31 December 2019

WISDOM ------- समयानुसार कार्य करना बुद्धिमानी है

   हमारे  पुराणों  की  कथाएं  हमें   नीति   की  शिक्षा  देती  हैं ,  जीवन  जीना  सिखाती  हैं  l   एक  कथा  है -----  समुद्र  मंथन  होना  था  ,  इस  मंथन  से  अमृत  निकाल   कर  पीने  से  देवता  अमर  हो  जाते   लेकिन    यह  कार्य  अकेले  देवताओं  के  वश  का  नहीं  था   l  सब  देवता  भगवान   विष्णु  के  पास  गए   l   तब  विष्णु  भगवान   ने  देवताओं  को  समझाते   हुए  कहा --- देवताओं  !  कोई  भी  बड़ा  कार्य  करना  हो  तो   सबसे  चाहे  वे  शत्रु  ही  क्यों  न  हों , सबसे  मेल - मिलाप  कर  लेना  चाहिए  l  समाज  की  सर्वांगीण  उन्नति  तथा  सुख - शांति  ही  मुख्य  लक्ष्य  है   l  संकट  काल  को  मैत्री पूर्ण  भाव  से  व्यतीत  करना  चाहिए  
   देवताओं  ने  असुरों  के  राजा  बलि   से  मंत्रणा  की  ,   दोनों  में   समझौता  हुआ l     मंदराचल  पर्वत  की   रई   और  वासुकि  नाग  की  नेती  ( रस्सी के रूप में )   समुद्र मंथन  को  उद्दत  हुए  l  बिना  आधार  के  पर्वत  समुद्र  में  डूबने  लगा  तब  स्वयं  भगवान  ने  कच्छप  रूप  में  उसे  अपनी  पीठ  पर  धारण  किया  l
  देवता  लोग  पूँछ   की  तरफ  रहे  और  असुर  वासुकि  नाग  के  मुंह  की  और  थे  l   इस  प्रकार  सबके  मेल - जोल   से  ,  सबके  सहयोग  से  समुद्र  मंथन  होने  लगा  l   सबसे  पहले उग्र  विष  निकला   ,  उसकी  ज्वाला  से  सब  जलने  लगे   तब  देवता  और  दैत्यों  ने  शिवजी  से  प्रार्थना  की   कि   वे  इस  विष  का  पान  करें   l वे  भोले बाबा  हैं  उन्होंने   हलाहल  विष  को  अपने  कंठ  में  धारण  किया  और  नीलकंठ  कहलाए  l
  इसके  बाद  कामधेनु  निकली  जिसे  देवताओं  ने  लिया ,  उच्चै :श्रवा  घोड़ा   दैत्यराज  बलि  को  दिया  गया ,  ऐरावत  हाथी   इंद्र  ने  लिया ,   कौस्तुभ मणि  भगवान  ने ग्रहण की  l  समुद्र मंथन  में  रम्भा  अप्सरा  निकली  जो  देवलोक  चली  गई  l  फिर  लक्ष्मी जी  प्रकट  हुईं  , उन्होंने  विष्णु  भगवान   को  वरण   किया  l  चन्द्रमा , पारिजात  वृक्ष  तथा  शंख  उत्पन्न  हुआ  l   सबसे  अंत  में  धन्वन्तरि  वैद्द्य  अमृत का  घट   लिए  प्रकट  हुए  l   दैत्यों  ने  अमृत  घट   देखा  तो  उसे  झपट  कर  ले  गए  l  और  उसे  पीने  के  लिए  आपस  में  लड़ने  लगे  l
अमृत  दैत्यों  के  हाथ  में  देख  भगवान   ने  विचार  किया    असुर  तो  जन्म  से  ही  क्रूर  स्वाभाव  के  हैं ,  इन्हे  अमृत  पिलाना  सांप  को  दूध  पिलाना  है   l   दुष्टता  का  पोषण  खतरनाक  है ,  दुष्प्रवृतियां   कहीं  भी  हों   उन   को  कुचला   जाना  चाहिए  ,  यदि  ऐसा  नहीं  किया  गया  तो  हमारा  अस्तित्व  खतरे  में  पड़   जायेगा  l  सत्प्रवृत्तियाँ   अर्थात  देवत्व  ही  अमरता   का  अधिकारी  है  l   दुष्टता  का  प्रतिरोध  ईश्वरीय  कार्य  है  l 
विष्णु भगवान   ने  विश्व मोहिनी  रूप  धारण  किया  ,  दैत्य  उनके  सौंदर्य  में  मदहोश  हो  गए   और   मोहिनी   रूप    धारी   भगवान   ने  देवताओं  को  अमृत   पिला    दिया  l
देवता  और  दैत्य  दोनों  ने  ही   एक  ही  कर्म  व  एक  सा  परिश्रम  किया   लेकिन   देवताओं  में  सद्गुण  थे  ,  सद्प्रवृति  थी  इसलिए  ईश्वर  की  कृपा  उन्हें  अमृत   रूप  में  मिली  l