31 October 2022

WISDOM ----

   इस  संसार  में  हमेशा  से  ही    देवता  और  असुरों  का  अस्तित्व  रहा  है  l  जहाँ  भी  दुर्गुण  और  दुष्प्रवृत्तियां   हैं  वही  असुरता  है  l  असुरता  का  एक  लक्ष्ण  यह  भी  है  कि  वे  मायावी  होते  हैं  अपना  रूप  बदल  लेते  हैं   जैसे  रावण  ने  सीता -हरण  के  लिए  साधु  का  रूप  धारण  कर  लिया  , सूर्पनखा  जब  श्रीराम  से  मिलने  गई  तो  उसने  सुन्दर  नारी  का  रूप  रखा  l  भगवान  कृष्ण  के  बाल्यकाल  के  प्रसंग  में  देखें  तो  सभी  राक्षस  रूप  बदलकर  आए  थे  l  ऐसा  रूप  बदलने   की  शक्ति   अभी  समाप्त  नहीं  हुई   , उसका  तरीका  बदल  गया  l  आसुरी  प्रकृति  के  जो  भी  व्यक्ति  हैं   उनका  दोहरा  व्यक्तित्व  होता  है  l  समाज  के  सामने  वे  सज्जन  और  सभ्य  बने  रहते  हैं   लेकिन   उनका  भीतरी  जीवन  कैसा  पतित  होता  है  l  समाज सेवा  और  आदर्शवादिता   का  ऐसा  नाटक  वे  करते  हैं  कि  यदि  आप  उनकी  सच्चाई  जानकर  किसी  को  बताएं  तो  कोई  उस  बात  का  विश्वास  भी  न  करे  l  ऐसे  लोगों  की  वजह  से  ही   संसार  में  शोषण , अत्याचार   और  नकारात्मकता  है    l  तनाव रहित  जीवन  जीने  के  लिए  ऐसे  लोगों  की को  पहचान कर  उनसे  दूर  रहने  में  ही  भलाई  हैं   l  

WISDOM -----

  ' यदि  हम  कुछ  सीखना  चाहें  तो  प्रकृति  के  हर  कण  से  कुछ -न -कुछ  सीख  सकते  हैं  , बस !  सीखने  की  चाहत  होनी  चाहिए  l '  एक  कथा  है ---- पुराने  समय  की  बात  है  जब  कबूतर  झाड़ियों  में  अंडा  देते  थे  l  उनके  अंडे  दूसरे  प्राणी  आकर  खा  जाया  करते  थे  l   कबूतरों  ने  चिड़ियों  से  इसका  समाधान  पूछा   तो  चिड़ियों  के  राजा  ने  उन्हें  पेड़  की  डाल  पर  घोंसला  बनाने  की  सलाह  दी  l  कबूतरों  ने   वहां  घोंसला  बनाने  का  प्रयत्न  किया  , परन्तु  वह  ढंग  से  नहीं  बन  पाया   तो  उन्होंने  चिड़ियों  को  सहायता  हेतु  बुलाया  l  सभी   चिड़ियाँ  मिलकर   उन्हें  व्यवस्थित  घोंसला  बनाना  सिखा  रही  थीं  कि  कबूतर  बोले  --- " हाँ , हाँ ,  हमें  ऐसा  बनाना  आता  है , अब  हम  बना  लेंगे  l "  चिड़ियाँ  यह  सुनकर  चली  गईं  l  कबूतरों  ने  फिर  घोंसला  बनाने  की  कोशिश  की  , परन्तु  उनसे  घोंसला  नहीं  बना  l  अनुनय - विनय  करने  पर  चिड़ियाँ  दोबारा  आईं   और  उन्हें  तिनका  लगाना  सिखाने  लगीं  l  अभी  आधा  घोंसला  बना  था   कि   कबूतर  उछलकर  बोले  ---- " ऐसा  बनाना  तो  हम  भी  जानते  हैं  l "  यह  सुनकर  चिड़ियाँ  फिर  चली  गईं  l  कबूतरों  ने  फिर  घोंसला  बनाया  ,  पर  उनसे  नहीं  बना  l   कबूतरों  ने  फिर  से  चिड़ियों  से  प्रार्थना  की  ,  इस  बार  चिड़ियों  ने   उनको  यह  कहते  हुए  सिखाने  से  मना  कर  दिया  --- " जो  कुछ  न  जानते  हुए  भी   यह  मानते  हैं  कि  हम  सब  जानते  हैं  ,  उन  मूर्खों  को  कुछ  नहीं  सिखाया  जा  सकता  l "  तब  से  आज  तक  कबूतर  अव्यवस्थित  घोंसला  ही  बनाते  हैं  l  

30 October 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' मनुष्य  जीवन  के  विकार  , कष्ट  और  यंत्रणा  ईश्वर  प्रदत्त  नहीं  हैं  ,  ये  उसकी  निजी  भूलें  और  पाप  होते  हैं  l  परमात्मा  तो  उन्हें  दूर  करने  में  सहायता  करते  हैं  l  आत्मा  को  शुद्ध  और  सुघड़  बनाने  की  शक्ति  प्रदान  करते  हैं   l '    मनुष्य  के  शरीर  में  कोई  भयंकर  बीमारी  हो , कोई  कष्ट  हो   तो  कैसे  तप  की  शक्ति  से   उसे  दूर  किया  जा  सकता  है  ---- यही  समझाने  के  लिए  पुराण  की  एक  कथा  है -----  महर्षि  अत्रि  के  घर  पुत्री  का  जन्म  हुआ  , इसे  पाकर  वे  बहुत  प्रसन्न  थे  , उसका  नाम  रखा ---अपाला ---l  अपाला  जैसे -जैसे  बड़ी  होती  गई  , उसकी  त्वचा  पर  श्वेत  धब्बे  देखकर  महर्षि  की   प्रसन्नता    को  चिंता  में  बदल  दिया  l  महर्षि  ने  हर  संभव  औषधि - उपचार  किया , आयुर्वेद  के  पन्ने  पलट -पलट  कर  महर्षि  थक  गए   लेकिन   दोष  दूर  नहीं  हुआ  l  परिस्थितियों  से  निराश  महर्षि  ने  अपना  सारा  ध्यान  अपाला  को  ज्ञानवान  बनाने  में  लगा  दिया  l  वेद  , उपनिषद , आरण्यक , व्याकरण मीमांसा , दर्शन ग्रन्थ , संगीत   आदि  के  अध्ययन  से  अपाला  शीर्षस्थ  विद्वानों  की  श्रेणी  में  जा  पहुंची  l   अब  महर्षि  अत्रि  को  उसके  विवाह  की  चिंता  हुई  , त्वचा  के  इस  दोष  के  साथ  कौन  विवाह  करेगा  l  आखिर  उन्हें  ऐसा  आदर्श  पुरुष  मिल  गया   जो  उनका  शिष्य  भी  रह  चुका  था  --- कृशाश्व   के  साथ  अपाला  का  विवाह  वैदिक  रीति  से  संपन्न  हुआ  l  प्रारम्भिक  आकर्षण  में  तो  सब  गुण  दीखते  थे  ,  कुछ  समय  बाद  जब  ये  आकर्षण  कम  हुआ  तो   प्रेम  की  पावनता  उपेक्षा  और  तिरस्कार  में  परिवर्तित  हो  गई  l  इस  उपेक्षा  और  अपमान  से  अपाला  छटपटा  गई  ,  उसने  इस  संबंध  में  जब  कृशाश्व  से  पूछा  तो  उसने  कहा  --- प्रेम  के  स्थान  पर  सौन्दर्य  की  अभिलाषा  ने  उसके  आदर्श  को   तोड़  दिया  है  l  यह  सुनकर  उसे  पीड़ा  बहुत  हुई  लेकिन  उसका  स्वाभिमान  जाग  गया  l  उसे  यह  बोध  हुआ  कि  अपने  आत्मविश्वास , अपनी  शक्ति , अपने  पैरों  पर  खड़े  होने  का  भरोसा  ही   मनुष्य  की  सांसारिक  अपमान  से  सुरक्षा  कर  सकता  है  l  अपाला  पिता  के  घर  आ  गई  , उसने  अपना  कष्ट  किसी  से  कहा  नहीं  l   आचार्य  श्री  लिखते  हैं ----' मनुष्य  के  मन  में  बड़ी  शक्ति  है  , जिधर  लगा  दे   उधर  ही  समस्त  ज्ञान  के  कोष   एकत्रित   कर  देता  है  l  '    अपाला  ने  अपना   सारा  ध्यान  अपने  मन  और  आत्मा  के  परिष्कार  पर  केन्द्रित  कर  लिया  l   जप -तप , हवन -व्रत ,  पूजा -उपासना , योग , ध्यान , अनुशासन , नियम ,संयम    आदि  के  द्वारा  उसने  अपने   अंत:करण   को  पूर्ण  शुद्ध  कर  लिया  l  आत्मा  को  शुद्ध  और  सुघड़  बनाने  के  लिए  उसने   देवराज  इंद्र  की  उपासना  की , पिता  के  रूप  में  उनका  निरंतर  स्मरण  किया  l  शेष  संसार  से  उसका  संबंध  टूट  गया  , दिन -रात   एक  कर  दिए  उसने  इस  साधना  में  l  शरद  पूर्णिमा  की  रात  को  जब  सारा  संसार  निद्रा  में  था  ,  देवराज  इंद्र  उसके  सामने  प्रकट  हुए   l  अपने  आराध्य  को  सामने  देख  अपाला  की  आँखों  से  झर -झर  आंसू  बह  चले   l   भगवान  इंद्र  ने  वात्सल्य  भरे  ह्रदय   से   कहा --- " मैं  तुम्हारी  त्वचा  के  दोष  को  दूर  करता  हूँ  l  '   अपाला  ने  कहा --- देव  !  यह  शरीर  आज  नहीं  तो  कल  छूटेगा  l  यह  रुग्ण  रहे  या  रोग मुक्त   उससे  क्या  बनता -बिगड़ता  है  l  आप  मुझे  ऐसी  सामर्थ्य , विद्या  और  प्रकाश  दें   जिससे  मैं   इस  प्रसुप्त  भौतिक  आकर्षणों  में  डूबे  इस  संसार  को   कुछ  ज्ञान  दे  सकूँ , संसार  का  कल्याण  कर  सकूँ  l  ' तथास्तु ' कहकर  इंद्र  अद्रश्य  हो  गए  l  अब  अपाला  का  शरीर  पूर्ण  स्वस्थ  होकर  एक  अनोखी  कांति  , अनोखे  आकर्षण  से  चमकने  लगा  l  यह  बात  हवा  में  घुलकर   पूरे  आश्रम   और  राष्ट्रवासियों  के  अंत: करण  को  स्पर्श  कर  गई  l  कृशाश्व  ने  सुना  तो  वे  भी  दौड़े  आए   और  बड़ी  अनुनय -विनय  की  लेकिन  अब  अपाला  ने   साथ  जाने  से  इनकार  कर  दिया   और  अपना  शेष  जीवन  पिता  के  साथ  रहकर  धर्म  और   समाज  सेवा  में  बिताया   l    ऐसा   चमत्कार  हर  युग  में  संभव  है  l   योग   और  ध्यान साधना  , नियम , संयम , अनुशासन , निष्काम  कर्म   के  साथ  अपने  मन  और  विचारों  को  परिष्कृत  कर  के   , सन्मार्ग  पर  चलकर   इस  प्रदूषित  युग  में  भी   मनुष्य  स्वस्थ  रहकर  उस  अनोखी  कांति  को  पा  सकता  है  l  

