पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- " व्यक्ति की महत्ता नहीं है l महत्ता है उसकी अंतरात्मा में स्थित अंत:शक्ति की l जो सदा अपनी अंत:शक्ति को विकसित करता है और उसे अहंकार से बचाए रखता है , वही महाकाली का यंत्र बनता है l वही राष्ट्र एवं विश्व के निर्माण - कार्य में सर्वोपरि एवं सबसे आगे खड़ा रहता है l "
अहंकार से अंत:शक्ति का घोर दुरूपयोग होता है l इसी अहंकार के कारण ऐसे सम्राज्य , जो कभी अस्त नहीं होते जान पड़े , काल के विराट पहियों में दबकर विलीन हो गए l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- " काल से बढ़कर कोई नहीं है l इनसान तो इसका खिलौना एवं निमित मात्र है l वे , जो स्वयं पर गर्व करते हैं कि महान घटनाओं के जन्मदाता वही हैं , वे बड़ी भ्रान्ति में रहते हैं , क्योंकि प्रत्यक्ष में उन्हें यह कार्य स्वयं से संचालित होता हुआ जान पड़ता है l यदि यह अहंकार बना रहे तो अंत में वे काल की गहरी खाई में जा गिरते हैं l लेकिन वे लोग जो स्वयं को भगवान का यंत्र मानकर काम करते हैं तथा सारा श्रेय उसी भगवान को देते हुए चलते हैं , वे ही जीवित रहते हैं और समाज में उन्हीं की प्रतिष्ठा होती है और ईश्वर उन्ही को माध्यम बनाकर कार्य करता है l "
अहंकार से अंत:शक्ति का घोर दुरूपयोग होता है l इसी अहंकार के कारण ऐसे सम्राज्य , जो कभी अस्त नहीं होते जान पड़े , काल के विराट पहियों में दबकर विलीन हो गए l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- " काल से बढ़कर कोई नहीं है l इनसान तो इसका खिलौना एवं निमित मात्र है l वे , जो स्वयं पर गर्व करते हैं कि महान घटनाओं के जन्मदाता वही हैं , वे बड़ी भ्रान्ति में रहते हैं , क्योंकि प्रत्यक्ष में उन्हें यह कार्य स्वयं से संचालित होता हुआ जान पड़ता है l यदि यह अहंकार बना रहे तो अंत में वे काल की गहरी खाई में जा गिरते हैं l लेकिन वे लोग जो स्वयं को भगवान का यंत्र मानकर काम करते हैं तथा सारा श्रेय उसी भगवान को देते हुए चलते हैं , वे ही जीवित रहते हैं और समाज में उन्हीं की प्रतिष्ठा होती है और ईश्वर उन्ही को माध्यम बनाकर कार्य करता है l "