेठ का जीवन भी संतोष व ख़ुशी से भर गया l