29 October 2022

WISDOM ----

   लघु -कथा ---- ' खुदा  क्या  करता  है  l '------- एक  सुल्तान  के  पास  एक  काजी  पहुंचा  l  उसका  धर्म -आडम्बर  देखकर   सुल्तान  ने  सोचा  कि  उसकी  परीक्षा  ली  जाए  l  सुल्तान  ने  काजी  से  पूछा  --- 'खुदा  कहाँ  रहता  है  ?  और  क्या  करता  है  ?  ' और  कहा  --इन  प्रश्नों  का  संतोषजनक  उत्तर  देने  पर   तुम्हे  ऊँचा  पद  दिया  जाएगा  अन्यथा  दंड   l   काजी  ने  आठ  दिन  की  मोहलत  मांगी  ,  उसे  कोई  उत्तर  नहीं  सूझ  रहा  था  l  बहुत  परेशान  था  ,  चिंता  के  कारण  खाना -पीना  भी  छूट  गया  l   उसके  नौकर  की  हैसियत  तो  साधारण  थी  किन्तु  वह  वेदांत  का  पंडित  था  l  उसने  काजी  से  कहा  आप  मुझे  बताएं  , मैं  आपकी  मदद  करूँगा  l  काजी  ने  उसे  सुल्तान  की  कही  सब  बात  बताई  तब  नौकर  ने  कहा  --- 'आप  मुझे  सुल्तान  के  पास  भेज  दें , मैं  सब  संभाल  लूँगा   और  न  संभाल  सका  तो  दंड  मुझे  ही  मिलेगा  , आप  बच  जायेंगे  l  इसी  बीच  सुल्तान  के  सिपाही  आ  गए  तो  काजी  ने  बीमारी  का  बहाना  कर  के  नौकर  को  भेज  दिया  l  वह  निडर  होकर  सुल्तान  के  पास  पहुंचा  और  बोला  --- फरमाइए  जहाँपनाह  , क्या  पूछना  चाहते  हैं  ?  सुल्तान  ने  कहा --- 'क्या  तुम  उन  सवालों  के  जवाब  दे  सकते  हो  , जो  तुम्हारे  मालिक  से  पूछे  गए  हैं  ? '  नौकर  ने  कहा --- "जरुर  दे  सकता  हूँ  , लेकिन  आप  एक  सच्चे  मुसलमान  की  तरह  मुझे   बाइज्जत  ऊँची  जगह  बख्शें   और  खुद  नीची  जगह  बैठें   क्योंकि  मजहब  के  मुताबिक   जो  पूछता  है  , वह  शागिर्द  होता  है   और  जो  बताता  है  वह  उस्ताद  होता  है  l '  सुल्तान  ने  उसे  बेशकीमती  पोषक  पहनवाकर   अपना  तखत  पेश  किया  और  स्वयं  सीढ़ियों  पर  बैठ  गया  l  अब  सुल्तान  ने  पूछा --- ' खुदा  कहाँ  रहता  है  ?  नौकर  ने  दूध  मंगवाया  और  सुल्तान  से  पूछा  -- क्या  इस  दूध  में  मक्खन  है  ?  सुल्तान  ने  हामी  भरी  l  फिर  उसने  पूछा --- यह  मक्खन  कहाँ  है   ?  इस  प्रश्न  का  सुल्तान  कोई  जवाब  नहीं  दे  सका  , तब  नौकर  ने  कहा ---- ' जिस  प्रकार  दूध  में  मक्खन  है  पर  वह  दीखता  नहीं  है  , उसे  पाने  के  लिए  दूध  को  मथना  पड़ता  है  ,  इसी  तरह  जर्रे -जर्रे  में  मौजूद  है  , उसे  पाने  के  लिए  साधना  करनी  पड़ती  है  , अपने  विचारों  को , ह्रदय  को  परिष्कृत  करना  पड़ता  है  l  " इस  उत्तर  से  सुल्तान  संतुष्ट  हुआ   और  उसे  बहुत  आनंद  हुआ  l  अब   उसने  दूसरा  प्रश्न  पूछा  ---" खुदा  क्या  करता  है  l "  अब  नौकर  ने  काजी  को  बुलाया   और   और  सुल्तान  को  काजी  के  स्थान  पर  बैठने  को  कहा  और  काजी  को  सीढ़ियों  पर  बैठने  को  कहा   l  नौकर  बोला  अब  ध्यान  से  सुनो --- " खुदा  भी  यही  करता  है  l  वह   रंक    को  राजा , राजा  को  काजी   और  काजी  को  रंक  बना  सकता  है  l  वह  लगातार  परिवर्तन   करता  रहता  है  l  किसी  को  ऊपर  उठाता  है ,  किसी  को  नीचे  गिराता  है  ,  किसी  को  बनाता  है , किसी  को  मिटाता  है  l  यह  काल  चक्र  है   और  वह  इस  चक्र  का  नियंत्रण  करता  है  l "

28 October 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " अशांति  से  आज  सभी  परेशान  हैं  l  एक  मनुष्य  के  पास  पर्याप्त  साधन , संपत्ति , जीवन  निर्वाह  की  वस्तुएं  हैं  , फिर  भी  वह  अशांत , परेशान  है  l  उच्च  शिक्षा  संपन्न , अच्छे  पद  पर  प्रतिष्ठित  होकर  भी   भूला -भटका  सा  दिखाई  देता  है  l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- अभिमान , अहंकार   चाहे  वह  किसी  भी  गुण ,  रूप  व  वस्तु  का  क्यों  न  हो  , मनुष्य  को  वास्तविक  सुख  और   आत्मिक  आनंद  से  दूर  रखता  है  l '   पुराण  की  एक  कथा  है -----  एक  बार  देवता  भी  भोग - विलास  में  डूब  गए  जिससे  उनकी  सामर्थ्य  नष्ट  हो  गई   l  उस  समय  असुरों  ने  उन  पर  आक्रमण  किया  ,तब  प्रजापति  ब्रह्मा  ने     पृथ्वी  के  प्रतापी  और  बलशाली  महाराज  मुचकुंद   को  सेनापति  बनाया  l  ब्रह्माजी  का  कहना  था  ---संयमी  और  सदाचारी  व्यक्ति  मनुष्य  तो  क्या   देव -दानव  सभी  को  परस्त  कर  सकता  है  l  अब  देवताओं  की  सेना  का  सञ्चालन  महाराज  मुचकुंद  कर  रहे  थे  l  एक  माह  तक  घनघोर  युद्ध  हुआ  l  असुर  बुरी  तरह  पराजित  हुए  ,  उन्होंने  बीसियों  सेनापति  बदल  डाले   लेकिन  मुचकुंद  की  वीरता  के  आगे  वे  सब  परस्त  हो  गए  l   धरती  और  देवलोक  सब  तरफ  मुचकुंद  की  जयकार  हो  रही  थी   l  अपनी  प्रशंसा  सुनते -सुनते  मुचकुंद  के  मन  में  अहंकार  जाग  गया   और  अब  वे  अपनी  शक्ति  भोग -विलास  में   नष्ट  करने  लगे  l  प्रजापति  ब्रह्मा  ने   इस  बात  को  देख  लिया  और  देवराज  इंद्र  को  बुलाकर  कहा  कि   मनुष्य  में  अहंकार  आ  जाने  से  उसका  पतन  होने  लगता  है   इसलिए  तुम  अब  शिवजी  के  पुत्र  स्वामी  कार्तिकेय  को  सैन्य  संचालन  के  लिए  राजी  कर  लो  l  प्रजापति  का  कहना  सही  था  ,  विलासिता  के  कारण   मुचकुंद  की  शक्ति  कम  हो  गई  और  असुरों  ने  उन्हें   बंदी  बनाकर  धरती  पर  पटक  दिया  l  ब्रह्माजी  ने  उन्हें  समझाया  कि ---- संयमी  और  पराक्रमी  होने  के  साथ   निरहंकारी  भी  होना  चाहिए  l  संयम  से  ही  स्वर्ग  जीते  जाते  हैं  l  

27 October 2022

WISDOM ----

   कबीरदास जी  का  दोहा  है ---- धीरे -धीरे  रे  मना ,  धीरे  सब  कुछ  होय  l  माली  सींचै  सौ  घड़ा , ऋतु  आए  फल  होय   l    अर्थात  माली  किसी  पौधे  को  सौ  घड़े  पानी  से  भी  सींचे  ,  पर  उसमें  फल  तो  समय  आने  पर  ही  होंगे  l    आचार्य श्री  लिखते  हैं  --"- सत्कर्मों  का  बीज  बोते  ही  हमें  फल प्राप्ति  नहीं  हो  सकती  ,  समय  आने  पर  ही  हमें  सत्कर्मों  का  फल  मिलता  है  l  इसलिए  हमें  कुशल  किसान  की  तरह   सत्कर्मों  की  खेती  निरंतर  करनी  चाहिए  l  " एक  कथा  है -----  देव  नामक  एक   लड़का  बहुत  गरीब  था  ,  जीविका  और  स्कूल  की  फीस  भरने  के  लिए  वह  फेरी  लगाता  था  l  एक  दिन  वह  दिन  भर  घूमा  लेकिन  उसका  कोई  सामान  नहीं  बिका  l  वह  बहुत  थक  गया   और  उसे  बहुत  भूख  भी  लागी  l  बहुत  व्याकुल  था  वह  ,  कुछ  खाना  मांगने  के  लिए  उसने  एक  घर  का  दरवाजा  खटखटाया  l  एक  लड़की  बाहर  आई   l  संकोचवश  उसने  खाना  तो  नहीं  माँगा  , एक  गिलास  पानी  माँगा  l   उसे  देखकर  लड़की  समझ  गई  कि  वह  बहुत  भूखा  है , वह  एक  बड़ा  गिलास  दूध  भरकर  ले  आई  l  लड़के  ने  दूध  पी  लिया  और  इसके  पैसे  के  लिए लिए  पूछा  l  लड़की  ने  मना  कर  दिया  कि  हम  इस  तरह  पैसे  नहीं  लेते  l  लड़का  धन्यवाद  देकर  चला  गया  l  वर्षों  बीत  गए  l  वह  लड़की  गंभीर  रूप  से  बीमार  पड़ी  , स्थानीय  चिकित्सक  सफल  नहीं  हुए  तो  उसे  शहर  के  बड़े  अस्पताल  भेज  दिया  l  वहां  विशेषज्ञ  चिकित्सक  को  बुलाया  गया  ,  उन्होंने  उस  लड़की  को  देखा  , रोग  की  जांच  की  , उनकी  मेहनत  रंग  लाई  और  कुछ  ही  दिनों  में  वह  पूर्ण  स्वस्थ  हो  गई  l  उसने  किसी  सहायक  से  कहकर  अस्पताल   के  कार्यालय  से  बिल  बिल  मंगवाया  l  बिल  को  देखकर  लड़की  को  लगा  कि  वह  बीमारी  से  तो  बच  गई  लेकिन  अब  बिल  कैसे  भरेगी  ?   तभी  उसकी  द्रष्टि  बिल  के  कोने  पर  लिखे  एक  सन्देश  पर  गई  ,  वहां  पर  लिखा  था  ---- ' आपको  भुगतान  करने  की  कोई  आवश्यकता  नहीं  l  एक  गिलास  दूध  द्वारा  इस  बिल  का  भुगतान  वर्षों  पहले  किया  जा  चुका  है  l  '  उसे  याद  आया  कि  वर्षों  पहले  उसने  जिस  बालक  को  एक  गिलास  दूध  देकर  उसकी  सहायता  की  थी  ,  उसी  ने  उसे  संकट  से  बचाया  है  l   हमें  सत्कर्मों  का  सुफल  अवश्य  मिलता  है  चाहे  वह  संसार  में  कहीं  से  भी  मिले  l  

