विश्व युद्ध , विभिन्न देशों के बीच समय - समय पर होने वाले युद्ध , दंगे , विभाजन जैसी त्रासदी --यह सब मनुष्य के ही अहंकार , स्वार्थ , अति महत्वाकांक्षा , 'स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझना जैसी मानसिक दुष्प्रवृतियों का ही दुष्परिणाम थे l ऐसी घटनाओं में सबसे दुःखद बात यह होती है कि कितने ही बच्चे जिन्होंने बोलना , खड़े होना ही नहीं सीखा , वे बिना वजह मारे जाते है , कुछ माँ के गर्भ से बाहर आने को ही तरस जाते हैं , अचानक ही धरती पर अनाथों , अपाहिजों , विधवाओं , और बेसहारा लोगों की संख्या बढ़ जाती है , धरती लाशों से पट जाती है l बेवजह हुई ऐसी त्रासदी से धरती तो बोझिल होती है , वायुमंडल भी जख्मी हो जाता है l इसके दुष्परिणाम केवल वर्तमान पीढ़ी ही नहीं , भावी पीढ़ियाँ भी झेलती हैं l इसी कारण वातावरण को परिष्कृत करने के लिए भगवान राम ने लंका विजय के उपरांत राजसूय यज्ञ कराया l महाभारत के युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने भी राजसूय यज्ञ कराया l भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे यज्ञ कराने के अनेक उदाहरण हैं l इन यज्ञों का उद्देश्य यही था कि ऐसी विभीषिका से वातावरण में जो नकारात्मकता भर गई है उसे दूर किया जाये l लेकिन वर्तमान युग में जब भौतिक प्रगति , समृद्धि को ही सब कुछ माना जाता है , अब संवेदना नहीं है l पद पाने की , धन कमाने की , अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति की भागदौड़ है l जब जीवन का लक्ष्य ही स्वार्थ है तो युद्ध हो या न हो , शांति नहीं होगी l