'चयन की दिशाधारा ही है , जो मनुष्य का गंतव्य -भवितव्य निर्धारित करती है । '
भस्मासुर और शतायुध दो भाई थे तप दोनों ने किया । शिवजी प्रसन्न हुए । भस्मासुर ने वर मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे , वह जलकर भस्म हो जाये । शतायुध ने मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे वह रोगमुक्त हो जाये । दोनों को इच्छित वर मिला । भस्मासुर का आतंक फैलता गया । अंत में शक्ति व शिव की लीला से वह स्वयं अपने ही सिर पर हाथ रखकर भस्म हो गया ।
शतायुध को चाहने वालो की संख्या बढ़ती गई । उसने वरदान का सार्थक नियोजन किया था । वह अक्षय कीर्ति अर्जित करने वाला और सही अर्थों में समर्थ समझा गया ।
तप और वरदान की उपयोगिता तभी है , जब सद्बुद्धि का साथ में समावेश हो ।
सद्बुद्धि ही संसार के समस्त कार्यों में प्रकाशित है । यही सबसे बड़ी सामर्थ्य है ।
भस्मासुर और शतायुध दो भाई थे तप दोनों ने किया । शिवजी प्रसन्न हुए । भस्मासुर ने वर मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे , वह जलकर भस्म हो जाये । शतायुध ने मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे वह रोगमुक्त हो जाये । दोनों को इच्छित वर मिला । भस्मासुर का आतंक फैलता गया । अंत में शक्ति व शिव की लीला से वह स्वयं अपने ही सिर पर हाथ रखकर भस्म हो गया ।
शतायुध को चाहने वालो की संख्या बढ़ती गई । उसने वरदान का सार्थक नियोजन किया था । वह अक्षय कीर्ति अर्जित करने वाला और सही अर्थों में समर्थ समझा गया ।
तप और वरदान की उपयोगिता तभी है , जब सद्बुद्धि का साथ में समावेश हो ।
सद्बुद्धि ही संसार के समस्त कार्यों में प्रकाशित है । यही सबसे बड़ी सामर्थ्य है ।