WISDOM ----

   एक  बार  एक  अपराधी  पकड़ा  गया  , उसे  फाँसी  की  सजा  मिली  l  फाँसी  की  कोठरी  में  जाने  से  पूर्व  , वह  राजा  को  बुरी -बुरी  गाली  और  दुर्वचन  कहने  लगा  l  वह  विदेशी  था  , उसकी  भाषा  को   सभा  के  एक -दो  सरदार  ही  जानते  थे  l   राजा  ने  विदेशी  भाषा  जानने  वाले  एक  सरदार  से  पूछा  --- " यह  अपराधी  क्या  कह  रहा  है  ? "  उसने  उत्तर  दिया  --- " आपकी  प्रशंसा  करते  हुए  ,  अपनी  दीनता  बताता  हुआ  ,  यह  दया  की  प्रार्थना  कर  रहा  है  l "  इतने  में  दूसरा  सरदार  उठ  खड़ा  हुआ  ,  उसने  कहा --- " नहीं  सरकार  !  यह  झूठ  बोलता  है  l  अपराधी  ने  आपको  गाली  दी  है  और  दुर्वचन  बोले  हैं  l  राजा  तो  विदेशी  भाषा  जानता  न  था   और  कोई  तीसरा  आदमी  फैसला  करने  वाला  नहीं  था  l  इसलिए  सत्य  का  कैसे  पता  चले  ?  राजा  ने  स्वयं  विचार  किया   और  पहले  सरदार  को  ही  सत्यवादी  कहा   तथा  अपराधी  की  सजा  कम  कर  दी   l  दूसरे  सरदार  से  राजा  ने  कहा --- "  चाहे  तुम्हारी  बात  सत्य  अवश्य  ही  हो  ,  पर  उसका  परिणाम  दूसरों  को  कष्ट  मिलना   तथा  हमारा  क्रोध  बढ़ाना  है  ,  इसलिए  वह  सत्य  होते  हुए  भी  असत्य  जैसी  है  l     और  इस  पहले  सरदार  ने   चाहे  असत्य  ही  कहा  हो  ,  पर  उसके  फलस्वरूप   एक  व्यक्ति  के  जीवन  की  रक्षा  होती  है   तथा  हमारे  ह्रदय  में  दया  उपजती  है   , इसलिए  वह  सत्य  के  ही  समान  है  l "  

26 October 2022

WISDOM ---

   मानव  जीवन  अनमोल  है , ईश्वर  ने  सबको  कोई  न  कोई  विभूति  अवश्य  दी  है  l  किसी    के  पास  धन -वैभव  है , किसी  के  पास  अच्छा  स्वास्थ्य , किसी  के  पास  बुद्धि , विद्या ----- l  जो  कुछ  मनुष्य  को  मिला  है  , वह  उसका  महत्त्व  नहीं  समझता   और  दुर्बुद्धि  के  कारण  उसका  दुरूपयोग  करता  है  ----- एक  बार  पांच  असमर्थ  , अपंग  लोग  एकत्र  हुए  और  कहने  लगे   कि  यदि  भगवान  ने  हमें   समर्थ  बनाया  होता   तो  हम  परमार्थ  के  कार्य  करते  , पर  क्या  करें  !  अँधा  बोला ---- मेरी  आँखें  होतीं  तो  जहाँ  कहीं  बिगाड़  दिखाई  देता  ,  उसे  सुधारने  में  लग  जाता  l  लंगड़े  ने  कहा --- मेरे  पैर  होते  तो  दौड़ -दौड़  कर  भलाई  के  कार्य  करता  l  निर्बल  ने  कहा --- मेरे  पास  ताकत  होती   तो  अत्याचारियों  को  मजा  चखा  देता  l  निर्धन  ने  कहा --- मेरे  पास  धन  होता  तो  दीन -दुखियों  के  लिए  लुटा  देता  l  मूर्ख  ने  कहा --- विद्वान  होता   तो  संसार  में  ज्ञान   की  गंगा  बहा  देता   चारों  ओर  विद्या  ही  विद्या  दिखाई  देती  l    वरुण  देव  ने  उनकी  बातें  सुनी   और  सच्चाई  परखने  के  लिए   उन्होंने  सात  दिन  के  लिए   उन्हें  सशर्त  आशीर्वाद  दिया  l  जैसे  ही  रूप  बदला  ,  पाँचों  के  विचार  भी  बदल  गए   l  अंधे  ने  कामुकता  की  वृत्ति  अपना  ली  l  लंगड़ा  घूमने  निकल  पड़ा  l  धनी  ठाठ -बाट   एकत्र  करने  में  लग  गया  l  बलवान  दूसरों  को  सताने  लगा   l  विद्वान्  ने  सबको  उल्लू  बनाना  शुरू  कर  दिया  l  वरुण  देव  लौटे   तो  देखा  वे  स्वार्थ  सिद्धि  में  लगे  थे  l  देवता  नाराज  हुए  और   वरदान  वापस  ले  लिए  l   उन्हें  जो  अनमोल  वक्त  मिला  था  वह  बीत  गया ,  अब  पछताने  से  क्या   होता  है  ?

25 October 2022

WISDOM -----

     चीन  का  एक  अमीर  च्यांग  भेड़  पालने  का  धंधा  करता  था  l  एक  बार  उसने  दो  लड़के   नौकर  रखे   और  चराने  के  लिए  भेड़ें  बाँट  दीं  l   देखने  पर  पता  चला  कि  भेड़ें   दुबली  भी  हो  गईं  और  कुछ  मर  भी  गईं  l  अमीर  ने  चरवाहों  को  जिम्मेदार  ठहराया  और  जाँच  की  कि   किस  कारण  इतनी  हानि  हुई  l  पता  लगा  कि  दोनों  अपने -अपने  व्यसनों  में  लगे  रहे  l  एक  को  जुआ  खेलने  की  आदत  थी  ,  जब  भी  दाँव  लगता  जुए  में  जा  बैठता  l  भेड़ें  कहीं -से -कहीं  जा  पहुँचती  और  भूखी -प्यासी  कष्ट  पातीं  l  यही  बात  दूसरे  की  थी  ,  वह  पूजा -पाठ  का  व्यसनी  था  l  वह  भेड़ों  पर  ध्यान  न  देता   और  अपनी  रूचि  के  काम  में  लगा  रहता  l  दोनों  पकड़े  गए  और  न्याय  के  लिए   कन्फ्यूशियस  के  सामने  प्रस्तुत  किए  गए   l  दोनों  के  कारणों  में  भेद  था  ,  पर  कर्तव्यपालन  की  उपेक्षा  करने  के  लिए  दोनों  समान  रूप  से  दोषी  थे  l  न्यायधीश  ने  दोनों  को  समान  रूप  से  दंड  दिया   और  कहा --- " कर्तव्य  भाव  के  बिना  जो  किया  जाता  है   वह  व्यसन  है  ,  व्यसन  में  जुआ  खेला  या  पूजा  की  l  कर्तव्य  की  तो  उपेक्षा  की  l  उसी  का  दंड  दिया  गया  है  l  "  'कर्तव्य  ही  धर्म  है  l '

23 October 2022

WISDOM

     हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  महाभारत  में   प्रसंग  है --- चक्रव्यूह  l  उस  युग  में  वीरता  का  एक  मापदंड  यह  था  कि  युद्ध  के  लिए  कोई  ललकारे , चुनौती  दे  तो  उसे  स्वीकार करना  अनिवार्य  था  l  उस  दिन  के  युद्ध  में  अर्जुन  को  एक  अन्य  राजा  ने  ललकारा   और   जहाँ  द्रोणाचार्य  ने  चक्रव्यूह  रचा  था  , उस  स्थान  से  काफी  दूर  युद्ध  के  लिए  ले  गए  l  अब  शेष  चारों  पांडवों  को  चक्रव्यूह  बेधना  नहीं  आता  था  तब  अर्जुन  के  पुत्र  अभिमन्यु  ने  कहा  ,  उसने  यह  विद्या  माँ  के  गर्भ  में  सीखी  है  , उसे  छह  दरवाजे  पार  करना  आता  है   ,  फिर  आप  सभी  पांडव  और  सेना  साथ  होगी  तो   हम  आज  के  युद्ध  में  विजय  श्री  प्राप्त  होगी  l  इसकी  पूरी  कथा  है  कि   सात  महारथियों  ने  मिलकर   सत्रह  वर्षीय  अभिमन्यु  का  वध  कर  दिया  l  यह  प्रसंग  हमें  बहुत  महत्वपूर्ण  शिक्षा  देता  है  --- उस  युग  में  जब  भगवान  श्रीकृष्ण  स्वयं  इस  धरती  पर  थे  और  अभिमन्यु   उनकी  बहन  सुभद्रा और  अर्जुन  का  पुत्र  था  ,  जब  उसे  सबने  मिलकर  युद्ध  के  नियमों  के  विपरीत  छल  से  मारा  तो  फिर  इस  कलियुग  की  बात  क्या  कहें  ?  इस  युग  में   जब  मानसिक  विकृतियाँ  अपने  चरम  पर  हैं  तो  यह  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देता  है  कि  ---दुश्मन  के   और  कुटिल   व्यक्ति  के   खेमे  में  जाने  का  जोखिम  न  लो  l  यदि  किसी  से  दुश्मनी  रहने  के  बाद  सुलह  हो  गई  हो  , मित्रता  हो  गई  हो  तब  भी  उसका  विश्वास  न  करो  क्योंकि  बिच्छू  अपना  स्वाभाव  नहीं  बदलता  है  l  इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  प्रसंग  है   और  अनेकों  घटनाएँ  हम  वर्तमान  में  भी  देखते -सुनते  हैं  कि  मित्रता  की  आड़  में   छल -कपट , धोखा मिलता  है  ,जीवन  को  भी  खतरा  रहता  है  l  इतिहास  की  एक  घटना  है ---- ओरंगजेब  ने  जोधपुर  के  महाराज  जसवंतसिंह  से  मित्रता  की   और  उनके  पराक्रम  का  जी  भर  कर  लाभ  उठाया  l  वह  मन  ही  मन  उनकी  वीरता  से  डरता  था  और  जोधपुर  पर  कब्ज़ा  करना  चाहता  था  l  औरंगजेब  ने  महाराज  जसवंतसिंह  को  निरंतर  युद्धों  में  उलझाए  रखा  जिससे  उनका  शरीर  जर्जर  हो  गया  l  काबुल  के  पठानों  के  साथ  युद्ध  में  उनके  दो  पुत्र  मारे  गए  l  औरंगजेब  बहुत  कुटिल  और  लोभी  था  उसने  उनके  अंतिम  पुत्र  पृथ्वीसिंह  को  अजमेर  का  विद्रोह  दबाने  भेजा  , उसने  सोचा  था  की  ये  अनुभवहीन  है , मारा  जायेगा  लेकिन  पृथ्वी सिंह  विजयी  होकर  लौटा  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- दुष्ट  की  भलाई  और  अनाचारी  का  संग  करने  वाले  का  कल्याण  नहीं  होता  l '  औरंगजेब  ने  विजय  के  उपलक्ष्य  में  खिल्लत  देने  के  बहाने   पृथ्वी सिंह  को  बुलाया   और  विष बुझे  कपड़े  पहनाकर   आदर पूर्वक  विदा  किया   l  कुमार  पृथ्वीसिंह  दरबार  से  अपने  निवास  स्थान  तक  भी  न  जा  सके  , रास्ते  में  ही  कपड़ों  में  लगे  घातक  विष  ने  अपना  काम  कर  दिया   और  जसवंत सिंह  का  दीप्तिमान  दीपक  अस्त  हो  गया  l    ऐसे  इतिहास  में  अनेकों  प्रसंग  हैं   जहाँ  हमने  जिसका  विश्वास  किया  , उन्ही  ने  धोखा  दिया , छल  किया  l   ऐसे  प्रसंग  ही  हमें  सिखाते  हैं  कि  कलियुग  में  जब  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है   तो  अपने  सामान्य  जीवन  में  भी  ऐसे  जोखिम  न  लें  जहाँ  अपने  सम्मान  और  जीवन  को  खतरा  हो  l  किसी  विद्वान्  ने  कहा  भी  है ---प्रेम  सब से  करो  , पर  विश्वास  किसी  का  न  करो  l  

