लालच ---- चाहे धन का हो , सत्ता का हो ,सम्पूर्ण समाज को जर्जर कर देता है क्योंकि इसकी पूर्ति के लिए व्यक्ति समाज का शोषण करता है l लालच का कोई अंत नहीं है , यदि ये दुर्गुण उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से लेकर एक सामान्य व्यक्ति में भी हो तब इस श्रंखला को तोड़ना बड़ा कठिन है और तब इसका परिणाम ऐसा घातक होता है कि चारों ओर हाहाकार मच जाता है l लालच का सबसे पहला आक्रमण स्वाभिमान पर होता है l मनुष्य अपनी असीमित कामनाओं और वासना की पूर्ति के लिए दूसरों की गुलामी को भी स्वीकार कर कर लेता है l