22 October 2022

WISDOM ----

   कहते  हैं  महामानवों  के  लक्षण  उनके  बाल्यकाल  से  ही  दिखाई  देने  लगते  हैं  l  नरेंद्र ( स्वामी  विवेकानंद )  बचपन  से  ही   साधु -संन्यासियों  के  प्रति   सहज  आकर्षित  हो  जाते  थे  l  कोई  भी  घर  के  सामने  से  निकलता  ,  जो  उनके  पास  होता  वह  उसे  दे  देते  l  एक  बार  एक  बाबा  आए  l  नरेंद्र  धोती  पहने  थे  ,  माँ  ने  यह  नया  वस्त्र  उसी  दिन  उन्हें  पहनाया  था  ,  उन्होंने  वही  उतार  कर  बाबा  को  दे  दिया  l  उस  बाबा  ने  उसे  पगड़ी  की  तरह  माथे  पर  लपेट  लिया   और  बालक  को  आशीर्वाद  देकर  विदा  ली   l  ऐसा  अक्सर  होता  था   इसलिए  दो  नौकरानियाँ  नरेंद्र  के  साथ  हमेशा  रहती  थीं  l  उन्हें  जिम्मेदारी  दी  गई  थी  कि   कोई  आता   दीखे   तो  नरेंद्र  को  ऊपर  कमरे  में  ले  जाएँ  l  नरेंद्र  फिर  भी  नहीं  मानते  ,  अवसर  पाते  ही  खिड़की  से  विविध  वस्तुएं   राह  चलते  साधुओं  या  भिखारियों  के  हाथ  में  डाल  देते   और  यही  सोचकर  प्रसन्न  होते   कि  आज  परिवार  के  लोगों  को  उन्होंने  परस्त  कर  दिया  l   मोहल्ले  का  ही  एक  हरि  नाम  का  बालक  उनका  हमउम्र  था  l  उसे  लेकर  मेले  से  लाइ  सीताराम  की  एक  मूर्ति  के  सामने  बैठकर  ध्यानस्थ  हो  जाते   l  ध्यान  में  वे  उस  समय  कम  आयु  में  भी  गहरी  समाधि  में  चले  जाते  थे  l  

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  का  एक -एक  क्षण  बहुमूल्य  है  , पर  लोग  उसे  वासना  और  तृष्णाओं  के  बदले  कौड़ी  मोल  गँवाते  हैं  l  बहुत  गँवाकर  भी   अंत  में  यदि  कोई कोई  मनुष्य  संभल  जाता  है  ,  तो  वह  भी  बुद्धिमान  ही  माना  जाता  है  l   "  एक  कथा  है ----- एक  राजा  वन  भ्रमण  को  गया  l  रास्ता  भूल  जाने  पर   भूख -प्यास  से  पीड़ित  वह   एक  वनवासी  की  झोंपड़ी  पर  पहुंचा  l   वनवासी  के  पास  जो  भी  रुखा - सूखा   भोजन  था  और  कंदमूल , फल , ठंडा  पानी  आदि  से  उन्कुंका  स्वागत  किया  l  राजा  बहुत  तृप्त  हो  गया  l  चलते  समय  उसने  कहा  -- हम  इस  राज्य  के  शासक  हैं  , तुमने  समय  पर  जो  हमारा  आतिथ्य  किया  उससे  हम  बहत  प्रसन्न  हैं   और  यह  एक  बाग  तुम्हे  देते  हैं  ,  तुम्हारा  शेष  जीवन  आनंद  से  बीतेगा  l  वह  वनवासी  जंगल  से  लकड़ी  काटकर  उनका   कोयला  बनाकर  बेचता  था  l  अब  उसे  बाग  मिल  गया  तो  वह  उसके  पेड़ों  की  लकड़ी  काटकर  , सुखाकर  कोयला  बनाकर  बेचने  लगा  l  उसका  जीवन यापन  होने  लगा  l  धीरे -धीरे  सब  वृक्ष  समाप्त  हो  गए  , केवल  एक  वृक्ष  बचा  l   कई  दिनों  तक  वर्षा  होने  के  कारण  वह  कोयला  नहीं  बना  सका   l  उसने  उस  वृक्ष  की  लकड़ी  ही  बेचने  का  निश्चय  किया  l  लकड़ी  का  गट्ठा  लेकर  जब  वह  बाजार  में  पहुंचा   तो  उन  लकड़ियों  की  सुगंध  से  प्रभावित  होकर  लोगों  ने   उसका  भारी  मूल्य  चुकाया  l  आश्चर्य चकित  वनवासी  ने  इसका  कारण  पूछा   तो  लोगों  ने  कहा  --यह  चन्दन  की  लकड़ी  है  , बहुत  मूल्यवान  है  l  यदि  तुम्हारे  पास  ऐसी  ही  और  लकड़ी  हो  तो  उसका  प्रचुर  मूल्य  प्राप्त  कर  सकते  हो  l  वनवासी  अपनी  नासमझी  पर  पश्चाताप  करने  लगा   कि  उसने  इतना  बहुमूल्य  चन्दन  वन   कौड़ी  मोल  कोयला  बनाकर  बेच  दिया  l  पछताते  हुए  नासमझ  को   सांत्वना  देते  हुए   एक  विचारशील  व्यक्ति  ने  कहा  --- यह  सारी  दुनिया  तुम्हारी  ही  तरह  नासमझ  है  ,  इस  अनमोल  मानव जीवन  को   व्यर्थ  गँवा  देती  है  l  तुम्हारे  पास  जो  एक  वृक्ष  बचा  है  ,  अब  उसी  का  सदुपयोग  कर  लो  l  जब  जागो , तब  सवेरा  l  

21 October 2022

WISDOM -----

 गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  लिखा  है ---- मोहि  कपट , छल , छिद्र  न  भावा  l  निर्मल  मन  जन  सो  मोहि  पावा  l   जिनका  भी  मन  निर्मल  है , सरलता  है  उन्हें  कभी -न -कभी  और  किसी -न -किसी  रूप  में  ईश्वर  की  अनुभूति  अवश्य  हुई  है  l  जिनके  मन  में  कपट  है  , ईश्वर  उनसे  कोसों  दूर  है  l  एक  कथा  है -----  एक  गरीब  विधवा  स्त्री  थी  l  उसका  एक  बेटा  था  रामू  l   उसने  उसे  स्कूल  भेजा  l  उसके  घर  से  विद्यालय  बहुत  दूर  था  और  रास्ते  में  जंगल  पड़ता  था  l  रामू  बहुत  छोटा  था  इसलिए  उसे  जंगल  में  डर  लगता  था  l  वह  अपनी  माँ  से  कहता --- " माँ , मुझे  जंगल  में  डर  लगता  है  , तुम  मुझे  पहुँचाने  चलो  l "  माँ  ने  कहा --- " बेटा , मैं  घरों  में  काम  करने  जाती  हूँ  , तेरे  साथ  नहीं  जा  सकती  l  हाँ , जंगल  में  तेरा  भाई  गोपाल  रहता  है , वहीँ  गाय  चराता  है  ,  तू  उसे  बुला  लेना  l "   अब  जंगल  में  पहुँचते  ही   रामू  ने  पुकारा  --- 'गोपाल  भैया  जल्दी  आओ  , मुझे  डर  लग  रहा  है  l ' कृष्ण  भगवान  ग्वाले  के  रूप  में  आ  गए   और  रोज  उसे  विद्यालय  पहुंचा  देते  l  अब  रामू  बहुत  खुश  था  , माँ  से  कहता  -- 'माँ , गोपाल  भैया  रोज  आ  जाते  हैं , अब  मुझे  डर  नहीं  लगता  l '  माँ  को  कुछ  समझ  नहीं  आया  , वह  संतुष्ट  हो  गई  कि  उसका  बेटा  अब  डरता  नहीं  है , रोज  स्कूल  जाता  है  l   एक  दिन  स्कूल  में  उत्सव  था  , गुरु जी  ने  सब  बच्चों  से  कहा --- " कल  यहाँ  उत्सव  है , सब  बच्चे  कुछ  न  कुछ  लेकर  आना  l  "   रामू  घर  आया  और  अपनी  माँ  से  कहने  लगा --- माँ , कल  स्कूल  ले  जाने  के  लिए  तुम  भी  मुझे  कुछ  दो , गुरु जी  ने  कहा  है  l  सब  बच्चे  कुछ न  कुछ  लायेंगे  , इसलिए  मैं  खाली  हाथ   जाऊं  तो  अच्छा  नहीं  लगेगा  l  माँ , बेचारी  बहुत  गरीब  थी  , दो  वक्त  का  भोजन  तो  मुश्किल  था , उपहार  कहाँ  से  लाती  l  उसने  कहा --- "  बेटा , कल  गोपाल  भैया  से  कुछ  मांग  लेना , वो  किसी  को  मना  नहीं  करते  l "  जंगल  आने  पर  रामू  ने  पुकारा --- " गोपाल भैया  जल्दी  आओ  l " भगवान  कृष्ण  ग्वाले  के  वेश  में  आए , उनके  हाथ  में  छोटी  सी  मटकी  थी  l  उन्होंने  कहा -- ' मुझे  मालूम  था  कि  तुम्हारे  स्कूल  में  उत्सव  है   इसलिए  यह  दही  की  छोटी सी  मटकी  तुम  उपहार  में  ले  जाओ  l  "  रामू  बहुत  खुश  , बहुत  खुश  !  स्कूल  पहुंचा  ,  सब  बच्चे  बड़े -बड़े  उपहार  लाए  थे  , गुरु जी  ने  रामू  की  छोटी  सी  मटकी  को  देखा  तो  उपेक्षा  से  कहा --- 'जा  उस  कोने  में  रख  दे  l '  संयोगवश  खाना  खाते  समय  दही  समाप्त  हो  गया  l  गुरु जी  को  मटकी  की  याद  आई  l  मटकी  से  दही  निकला  तो  मटकी  खाली  नहीं  हुई  ,  जितने  भी  बरतन  वहां  थे  ,सब  भर  गए  लेकिन  मटकी  खाली  नहीं  हुई  l  इस  चमत्कार  से  सब  आश्चर्य चकित  थे  l  गुरूजी  ने  रामू  से  पूछा --- " यह  मटकी  कहाँ  से  लाए  हो  ?   "  रामू  ने  गर्व  से  कहा न--- " मेरे  गोपाल  भैया  ने  दी  है , मैं  डरता  हूँ   , इसलिए  वे  जंगल  में  मेरे  साथ  चलते  हैं  l  "  गुरु जी  ने  कहा --- " तू  मुझे  गोपाल  भैया  के  दर्शन  करा  दे  l  "  वे  रामू  के  साथ  चले  ,   रामू  ने  पुकारा  ,   गोपाल  भैया  आए   लेकिन  गुरु जी  को  वे  दिखाई  नहीं  दिए  l  रामू  कहता  रहा  --'देखिए , ये  हैं  मेरे  गोपाल  भैया  ,  लेकिन  गुरु जी  को   दर्शन  नहीं  हुए   l  रामू  के  पूछने  पर  भगवान  ने  कहा --- इनका  मन  तुम्हारे  जैसा  निर्मल  नहीं  है  l 

20 October 2022

WISDOM ----

 आज  की  सबसे  बड़ी  विडंबना  यह  है  कि  मनुष्य  के  पास  जो  कुछ  है  वह  उससे  खुश  नहीं  है , संतुष्ट  नहीं  है  l  इससे  भी  बड़ी  बात  ये  है  कि    जो  आसुरी   प्रवृत्ति   के  हैं   वे  तो   अपने  पड़ोसी,  रिश्ते -नाते  --- किसी  की  ख़ुशी  को  सहन  नहीं  कर  सकते   l   उनका   हर  संभव  प्रयास   यही  रहता  है  कि  कैसे  किसी  की  ख़ुशी  को  छीना  जाये  ,  उनको  दुखी  देखकर  ही   उनकी  आत्मा  को  संतुष्टि  मिलती  है  l  कलियुग  में  दुर्बुद्धि  के  कारण  ऐसे  लोगों  की  संख्या  अधिक  होने  के  कारण  ही   लोगों  के  जीवन  में  तनाव  है  , सुख -चैन  की  नींद  नहीं  आती  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' आज  मनुष्य  भौतिकवादी  बनकर  नास्तिक  बन  गया  है   l  अपने  लाभ  से  अधिक  उसे  इस  बात  की  चिंता  है  कि  पड़ोसी  की  हानि  कैसे  हो  ? '  एक  कथा  है  -------- एक  व्यक्ति  ने  भगवान  शिव  की  बहुत  पूजा -प्रार्थना  की  l   शिवजी  ने  प्रसन्न  होकर  दर्शन  देकर  कहा  ---- " मांग , क्या  मांगता  है  ? "  मन  की  गहराई  में  जिसकी  जैसी  सोच  होती  है ,  उसके  मुँह  से  वही  निकलता  है  l  उसने  कहा --- ' भगवान  ! पड़ोसी  हमसे  दूने  रहें  l '  भगवान  तो  भोलेनाथ  हैं , उनने  कहा  ---' तथास्तु  l '  और  अंतर्धान  हो  गए  l  वह  व्यक्ति  मन -ही -मन  खूब  खुश  हुआ  l  घर  पहुंचा  l  पूजा -पाठ  से , कर्मकांड  से  ईर्ष्या -द्वेष  गया  नहीं  , वह  बोला --- 'भगवान ! मेरा  एक  हाथ  टूट  जाए  l "  पड़ोसियों  के  दोनों  हाथ  टूट  गए  l   फिर  बोला --- " भगवान  !  मेरी  एक  आँख  फूट  जाए  l "  पड़ोसियों  की  दोनों  आँख  फूट  गई   l  फिर  भी  उसे  शांति  नहीं  मिली  l  कहने  लगा --- 'भगवान  !  मेरा  एक  पैर  टूट  जाए  l "  पड़ोसियों  के  दोनों  पैर  टूट  गए  l   स्वयं  काना  होकर  लंगड़ाते  हुए  पड़ोसियों  को  देखने  गया  ,  तब  कहीं  उसके  मन  को  तसल्ली  हुई  l     आज  मनुष्य  पर  नकारात्मकता  हावी  है , उसके  सोचने  का  ढंग  बदल  गया  इसलिए  स्वयं  भी  दुखी  है  तथा  औरों  को  भी  दुखी  करने  का  प्रयास  करता  है  l  

19 October 2022

WISDOM -----

 कर्म फल  प्रकृति  का  नियम  है  l  यह  नियम  सब  के  लिए  हैं  चाहे  वह  मनुष्य , हो  या  देवता , यक्ष  या  फिर  स्वयं  भगवान  ही  क्यों  न  हों   l  महाभारत  की  कथा   में  है   कि  युद्ध  में  अर्जुन  के  बाणों  से  घायल  हो  जाने  पर  वे  छह  महीने  तक  शर -शैया  पर  पड़े  रहे  l  एक  काँटा  चुभ  जाए  तो  कितना  कष्ट  होता  है   और  पूरे  शरीर  में  बाण  चुभे  हों   और  उन  नुकीले  बाणों  को  ही  छह  महीने  के  लिए  अपनी  शैया  बना  लेना  --- उस  असीम  कष्ट  को  हम  अनुभव  कर  सकते  हैं  l  उन्हें  इतना  कष्ट  उठाना  पड़ा  l   अपनी  भीष्म प्रतिज्ञा  के  कारण  अधर्म  और  अनीति  के  मार्ग  पर  चलने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  देना  पड़ा  l  यह  सब  क्यों  हुआ  ?  इसके  पीछे  एक  कथा  है  -----   एक  बार  आठ  वसु   अपनी  पत्नी  सहित  मृत्यु लोक  में  भ्रमण  के  लिए  आए  और   कई  तीर्थों  के  दर्शन  करते  हुए  महर्षि  वशिष्ठ  के  आश्रम  पहुंचे  l  आश्रम  का  दर्शन  करते  हुए   एक  वसु 'प्रभास '  अपनी  पत्नी  सहित  महर्षि  के  उद्यान  में  आ  गए  ,  वहां  महर्षि  की   कामधेनु   गाय  नन्दिनी  थी  , जिसे  देखकर  वसु  की  पत्नी  उसे  पाने  के  लिए  व्याकुल  हो  गई  और  वसु  प्रभास  से  बोली  --- 'अभी  महर्षि  आश्रम  में  नहीं  है ,  इसे  हम  चुरा  लेते  हैं  l  '  वसु  ने  उसे  बहुत  समझाया  कि  लोगों  की  प्यारी  वस्तु  देखकर  लालच  करना  और  उसे  पाने  की  अनाधिकार  चेष्टा  करना  पाप  है  l  हम  अच्छे  कर्मों  के  कारण  ही  देवता  हुए  हैं  ,  बुराई  पर  चलने  से  कर्म-भोग  का  दंड  भुगतना  पड़ेगा  l  प्रभास  ने  उसे  हर  तरह  से  समझाया   लेकिन  वह  न  मानी   और  उसे  गाय  चुरानी  पड़ी  l   ऋषि  जब  आश्रम  वापस  आए  और  उन्होंने  नन्दिनी  को  नहीं  देखा  तो  सब  से  पूछा  l  कुछ  पता  न  चलने  पर  जब  उन्होंने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देखा  तो  मालूम  हुआ  कि  यह  तो  वसुओं  की  करतूत  है  l  देवताओं  के  ऐसे  पतन  पर  उन्हें  बहुत  क्रोध  आया   और  उन्होंने  शाप  दे  दिया  कि  आठों  वसु   देव शरीर  त्याग  कर   पृथ्वी  पर  जन्म  लें  l   शाप  व्यर्थ  नहीं  हो  सकता  l  देव गुरु  के  कहने  पर   उन्होंने  सात  वसुओं  को  तो  धरती  पर  जन्म  लेते  ही  तत्काल  मुक्ति  का  वरदान  दे  दिया   लेकिन  अंतिम  वसु  प्रभास  को   जिसने  कामधेनु  चुराई  थी  उसे  चिरकाल  तक  मनुष्य  शरीर  में  रहकर  कष्टों  को  सहन  करना  पड़ा  l  ये  आठों  वसु  महाराज  शांतनु  और  गंगा  के  पुत्र  थे  ,  जिनमे  सात  की  तो  तत्काल  मृत्यु  हो  गई   परन्तु  आठवें  वसु  प्रभास  को  पितामह  के  रूप  में   जीवित  रहना  पड़ा  l  यह  कथा  उन्हें  समझाने  के  लिए  है  जो  बेईमानी  और  भ्रष्टाचार  में  लिप्त  हैं  l  ऋषि  कहते  हैं --- यह  न  समझा  जाए   कि  एकांत  में  किया  गया  अपराध  किसी  ने  देखा  नहीं   l  नियंता  की  द्रष्टि  सर्वव्यापी  है   उससे  कोई  बच  नहीं  सकता  l  

18 October 2022

WISDOM ----

 हमारे  महाकाव्य  --रामायण  और  महाभारत  -- केवल  सुनने , सुनाने  के  लिए  नहीं  हैं  ,  उनकी  शिक्षाओं  पर  अमल  करें  ,  विभिन्न  प्रसंगों  से   अपना  विवेक  जाग्रत  करें  तो  सुख -शांति  के  द्वार  खुल  जाएँ  l   महाभारत  का  ये  प्रसंग  हमें  राष्ट्रीय  एकता  का  पाठ  पढ़ाता  है  लेकिन  महाभारत  हुए  युग  बीत  गए  ,  हमने  वह  पाठ  सीखा  ही  नहीं   और  आपसी  फूट  से  सदियों  की  गुलामी  और  विदेशी  आक्रमणों  को  झेला  l  कहते  हैं  जब  जागो  तब  सवेरा   !   बाहरी  शक्तियां  तो  लाभ  उठाने  की  तैयारी  में  रहती  हैं  l  प्रसंग  है  ----  जुए  में  हार  जाने  के  बाद  पांडव  वन  में  निष्कासित  जीवन  व्यतीत  कर  रहे  थे  l  उन्हों  दिनों  की  बात  है   एक  यक्ष  ने   हस्तिनापुर  पर  आक्रमण  कर  दिया  l  जब  तक  सेना  तैयार  हो   उसने  दुर्योधन  को  छलपूर्वक  पकड़  लिया   और  विमान  द्वारा  युवराज  दुर्योधन  को  बंदी  बनाकर  अपने  यक्षपुरी   ले  चला  l  विमान  वहां  से  निकला  जहाँ  पांचों  पांडव  और  द्रोपदी  विश्राम  कर  रहे  थे  l   विमान  में  द्वन्द युद्ध  करते  दुर्योधन  को  युधिष्ठिर  ने  पहचान  लिया  l  उन्होंने  अर्जुन  को  बुलाकर  तुरंत  आज्ञा  दी  कि  --- जाओ  और  इस  यक्ष  से  युद्ध  कर  भाई  दुर्योधन  को  छुड़ा  दो  l  इस  पर   भीम  ने  विरोध  किया   और   उन्हें  दुर्योधन  द्वारा  किए  गए  षड्यंत्रों  और  अत्याचारों  की  याद  दिलाई  l   तब  युधिष्ठिर  ने  कहा ---- नीति  कहती  है   जब  बाहरी  आक्रमण  हो  तो  आंतरिक  द्वेष  भूलकर  परस्पर  मदद  करनी  चाहिए   l  हम  भाई -भाई  का  आपस  में  चाहे  वैर  है ,  लेकिन  बाहरी  आक्रमण  के  समय  हम  एक  सौ  पांच  है  l  '  अर्जुन  को  भी  बात  समझ  में  आ  गई   और  उसने  यक्ष  से  युद्ध  कर  के  दुर्योधन  को   छुड़ा  लिया  l   दुर्योधन  ने  विनीत  भाव  से   युधिष्ठिर  से  कहा --- आप  इस  उपकार  के  बदले  क्या  चाहते  हैं  ? '  युधिष्ठिर  ने  युवराज  दुर्योधन  को  सम्मान  दिया  और  कहा  --अभी  आप  हस्तिनापुर  लौट  जाएँ  ,  वहां  आपके  बिना  सब  चिंतित  होंगे  l  '

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   यमदूत  और  देवदूत  मृतकों  की  जीवन गाथा  पूछकर  उन्हें  स्वर्ग  और  नरक  में  ले  जाते  थे  l  एक  साधु  के  पास  वे  पहुंचे   तो  वे  बोले  ---- " मैं  भरी  जवानी  में  संन्यासी  हो  गया  l  यहाँ  तक  कि  छोटे -छोटे  बच्चे , पत्नी  तथा  माता  के   रोने -बिलखने  की  परवाह  नहीं  की  l  ऐसी  है  मेरी  भक्ति  l "  उस  साधु  को  यमदूतों  ने  नरक  पहुंचा  दिया  l   साधु  बड़ा  परेशान  हुआ  , तब  धर्मराज  ने  उसके  कर्मों  की  समीक्षा  करते  हुए  कहा ---- " कर्तव्यों  का  परित्याग  कर  के  कोई  भक्ति  नहीं  हो  सकती  l  "  वस्तुतः  कर्तव्य  सर्वोपरि  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- कर्तव्य  ही  धर्म  है  l  भगवद भक्ति  उसी  का  एक  अंग  है  l  

17 October 2022

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   ' जाके  पैर  न  फटे  बिवाई ,  वो  क्या  जाने  पीर  पराई  l  '----- यह  कहानी  है  उस  व्यक्ति  की  जिसका  नाम  था  पुन्नाग  ,  ये  अपराध  का  पर्याय  बन  चुका  था  l   पथ  पर  भटका  हुआ  कोई  भी  यात्री  उसके  रहते  सुरक्षित  घर  नहीं  पहुँच  सकता  था  l  मनुष्य  हो  या  जानवर , पशु -पक्षी  ,  उन्हें  पीड़ित  करना , मारना  यही  उसका  काम  था  l  उसकी  एक  छोटी  बेटी  थी  --विपाशा  l  जब  वह  हुई  थी  तभी  उसकी  माँ  का  देहांत  हो  गया  था  l  एक  छोटे  से  हिरण  के  शिशु  के  साथ  वो  खेला  करती  थी  l  पुन्नाग  बहुत  निर्दयी  था  लेकिन  अपनी  पुत्री  के  लिए  उसके  ह्रदय  में  बहुत  स्नेह  था  l   वह  उसे  बहुत  लाड़ -प्यार  से  रखता  l  विपाशा  नहीं  जानती  थी  कि  कष्ट -पीड़ा  क्या  होती  है   विपाशा  थोड़ी  बड़ी  हुई  तो  अपने  पिता  से  पूछा  करती  थी  कि  आप  मेरे  लिए  इतने  वस्त्र , आभूषण  आदि  कहाँ  से  लाते  है  ?  पुन्नाग  बात  को  टाल  जाता  l  धीरे -धीरे  वह  अपने  पिता  के  कृत्यों  को  समझ  गई  l  l   एक  दिन  उसके  हिरण  ने  ऐसी  छलांग  भरी  कि  उसकी  टांग  टूट  गई , वह  पीड़ा  से  छटपटाने  लगा , चल  भी  नहीं  पा  रहा  था  l  विपाशा  ने  उस  दिन  पहली  बार  पीड़ा  देखी  l  यह  पीड़ा  कैसी  होती  है  ?  यह  जानने  के  लिए  उसने  एक  बड़े  पत्थर  से  अपने  पैर  पर  प्रहार  किया   जिससे  उसके  पैर  की  हड्डी  टूट  गई  l  अब  वह  पीड़ा  से  छटपटाने  लगी  l  अब  उसे  समझ  में  आ  गया  कि  उसका  पिता  अब  तक  सहस्त्रों  प्राणियों  को   इस  तरह  कितनी  पीड़ा  दे  चुका  होगा  ,  कितना  तड़पाया  होगा  उसने  l  उसकी  आँखों  से   आँसू  रुक  नहीं  रहे  थे  l  वह  और  उसका  हिरन  दोनों  ही  घायल  अवस्था  में   थे  , हिरण  उसे  चाटकर  अपना  प्रेम   प्रकट  कर  रहा  था  l  शाम  हुई  जब  पुन्नाग  वापस  आया   तो  हमेशा  की  तरह  विपाशा  दौड़ती  हुई  बाहर  नहीं  आई  l  वह  घबरा  गया  ,  सब  तरफ  देखा  तो  बगीचे  में  विपाशा  और  हिरन  दोनों  घायल  पड़े  थे  l  विपाशा  को  ऐसी  हालत  में  देखकर  उसका  ह्रदय  चीत्कार  कर  उठा  ,  वह  बोला  --- यह  तुम्हे  क्या  हुआ  ?   विपाशा  ने  क्षीण  स्वर  में  कहा --- ' तात  !  मैं  देखना  चाहती  थी  कि  जीवों   को  किस  तरह  पीड़ा  होती  है  ,  सुना  है  आप  भी  तो  ऐसे  ही   लोगों  को  कष्ट  दिया  करते  हैं   l ' इतना  कहते  हुए  वह  बेहोश  हो  गई  l  अपनी  बेटी  का  कष्ट  देखकर  उसे  समझ  आया  कि  पीड़ा  कैसी  होती  है  l  उसने   प्राणियों  को  कितना  कष्ट  दिया  , वह  दर्द  उसे  समझ  में  आया  ,  उसके  ह्रदय  में  संवेदना  जाग  गई  l  उस  दिन  से  उसने  हिंसा  न  करने  की  सौगंध  ली  और  अपना  शेष  जीवन   पीड़ित  जानवरों  और  पशु -पक्षियों  के  उपचार  और  सेवा  में  लगा  दिया  l  

16 October 2022

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  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  लिखा  है --- ' प्रभुता  पाइ  काहि  मद  नाहीं  l '  अर्थात   किसी  भी  तरह  से   धन , पद , सत्ता  पाते  ही   व्यक्ति  के  अंदर  अहंकार  पैदा  हो  जाता  है  l  शक्ति  व्यक्ति  को   उन्मादी , अहंकारी  बना  देती  है   और  वह  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करने  लगता  है  l  संसार  में  जब  भी  युद्ध  हुए  हैं  वे  शक्ति  के  दुरूपयोग  के  ही  उदाहरण  हैं  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं   कि  यदि  शक्ति  के  साथ  भक्ति  का  समन्वय  हो  तो   शक्ति  का  सदुपयोग  संभव  होगा  l   जो  ईश्वर  का  सच्चा  भक्त  है  वह  संवेदनशील  होगा  l '  आज  संसार  में  जितनी  भी  अराजकता , आतंकवाद , अपराध  और  बेगुनाह  लोगों  पर  अत्याचार  और  हत्याएं  हैं  ,  इन  सब  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  है ---- संवेदना  l    पुराण  में  एक  कथा  है ----- कौशल  नरेश  और  काशी  नरेश    दोनों  ही  देवी  के  भक्त  थे  लेकिन  दोनों  का  स्वभाव  और  विचार  भिन्न  थे   l  कौशल  नरेश  शक्ति  की  ओर  आकर्षित  थे  लेकिन  काशी  नरेश  की  रूचि  भक्ति  में  थी  ,  उनके  ह्रदय  में  संवेदना  थी ,  प्रजा  के  सुख -दुःख  को  समझते  थे  l  इस  कारण  उनकी  कीर्ति  चारों  ओर  फ़ैल  रही  थी  l   उनकी  कीर्ति  का  विस्तार  देख  कौशल  नरेश  जल -भुन  गए  और  उन्होंने  काशी  पर  आक्रमण  कर  दिया  l  युद्ध  में  काशीराज  हार  गए  और  वन  में  भाग  गए  l  अब  कौशल  नरेश  का  काशी  पर  कब्जा  हो  गया  लेकिन  वहां  की  प्रजा  ने  उनका  स्वागत  नहीं  किया   और  काशीराज  की  पराजय  से  वहां  की  प्रजा  दिन -रात  रोने  लगी  l  कौशल  नरेश  ने  सोचा  कि  कहीं  प्रजा  विद्रोह  न  कर  दे   इसलिए  शत्रु  को  समाप्त  ही  कर  दो  ल  उन्होंने  घोषणा  करा  दी  कि  जो  काशी नरेश  को  ढूंढ  कर  लाएगा  उसे   सौ  मोहरें  दी  जाएँगी  l   यह  घोषणा  सुन  वहां  की  प्रजा  ने  अपने  आँख -कान , मुँह  सब  बंद  कर  लिए  , बहुत  दुखी  हो  गई  l  इधर  काशी नरेश   दीन -मलिन  जंगलों  में  भटक  रहे  थे  l  एक  दिन  एक  पथिक  उनके  सामने  आया   और  पूछने  लगा --- " वनवासी  !  काशी  का  मार्ग  कौन  सा  है  ?  '  राजा  ने  पूछा  --- " तुम्हारे  वहां  जाने  का  कारण  क्या  है  ? "  पथिक  बोला  --- 'मैं  व्यापारी  हूँ  l  मेरी  नौका  डूब  गई  है  ,  अब  द्वार -द्वार  भीख  मांगता  हूँ  l  मैंने  सुना  है  काशीराज  बहुत  दयालु  हैं   इसलिए  कुछ  मदद  के  लिए  उनके  दरवाजे  जा  रहा  हूँ  l  "  थोड़ी  देर  सोचकर   उन्होंने  कहा --- ' तुम  बहुत  परेशान  हो , चलो  मैं  तुम्हे  वहां  पहुंचा  दूँ  l "  दूसरे  दिन  कौशल  नरेश  की  सभा  में  एक  अति  सामान्य  वस्त्रों  में  एक  व्यक्ति  आया  जिसके  बाल , दाढ़ी  सब  बढ़े  हुए  थे  l  कौशल  नरेश  के  पूछने  पर   उसने  कहा  ---' आपने  काशीराज  को  पकड़  लाने  वाले  को  सौ  मोहरें  देने  की  घोषणा  की  है   तो  आप  मेरे  इस  साथी  को  सौ  मोहरें  दे  दो  ,  मैं  ही  काशीराज  हूँ  l  '  यह  सुनकर  वह  व्यापारी  और  सारी  सभा  सन्न  रह  गई  , प्रहरी  की  आँखों  में  आंसू  आ  गए  l  कौशल  नरेश  का  भी  विवेक  जाग  गया  , उन्होंने  आगे  बढ़कर  काशीराज  को  ह्रदय  से  लगा  लिया   और  उनके  मलिन  मस्तक  पर  मुकुट  चढ़ा  दिया  l  सारी  सभा  धन्य -धन्य  कह  उठी  ,  व्यापारी  को  भी  मोहरें  मिल  गईं   l  कौशल  नरेश  ने  कहा  --यह  सत्य  है  कि  शक्ति  के  साथ  भक्ति  न  हो  तो  विवेक  नहीं  रह  जाता  l  उन्होंने  काशीराज  को  उनका  राज्य  वापस  किया  और  ईश्वर  से  भक्ति  प्रदान  करने  की  प्रार्थना  की  l  

15 October 2022

WISDOM ----

   महाराज  कृष्णदेवराय   तेनालीराम  की  बुद्धि  की  परीक्षा  लेने  के  लिए   समय -समय  पर  उनसे  बेतुके  सवाल  किया  करते  थे  l  एक  दिन  उन्होंने  तेनालीराम  से  पूछा  ---" यह  बताओ  कि  हमारे  राज्य  में  कबूतरों  की  कितनी  संख्या  है  ?  सही  संख्या  जानने  के  लिए   हम  तुम्हें  एक  सप्ताह  का  समय  देते  हैं ,  यदि  तुम  गणना  नहीं  कर  पाए  तो  तुम्हारा  सिर  कलम  कर  दिया  जायेगा  l  "  तेनालीराम  से  कुढ़ने  वाले  दरबारियों  ने  सोचा  कि  इस  बार  तेनालीराम  का  बच  पाना  मुश्किल  है  l   एक  सप्ताह  बाद   तेनालीराम  फिर  दरबार  में   हाजिर  हुए  l   महाराज  के  पूछने  पर  वे  बोले --- " महाराज  ! हमारे  राज्य  में   कुल  तीन  लाख , बाईस  हजार , चार  सौ  चौबीस  कबूतर  हैं  l   आप  संतुष्ट  न  हों  तो  किसी  से  इनकी  गिनती   करवा   लें  l   यदि  गिनती  ज्यादा  हुई  तो  ये  वो  कबूतर  हैं  ,  जो  हमारे  राज्य  में  मेहमान  बनकर  आए  हैं   और  कम  हुई  तो  उन  कबूतरों  के  कारण  ,  जो  दूसरे  राज्य  में  मेहमान  बनकर  गए  हैं  l "  कृष्णदेवराय  तेनालीराम  की  हाजिरजवाबी  सुनकर  मुस्करा  उठे l   

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   छल -कपट , धोखा , षड्यंत्र  यह  सब   हर  युग  में  रहा  है  l  रावण  ने  छल  से  ही  सीता -हरण  किया ,  दुर्योधन  और  शकुनि  का  सारा  जीवन  षड्यंत्र  रचने  में  ही  बीता  l  ऐसी  नीति  अपनाकर  व्यक्ति  अपने  अहंकार  को  पोषित  करता  है  l  लेकिन  यह  सब  बहुत  लम्बे  समय  तक  नहीं  चल  पाता  l  ऐसे  लोगों  का  अंत  वही  होता  है  जैसा  रावण  और  दुर्योधन  का  हुआ  l  वे  स्वयं  तो  डूबते  ही  हैं  ,  अपना  साथ  देने  वालों  को  भी  डुबो  देते  हैं  l   एक  कथा  है -----  कबूतर  की  सुविधाएँ  देखकर  कौए  को  ईर्ष्या  होती  कि  उसका  सब  ओर  से  तिरस्कार  होता  है   और  दुत्कारा  जाता  है   और  कबूतर  को  बुलाकर  दाना -पानी  दिया  जाता  है  , सुरक्षा , सुविधाएँ  दी  जाती  हैं   l  घर  लौटते  कबूतर  के  साथ  एक  दिन  कौआ   भी  साथ  हो  लिया  l  कबूतर  बोला  --आप  कौन  हैं  ?  मेरे  पीछे  क्यों  लगे  हैं  ? '  कौआ   भोला  बनकर  बोला  ---- " न  जाने  क्यों  आपकी  सज्जनता   और  विनम्र  स्वभाव  देखकर   कुछ  आपसे  सीखने  , सत्संग  करने   और  सेवा  करने  का  मेरा  मन  करता  है  ,  इसलिए  चला  आया  हूँ  l  कृपया  अधम  की  सेवाएं  स्वीकार  करें  l "   भोला  कबूतर  कपटी  कौए  की  बातों  में  आ  गया  l  कौआ  साथ  रहने  लगा  l  कबूतर  अपने  दाना -पानी  में  से  उसे  भी  हिस्सा  दे  देता  l  कौआ  छककर  खाता  किन्तु  ताक -झांक  से  बाज  न  आता  l  कबूतर  के  मालिक  ने  दड़बे  में  कौआ  देखा  तो  उसे  आश्चर्य  हुआ  कि   यह  कैसी  विचित्र  मित्रता  है  l   एक  दिन  कबूतर  प्रात:काल  बाहर  जाने  को  हुआ  तो  कौए  से  बोला  --चलो  बाहर  सैर  करें  l  कुछ  दाना  भी  चुग  लेगें  l  कौआ  बोला  --क्षमा  करें   आज  पेट  में  बहुत  पीड़ा  है  ,  रात्रि  को  इतना  खाया  कि  भूख  भी  नहीं  लगी  है  l  मैं  आज  विश्राम  करूँगा  ,  आप  ही  घूम  आएं  l  कबूतर  चला  गया  l  कौए  ने   अच्छा  मौका  देखकर   मालिक  की  रसोई  में  प्रवेश  कर   भगोनी  में  रखी  खीर  खाना  प्रारंभ  किया  l  इतने  में  नौकर  ने  आ  कर  देख  लिया  कि  दुष्ट  कौआ   खीर  खाने  में  लगा  है   l  उसने  तुरंत  रसोई  का  दरवाजा  बंद  कर  दिया   और  पकड़कर  पंख  और  पैर  बांधकर   कोने  में  पटक  दिया   l  कौआ  अब  पछताया  कि  छल , कपट , धोखे  और  लोभ  के  कारण  ही  उसकी  यह  दुर्दशा  हुई  है  l  

14 October 2022

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   उस  मूर्धन्य  वैज्ञानिक  ने   अनेक  विषयों  की  प्रयोगशाला  निर्मित  कर  रखी  थी  l   सहस्त्रों  वैज्ञानिक  बहुमूल्य  यंत्र -उपकरणों  पर   अन्वेषण - परिक्षण  में  व्यस्त  थे  l  बिशप  एक  दिन  अकस्मात   उसे  देखने  आ  पहुंचे  l   संचालक  ने  सम्मान  के  साथ   अपने  प्रयोग  और  परिणाम  बताते  हुए   कहा --- " हो  रहे  आविष्कारों  से  मानवीय  सुविधा   और  समृद्धि  में   बढ़ोत्तरी  होगी  l "  बिशप  ने  आशंकित  मन  से  पूछा  ---- " यदि  वैज्ञानिक  उपलब्धियों  का   दुरूपयोग  होने  लगा  तो  क्या   सुविधाएँ  बढ़ने  के  स्थान  पर   उलटा  विनाश  ही  तो  न  खड़ा  हो  जायेगा  ? "   वैज्ञानिक  ने  नम्रता पूर्वक  कहा  ---- "  सुविधाएँ  बढ़ाना  हमारा  काम  है   और  उसके  दुरूपयोग  को  रोकने  का  वातावरण  बनाना  आपके  समुदाय  का --धर्मतंत्र  का  काम  है  l  "

13 October 2022

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 महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें  यह  सिखाते  हैं  कि  यदि  हम  संसार  पर  विश्वास  करने  के  बजाय  ईश्वर  पर  विश्वास  करें  , ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  हों  तो  वे  हर  पल  हमारी  रक्षा  करते  हैं  l  महाभारत  के  युद्ध  में  दुर्योधन  ने  भगवान  श्रीकृष्ण  की  विशाल  सेना  को  चुना  लेकिन  अर्जुन    विवेकशील  था  , श्रीकृष्ण  ने  कहा  कि  वे  युद्ध  में  शस्त्र  नहीं  उठाएंगे   फिर  भी   उसने  भगवान  को  ही  चुना  और  अपने  जीवन रूपी  रथ  की  बागडोर  उन्हें  सौंप  दी  और  अपने  कर्तव्य पथ  पर  चलते  हुए  वह  निश्चिन्त  हो  गया  l  अब  अर्जुन  समेत     सभी  पांडवों  की  जिम्मेदारी  भगवान  के  सिर  पर  आ  गई   l  वे  हर  पल  पांडवों  की  सुरक्षा  का  ध्यान  रखते थे  l   ईश्वर  विश्वास  में  यह  खासियत  है  कि  वे  अपने  सभी  भक्तों  का  मान  रखते  हैं   चाहे  वह ' पांडवों  के  पक्ष  का  हो  या  कौरवों  के  पक्ष  का ,  बस  !  उनका  भक्त  सच्चा  हो  l  --- युद्ध  आरम्भ  हुआ  l   दुर्योधन  प्राय: पितामह  को  उकसाता  रहता  था  कि  आपने  तो  परशुराम जी  को  भी  युद्ध  में  पराजित  किया  है  , देवता  भी  आपके  सामने  नहीं  टिक  सकते  फिर  पांडवों  की  क्या  मजाल  !  कहीं  हस्तिनापुर  के  प्रति  आपकी  निष्ठा  तो  नहीं  डिग  रही  ?  ' दुर्योधन  के  कटु  वचन  सुनकर  भीष्म  व्यथित  हो  गए  और   उन्होंने  पांच  बाण   अपने  तुणीर  से  अलग  करते  हुए  प्रतिज्ञा  की  --- ' कल  के  युद्ध  में   इन  पांच  बाणों  से  पांडवों  का  वध  होगा  l '  दुर्योधन  ने  कहा --- ' यदि  ऐसा  न  हुआ  तो  !  '  तब  भीष्म  ने  कहा --- ' तो  फिर  स्वयं  श्रीकृष्ण  को  शस्त्र  उठाना  पड़ेगा  l '   दुर्योधन  के  वचन  देने  के  बाद  भीष्म  बहुत  व्यथित  हो  गए  l  श्रीकृष्ण  ने  तो  प्रतिज्ञा  की  थी  कि  वे  युद्ध  में  शस्त्र  नहीं  उठाएंगे  , अब  भीष्म पितामह  शिविर  में   भगवान  श्रीकृष्ण  को  पुकारने  लगे  , अपनी  प्रतिज्ञा  की  रक्षा  के  लिए  वे  भगवान   श्रीकृष्ण  से  उन्ही  की  प्रतिज्ञा  को  तोड़ने  की  प्रार्थना  करने  लगे  ,  आँखें  बंद  कर  के  भगवान  की  प्रार्थना  करने  लगे ---- 'हे  माधव  ! हे  कृष्ण  ! अपने  भक्त  की  लाज  रखो  l '   अब  भगवान  को  पांडवों  की  रक्षा  भी  करनी  थी  और  अपने  भक्त  भीष्म पितामह  का  भी  मान  रखना  था  l  इसलिए  उन्होंने  लीला  रची   l  वे  महारानी  द्रोपदी  को  लेकर  भीष्म  के  शिविर  पहुंचे  l  उस  समय  भीष्म  पितामह  आँखें  मूंदे  श्रीकृष्ण  का  ही  ध्यान  कर  रहे  थे  l  द्रोपदी  के  प्रणाम  करने  पर  उन्होंने  आँखें  मूंदे  ही  ' सौभाग्यवती 'होने  का  आशीर्वाद  दे  दिया  l   फिर  उन्होंने  आँखें  खोली  और   द्रोपदी   को  देखा  तो  भगवान  की  सारी  लीला  समझ  गए  कि  द्रोपदी  को  सौभाग्यवती  होने  का  आशीर्वाद  देकर  पांडव  सुरक्षित  हो  गए  l  श्रीकृष्ण  ने  पितामह  से  कहा --- ' विश्वास  रखिए  , मेरा  मान  भले  ही  भंग  हो  जाए  मेरे  भक्त  का  मान  कभी  भंग  नहीं  होगा  l '    अगले  दिन  भयानक  युद्ध  हुआ  l  श्रीकृष्ण  को  महसूस  हुआ  कि  पितामह  के  प्रति  श्रद्धा  के  कारण  अर्जुन  ठीक  से  युद्ध  नहीं  कर  रहे  हैं  l  इसके  लिए  उन्होंने  अर्जुन  को  टोका  भी  l  भगवान  रथ  भी  बड़ी  निपुणता  से  चला  रहे  थे   फिर  भी  भीष्म  के  चलाए  कई  बाण  अर्जुन  व   श्रीकृष्ण  के  शरीर  पर  लगे  l  अब  अर्जुन  की  सुस्ती  देख  भगवान  को  क्रोध  आ  गया   और  अपनी  ही  प्रतिज्ञा  को  भंग  कर   वे    घोड़े  की  रास  छोड़कर    रथ  से  कूद  पड़े   और  टूटे  रथ  के  पहिये  को  लेकर   भीष्म  की  ओर  दौड़  पड़े  l  यह  देख  भीष्म  अति  प्रसन्न  हुए  और  बोले -- " आओ  !  माधव  आओ  ! मेरे  अहोभाग्य , मेरी  खातिर  तुम्हे  रथ  से  उतरना  पड़ा  l  तुम्हारे  हाथों  मरकर   मैं  वह  पद  प्राप्त  करूँगा  ,  जहाँ  से  इस  पार  लौटना  ही  नहीं  पड़ता  l "  भगवान  ऐसे  भक्तवत्सल  होते  हैं  , अपने  भक्त  की  प्रतिज्ञा  का  मान  रखने  के  लिए  उन्होंने  अपनी  प्रतिज्ञा  भंग  कर  दी  l  यह  देख  अर्जुन  बड़ी  तेजी  से  दौड़कर  भगवान  को  पकड़  पाए   और  बोले  --- 'भगवान  ! मेरी  सुस्ती  के  लिए  क्षमा  करें , नाराज  न  हों  ! '  भीष्म  के  मन मंदिर  में  यह  द्रश्य  समा  गया  कि  साक्षात्  भगवान   चक्र  लेकर  उनके  सामने  हैं  l  शरशैया  पर  पड़े  हुए  अंतिम  क्षणों  तक  वे  भगवान  के  इसी  रूप  का  ध्यान  करते  रहे  l  

12 October 2022

WISDOM -----

  ईरान  के  राजा  शाह  अब्बास  को  किसी  कार्यक्रम  वृक्षारोपण  के  लिए  बुलाया  गया  था  l  वृक्षारोपण  के  समय  उस  उद्यान  का  माली  उपस्थित  नहीं  था  , अत:  शाह  ने  अपने  हाथों  से  पोधा  रोप  दिया  l   जब  माली  लौटा  तो  उसने  पौधों  की  बेतरतीब  कतारें  देखीं   l  उसने  उनको  निकाल कर  दोबारा  से  रोपना  आरम्भ  कर  दिया  l  राजा  तक  ये  बात  पहुंची  l  कुछ  चुगलखोरों  ने  उसे   दरबार  में  बुलवाया   ताकि  उसे  राजदंड  मिल  सके  l  उसे  कहा  गया  कि  शाह  ने  अच्छा  मुहूर्त  देखकर   पौधे  रोपे  थे   और  तुमने  पौधे  निकाल  कर   मुहूर्त  और  शाह  दोनों  का  अपमान  किया   है  l  माली  सिर  झुकाए  खड़ा  था  ,  पर  शाह  अब्बास  ने  उसकी  तारीफ़  करते  हुए  कहा ---- " मेहनत  करने  वाले  के  लिए   हर  मुहूर्त  शुभ  होता  है  l  जो  माली  राजदंड  की  परवाह  किए  बगैर  बाग  का  ध्यान  दिल  लगाकर  रखता  है  ,  उसे  सजा  नहीं  पुरस्कार  मिलना  चाहिए   l " माली  को  ससम्मान  विदा  किया  गया  l 

11 October 2022

WISDOM ----

   हमारे  धर्म  ग्रंथों  का  एक  मूल  मन्त्र  है ---- ' जो  नम्र  होकर  झुकता  हैं  , वही  ऊपर  उठते  हैं   l '  आज  संसार  में  धर्म , जाति , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब   आदि  के  नाम  पर   इतनी  फूट  है  कि  अब  मनुष्यं , मनुष्य  से  ही  डरने  लगा  है  l  आज  जानवर  से  सामना  करना  फिर  भी  सरल  है   किन्तु  मनुष्य  नाम  का  प्राणी  कब  पीठ  में  छुरा  भोंक  दे ,  छल , कपट , षड्यंत्र  कर  के   आपके  अस्तित्व  को  ही  मिटा  दे  ,  कोई  नहीं  जानता  ?  केवल  ईश्वर विश्वास , दैवी  शक्ति  ही  रक्षा  कर  सकती  है l  कलियुग  की  इस  दुर्बुद्धि  के  कारण  रिश्ते  और  प्रेम  ने  अपना  अर्थ  ही  खो  दिया  है  l  कहते  हैं --,एक  तो  करेला  , ऊपर  से  नीम  चढ़ा  l'    एक  तो  कलियुग  का  प्रभाव  ,  उस  पर  से    स्वार्थी  तत्वों  ने  इस   फूट  से   चाहे  परिवार  हो , समाज  हो  या  सम्पूर्ण  संसार  की  बात  हो  ,  कहीं  भी   फायदा  उठाने ,  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ी  l  प्रकृति  दंड  भी  देती    है  लेकिन  स्वयं  का  सुधार  सबसे  कठिन  कार्य  है  l  आज  जरुरत  है  विनम्रता  की  l   विनम्रता  के  वास्तविक  अर्थ  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है -------  एक  बार   बाबा  फरीद  से  मिलने  एक  राजा  आया  l  वह  बड़ा  अहंकारी  था    और  बाबा  के  लिए  उपहार स्वरुप  एक  नायाब  तलवार  लेकर  आया  l  बाबा  फरीद  बोले ---- " राजन  !  मैं  शुक्रगुजार  हूँ  कि  तुम  मेरे  लिए  बेशकीमती  तलवार  लेकर  आए  ,  लेकिन  यह  मेरे  किसी  काम  की  नहीं  l  मुझे  कुछ  देना  ही  चाहते  हो  तो   सुई  के  साथ  विनम्रता  का  उपहार  दो  l  वह  मेरे  लिए  ऐसी  सौ  तलवारों  से  भी  अधिक  कीमती  होगा  l "  बाबा  की  बात  सुनकर  राजा  दंग  रह  गया  और  बोला --- " बाबा  ! सुई  और  विनम्रता   ऐसी  सौ  तलवारों  का  मुकाबला  कैसे  कर  सकती  हैं ? "   बाबा  बोले --- " तलवार  लोगों  को  मारने -काटने  का  काम  करती  है   जबकि  सुई  सिलने  का  काम  करती  है  l  छोटी  सी  सुई  चीजों  को  जोड़ती  है   l  तोड़ना  आसान  है  और  जोड़ना  कठिन  है  l  इसी  तरह  विनम्रता  से  व्यक्ति  उन  सभी  को  जीत  लेता  है  ,  जिन्हें  वह  अहंकारवश  नहीं  जीत  सकता  l  इसलिए  सुई  और  विनम्रता  ज्यादा  कीमती  है  l  "  राजा  को  बाबा  की  बात  समझ  में  आ  गई   , और  बाबा  के  चरणों  में  सिर  रखकर  बोला --- " आज  से  मैं  जोड़ने  का  काम  करूँगा ,   तोड़ने  का  नहीं   और  विनम्रता  से  प्रजा  के  ह्रदय  को  जीतने  का  प्रयास  करूँगा  l  "   विनम्रता   के  पीछे  कोई  छुपा  हुआ  स्वार्थ  या  अवसरवादिता  नहीं  होनी  चाहिए  ,  फिर  वह  विनम्रता  होगी  ही  नहीं  , फिर  वह  ढकोसला  होगा  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'सच्ची  विनम्रता  व्यक्ति  को  संवेदनशील  बनाती  है  ,  जिससे  वह  दूसरों  के  कष्ट -पीड़ा  को  महसूस  करता  है   और  उसे  दूर  करने  के  लिए  वह  सेवा -सहायता  के  कार्यों  में  निरत  होता  है  l "

10 October 2022

WISDOM -----

    ऋषियों  का  कहना  है ---- ' चींटी  का  संगृहीत  अन्न ,  मक्खी  का  संचित  शहद  और  कृपण  का  संचित  धन   उनको  छोड़  सबके  काम  आता  है  l  अत: धन  का  सदुपयोग   उसके  सार्थक  कार्यों  में  निवेश  से  है  , निरर्थक  संग्रह  से  नहीं  l ' ------ एक  अमीर  सेठ  अपनी  तिजोरी  में  सोने  की  ईंट  रखता  था   और  प्रतिदिन  उसे  खोलकर  देखता  फिर   तिजोरी  बंद  कर  देता  l   बहुत  खुश  होता  कि  उसके  पास  अपार  संपत्ति  है  l   पुत्र  ने  उसे  ऐसा  करते  देख  लिया  , वह  अपने  पिता  की  कंजूसी  से  बड़ा  परेशान  था  l  तो  उस  पुत्र  ने  तिजोरी  की  चाबी  निकाल  कर  एक -एक   सोने  की  ईंट  खिसकाना  आरम्भ  किया   और  उसके  स्थान  पर  पीतल  की  ईंट  रखता  रहा  l   इस  तरह  नाटक  करते  सारा  जीवन  बीत  गया  l  अंत  समय  जब  सेठ  मरने  लगा   तो  लड़के  ने  कहा ---- " पिताजी , एक  रहस्य  की  बात  बताऊँ  ,  जो  आपसे  अब  तक  छुपा  रखी  थी  l  "  पिता  ने  कहा ---- " जरुर  बताओ  बेटा  l  " पुत्र  ने  कहा --- " पिताजी , जिन  ईंटों  को  देखकर  आप  इतना  खुश  होते  थे ,  वे  तो  पीतल  की  हैं  l  सोने  की  ईंट  तो  हमने  कब  की  बेच  डालीं  l  "  पिता  यह  सुनकर  रोने  लगा , उसको  बहुत  धक्का  लगा ,  आँखें  खुली  की  खुली  रह  गईं  , उसका  हार्ट फेल  हो  गया  l  

WISDOM ---

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' देवता  यदि  कहीं  हैं , तो  हमारे  ही  अन्दर  सत्प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं   l  और  असुर  हैं , तो  वे  भी  हमारे  अन्दर  पाशविक  प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं  l  जो  विवेकशील  हैं,  वे  विलास  उपभोग  के  मायाजाल  में  न  पड़कर   पाशविक  प्रवृत्तियों  को  स्वयं  पर  हावी  नहीं  होने  देते  l '  देवराज  इंद्र  को  असुरों  से  अनेक  बार  परस्त  होना  पड़ा  l  भगवान  की  विशेष  सहायता  से  ही   बड़ी  कठिनाई  के  साथ  अपना  इन्द्रासन  लौटाने  में  सफल  हो  सके  l  एक  दिन  इस  बार -बार  की  पराजय  का  कारण  प्रजापति  से  पूछा  ,  तो  उन्होंने  कहा --- ऐश्वर्य  की  रक्षा  संयम  से  होती  है  l  जो  वैभव  पाकर  प्रमाद  में  फंस  जाते  हैं  , उन्हें    पराभव  का  मुँह  देखना  पड़ता  है  l   एक  कथा  है ------- दो  संत  तीर्थ  यात्रा  पर  जा  रहे  थे  l  एक  विशालकाय  वृक्ष  के  नीचे  उन्होंने  आश्रय  लिया   और  आगे   बढ़े  l  यात्रा  से  जब   अगले  वर्ष  वापस  लौटे   तो  उन्होंने  देखा  कि  जिस  सघन  वृक्ष  की  छाया  में   उन्होंने  भोजन  किया  था  , विश्राम  किया  था , वह  गिरा  पड़ा  है  l   पहले  संत  ने  अपने  वरिष्ठ  संत  से  पूछा  --- " महात्मन  !  यह  कैसे  हुआ  ?  इतनी  अल्प  अवधि  में  यह  वृक्ष  कैसे  गिर  गया  ? "  संत  बोले --- " तात  !  यह  वृक्ष  छिद्रों  के  कारण  गिरा  है  l  प्राण  था --- इसका  जीवन  रस ,  जो   गोंद  रूप  में  सतत  बहता  रहा  l  उसे  पाने  की  लालसा  में  मनुष्य  ने  उसमें  छेद  कर   उसे  खोखला  बना  दिया  l  खोखली  वस्तु  कभी  खड़ी  नहीं  रह  सकती  l  झंझावातों  को  सहन  न  कर  पाने   के  कारण  ही  इसकी  यह  गति  हुई  है  l  '